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राजा को भाव मिलता न गेहूं को समर्थन, हर बार छला जाता है अन्नदाता

चुनाव के बाद कोई नहीं लेता सुध महंगे बीज-खाद में राहत चाहता है किसान।

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 10:05 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 06:21 AM (IST)
राजा को भाव मिलता न गेहूं को समर्थन, हर बार छला जाता है अन्नदाता
राजा को भाव मिलता न गेहूं को समर्थन, हर बार छला जाता है अन्नदाता

श्रवण शर्मा, मैनपुरी। हर पांच वर्ष बाद लोकसभा चुनाव आते हैं। प्रचारों का दौर चलता है, किसानों की भीड़ जुटती है। अन्नदाता प्रत्याशियों और उनके आकाओं से उम्मीद लगाते हैं। मन में उठी टीस पर वायदों का मरहम लगाकर घर लौटते हैं। मतदान के दिन आस और उम्मीद के साथ मनपंसद सरकार चुनते हैं। मगर, पांच वर्ष बाद निराशा ही हाथ लगती है। किसानों की उम्मीदों को रोशनी तो सब दिखाते हैं, लेकिन अब तक न तो सब्जियों के राजा आलू को भाव मिला और न गेहूं को समर्थन मूल्य। खरीद केंद्रों पर बिचौलिये उनकी परेशानी को और बढ़ाए हुए हैं।

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किसानों की दुर्दशा की यह कहानी किसी एक चुनाव की नहीं, बल्कि हर बार की है। सरकार से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि जुमलों में फिट रहते हैं और जिले के किसान अपनी दुर्दशा पर रो रहे हैं। गेहूं किसानों का भी हाल कुछ अच्छा नहीं है। उनके लिए न तो सरकार सही समर्थन मूल्य तय कर पाती और न ही प्रशासन तमाम वायदों के बाद भी गेहूं क्रय केंद्रों को बिचौलियों की पहुंच से दूर रख पाता है।

किसान रामवीर सिंह कहते हैं कि आज किसान बर्बादी के कगार पर हैं। हर बार अच्छी पैदावार के बाद भी खपत न होने के चलते किसान आलू को सड़कों पर उतरकर बेचने या फिर फेंकने को मजबूर होते हैं। इधर, खेती में प्रयोग होने वाले रसायनों से लेकर उपकरणों तक के दाम आसमान को छू रहे हैं। किसान जितनी लागत लगाकर मेहनत कर फसल उगाता है, उसे देखते हुए आमदनी न के बराबर है। लागत बढ़ी, आमदनी नहीं

किसान देवजीत सिंह कहते हैं कि सरकार किसानों की आय बढ़ाने की बात करती है। मगर, खेती से जुड़ी वस्तुओं के दाम बढ़ाकर किसानों की उम्मीदों पर प्रहार किया है। पिछले पांच साल में डीएपी, जिक, पोटाश से लेकर कृषि उपकरणों के दाम तेजी से बढ़े हैं। बिजली और डीजल के दाम बढ़ने के कारण भी किसान परेशान है।

गेहूं क्रय केंद्रों पर बिचौलियों का जाल

गेहूं किसानों का भी दर्द आलू किसान से कम नहीं है। रामजीलाल कहते हैं कि कुदरत के कहर से पार पाकर जब क्रय केंद्रों पर गेहूं को बेचने पहुंचता है तो बिचौलियों का जाल उन्हें फांसने में जुट जाता है। तीन-तीन दिन तक केंद्रों पर खुले आसमान के नीचे पड़े रहते हैं। सरकारों द्वारा तय सरकारी खरीद के दामों को लेने के लिए भी बिचौलियों के चक्कर काटने पड़ते हैं। इसके कारण किसान अपनी फसल को सीधे मंडियों में बेचने को मजबूर हैं।

राजा भी है बेहाल

दिल्ली सहित हरियाणा की मंडियों में पंजाब का आलू आने के कारण यहां के आलू की मांग नहीं है। इसे लेकर किसानों के माथे पर पसीना आता है। किसानों की मानें तो इस समस्या का हल प्रोसेसिग यूनिट है। किसान गुलाब सिंह कहते हैं कि जनपद में कोल्ड स्टोरेज मालिकों की मनमानी और भाड़े पर प्रशासन को लगाम लगाना चाहिए। आलू किसानों का भला करने के लिए सांसद को प्रोसेसिग यूनिट की स्थापना में जुटना चाहिए।


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