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लोकतंत्र की अलख को अत्याचार की आग में तपा था पूरा परिवार

आपातकाल में नौ माह तक सरकार और उसके कारिदों को छकाते रहे थे सतीशचंद्र अवस्थी दवाब बनाने को तीन चाचा भेज दिए थे जेल पत्नी ने चरखा कातकर चलाया था परिवार।

By JagranEdited By: Published: Sat, 15 Jun 2019 10:04 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jun 2019 06:25 AM (IST)
लोकतंत्र की अलख को अत्याचार की आग में तपा था पूरा परिवार
लोकतंत्र की अलख को अत्याचार की आग में तपा था पूरा परिवार

मैनपुरी, दिलीप शर्मा। आपातकाल की यादें आज भी 70 साल के सतीशचंद्र अवस्थी की भुजाओं को फड़का देती हैं। पुरानी बातों को कोई जिक्र छेड़े तो एक पल को आंखें नम सी दिखती हैं फिर होठों पर गर्व की मुस्कान तैर जाती है। गर्व लोकतंत्र के लिए खुद के द्वारा जगाई गई अलख का। हालांकि इस अलख को जगाने के लिए उनके साथ उनके पूरे परिवार को भी मुश्किलों और अत्याचार की आग में तपना पड़ा था। सगे चाचाओं को जेल में डाल दिया गया। पत्नी को परिवार चलाने के लिए महीनों तक चरखा कातना पड़ा।

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भोगांव तहसील के गांव बरहट निवासी सतीशचंद्र अवस्थी आपातकाल लागू होने के समय 26 वर्ष के थे। सतीश चंद्र अवस्थी बताते हैं के 25 जून 1975 की मध्यरात्रि आपातकाल की घोषणा की गई थी। वह उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे और तहसील कार्यवाह थे। जैसे ही संघ से जुड़े लोगों की गिरफ्तारियां शुरू हुईं, वह भूमिगत हो गए। उस वक्त पुलिस और सरकारी अफसर बिना किसी संवेदना के केवल आपातकाल के विरोध की आवाजों को दबाने में जुटे थे। उन्होंने तानाशाही के खिलाफ जागरूकता फैलाना शुरू किया तो घर पर दबिश पड़नी शुरू हो गई। कभी दिन में तो कभी रात में पुलिस घर पहुंच जाती थी। कई बार तो एक ही दिन में तीन-चार बार दबिश दी गई। घर में मौजूद अन्य लोगों और महिलाओं को धमकाया जाता था। समर्पण कराने के लिए कहा जाता था। इसके बाद भी जब वह पुलिस के हाथ नहीं लगे तो परिवार पर सख्ती और अत्याचार शुरू कर दिया गया।

पुलिस ने दवाब बनाने के लिए सबसे पहले उनके चाचा कैलाश बाबू अवस्थी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इसके एक माह बाद दूसरे नंबर के चाचा राजाराम अवस्थी जेल भेजे गए। ये दवाब भी काम नहीं आया तो उनके तीसरे चाचा रामसेवक अवस्थी को भी जेल में डाल दिया गया। इसी बीच सत्याग्रह का कार्यक्रम आया तो सतीश चंद्र अवस्थी ने लोगों के साथ मिलकर भोगांव में विरोध मार्च निकाला। जहां पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया।

सतीशचंद्र अवस्थी बताते हैं कि उन्होंने तो अत्याचार झेला ही, इस जंग में उनके पूरे परिवार को कष्ट सहने पड़े। तब परिवार के सभी पुरुष सदस्य जेल में थे। ऐसे में परिवार के सामने भरण पोषण का संकट खड़ा गया था। तब उनकी पत्नी रेखा अवस्थी ने चरखा लेकर सूत कातने का काम शुरू किया और उससे होने वाली आय से ही परिवार चलाया।

थाने से जेल तक सहा अत्याचार

सतीशचंद्र अवस्थी बताते हैं के पुलिस को उनको पकड़ने में बहुत मुश्किल हुई थी, इस कारण गिरफ्तार होने के बाद थाने में उनको पीटा गया। इसके बाद जेल पहुंचने पर भी उनके साथ मारपीट की जाती थी। बांटते थे प्रतिबंधित सामग्री, तैयार करते थे जत्थे

सतीशचंद्र अवस्थी तहसील कार्यवाह थे। ऐसे में आपातकाल विरोधी साहित्य, पत्रक आदि बांटने का जिम्मा उनके पास था। वहीं सत्याग्रह कार्यक्रमों के लिए वह जत्थे तैयार कर भी भेजते थे। खेतों में अंधेरे में कटती थी रात

सतीश चंद्र अवस्थी बताते हैं कि पुलिस हर तरफ उनकी तलाश कर रही थी। ऐसे में वह दिन में हर वक्त गमछा बांधकर ही छिपते-छिपाते निकलते थे। रात में खेतों पर बिना रोशनी किए ही सोते थे। अपने किसी साथी को भी इसकी जानकारी नहीं देते थे।


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