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यहां लगे आग तो भगवान ही मालिक

जागरण संवाददाता, मैनपुरी: ²श्य एक: बांस वाली गली। ये गली इतनी संकरी है कि यहां अगर

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Mar 2018 02:36 PM (IST)Updated: Thu, 22 Mar 2018 02:36 PM (IST)
यहां लगे आग तो भगवान ही मालिक
यहां लगे आग तो भगवान ही मालिक

जागरण संवाददाता, मैनपुरी:

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²श्य एक: बांस वाली गली।

ये गली इतनी संकरी है कि यहां अगर दोनों ओर से बाइक आ जाती है तो निकलने में परेशानी होती है। इसके अलावा यहां बांस की बिक्री भी की जाती है। ऐसे में अगर आग लगती है तो दमकल कर्मियों के लिए उसे बुझा पाना नामुमकिन होगा।

²श्य दो: लोहा मंडी।

शहर के ठीक बीचों-बीच संता-बसंता चौराहे पर लोहा मंडी स्थित हैं। यहां लोहे व बर्तनों की दुकानों के अलावा अन्य दुकानें भी हैं। लेकिन यहां भी गली संकरी होने के कारण कोई भी चार पहिया वाहन नहीं जा सकता है। अगर आग लगती है तो सब कुछ जलकर खाक हो जाएगा।

²श्य तीन: मुहल्ला छपट्टी।

शहर की पुरानी बस्तियों में गलियां काफी संकरी हैं। यहां दो मकानों के बीच में केवल लोगों के निकलने के लिए ही रास्ता है। ऐसा है एक मुहल्ला है छपट़्टी। यहां गलियां इतनी संकरी हैं कि बमुश्किल लोग पैदल यहां से निकल पाते हैं। यहां अग्निश्नन वाहन पहुंचना तो नामुमकिन है।

गर्मी की दस्तक के साथ ही अग्निकांड की दहशत भी लोगों को डराने लगी है। गर्मियों के मौसम में अक्सर आगजनी की घटनाएं होती रहती हैं। अग्निशमन विभाग को भी आग लगने का डर सताता रहता है। क्योंकि शहर में कई बस्तियां और बाजार ऐसे हैं, जिनमें अगर आग लगती है तो उसे बुझा पाना दमकल कर्मियों की लिए बड़ी मुसीबत होगा। क्योंकि यहां न तो दमकल की गाड़ी पहुंच पाएगी और न ही लोगों को निकालने के लिए जगह।

शहर के अधिकांश बाजारों में गलियां काफी संकरी हैं। चाहे कुम्हार मंडी हो या फिर लोहा मंडी। कुम्हार मंडी में दोनों ओर कपड़ों की दुकानें हैं। यहां इतनी भी जगह नहीं है कि कोई भी चार पहिया वाहन यहां लाया जा सके। ये किसी एक बाजार का हाल नहीं है। अगर कुछ गिने चुने मार्केट छोड़ दें तो पूरे शहर के बाजारों को यही हाल है। अगर यहां आग लगी तो फिर भगवान ही इनका मालिक होगा। वहीं शहर की पुरानी बस्तियों में हालत कुछ ऐसी ही है। यहां भी गलियों में पैदल ही निकला जा सकता है। चाहे फिर वह मुहल्ला छपट्टी हो या फिर सौतियाना की तंग गलियां। बताते चलें कि गर्मियों में आग की घटनाओं में इजाफा हो जाता है। ऐसे में केवल दमकल ही आग बुझाने का एक मात्र साधन होती है। लेकिन जब इन गलियों में दमकल पहुंचेगी ही नहीं तो आग बुझाना एक बड़ी चुनौती होगी। वहीं दूसरी ओर अग्निशमन विभाग के पास संसाधनों का भी अभाव है। लगातार कहने के बाद भी शासन द्वारा अब तक संसाधनों में बढ़ोतरी नहीं की जा रही है। जबकि जिले में जरूरत लगातार बढ़ती जा रही है। यहां स्वीकृत 10 दमकलों के सापेक्ष केवल पांच ही मौजूद हैं। जिनमें से तीन दमकलें किशनी करहल और बेवर में लगाई गई हैं, जबकि दो दमकल मुख्यालय पर रहती हैं। ऐसे में जिले भर में आग पर काबू पाना अग्निशमन विभाग के लिए एक बड़ा सिरदर्द है।

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आयोजनों में होती है समस्या

जब भी प्रशासन द्वारा कोई आयोजन किया जाता है, तो दमकलों की कमी आड़े आती है। जिला मुख्यालय पर केवल दो दमकलें ही मौजूद हैं। अगर इन्हें आयोजन में भेज दिया जाता है तो मुख्यालय पर कोई भी गाड़ी नहीं बचती है।

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संसाधनों पर एक नजर

अग्निशमन वाहन क्षमता स्वीकृत उपलब्ध

दमकल 4500 लीटर 5 1

दमकल 2500 लीटर 5 4


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