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कमरे में पढ़ा जा रहा सुसाइड की कोशिश करने वालों का 'मन'

मन कक्ष में काउंसलर जान रहे वजह मनोवैज्ञानिक प्रभाव से खुदकशी की घटनाएं रोकने के हो रहे प्रयास।

By JagranEdited By: Published: Thu, 26 Sep 2019 10:01 PM (IST)Updated: Fri, 27 Sep 2019 06:26 AM (IST)
कमरे में पढ़ा जा रहा सुसाइड की कोशिश करने वालों का 'मन'
कमरे में पढ़ा जा रहा सुसाइड की कोशिश करने वालों का 'मन'

मैनपुरी, जागरण संवाददाता। जरा-जरा सी बात पर खुदकशी की घटनाएं बढ़ रही हैं। इनमें भी युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। अवसादग्रस्त ऐसे युवाओं को मानसिक तनाव से निजात दिलाने से पहले बंद कमरे में उनका मन पढ़ा जा रहा है। मनोवैज्ञानिक प्रभावों के जरिए खुदकशी की घटनाएं रोकने की कोशिश शुरू हो गई है।

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पिछले कुछ वर्षों से खुदकशी की घटनाओं में इजाफा हुआ है। जिला अस्पताल के रिकॉर्ड पर गौर करें तो जनवरी से अगस्त तक लगभग दो सैकड़ा लोगों को अलग-अलग कारणों से खुदकशी के प्रयास के बाद बेहद गंभीर हालत में इमरजेंसी में भर्ती कराया जा चुका है। इनमें से कुछ की मौत हो गई, जबकि ज्यादातर की जान बचा ली गई। ऐसे मामलों में कमी आए इसके लिए अब शासन स्तर से कवायद कराई जा रही है। महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं मधु सक्सेना ने अस्पताल को भेजे पत्र में ऐसे लोगों को मनोवैज्ञानिक उपचार देने की सलाह दी है। इसके लिए जिला अस्पताल के मन कक्ष में व्यवस्था कराई गई है। खुदकशी की कोशिश करने वालों को मन कक्ष में लाया जा रहा है। यहां काउंसलर मानसिक परेशानी से जूझते पीड़ित की समस्या सुनकर उन्हें अवसाद से उबारने की कोशिश कर रहे हैं। मोबाइल बन रहा बड़ी वजह: मन कक्ष की काउंसलर अरुणा यादव का कहना है कि काउंसिलिग के दौरान ज्यादातर मामलों में मोबाइलफोबिया का शिकार होना पाया गया है। ज्यादातर युवा हैं जो मोबाइल फोन पर ही ज्यादातर समय बिताते हैं। परिजनों द्वारा अक्सर फोन के इस्तेमाल को लेकर घर में विरोध किया जाता है। इससे चिड़चिड़ापन बढ़ने से वे जान देने तक का कदम उठा जाते हैं। खुदकशी की कोशिश के ये भी हैं बडे़ कारण: काउंसलर का कहना है कि परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने या फिर कम अंक आने पर अक्सर विद्यार्थी परेशान हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में यदि माता-पिता डांटते हैं तो वे पूरी तरह से अवसाद में चले जाते हैं और जान देने पर उतारू हो जाते हैं। इतना ही नहीं मोबाइल गेम्स के बढ़ते चलन ने भी खुदकशी के मामलों में बढ़ोतरी की है। इन बातों का रखें ख्याल: बच्चों के अनुत्तीर्ण होने पर उन्हें डांटने की बजाय समझाने का प्रयास करें। जहां तक संभव हो, घरेलू झगड़ों में बीच-बचाव कर उन्हें शांत करने की कोशिश करें। बच्चों और परिजनों की हरकतों पर नजर रखें। मोबाइल फोन में बच्चे कौन सा गेम खेल रहे हैं, इसकी भी पड़ताल करें।


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