संस्कारशाला: आत्मसंयम से मिलती है महानता
मैनपुरी जासं। महानता के लिए आत्मसंयम का होना जरूरी है। धैर्य और सहनशीलता से हर समस्या का सामना किया जा सकता है। अधीरता से काम बिगड़ते हैं जबकि संयम से हर राह आसान होती है। वैसे भी मानव जीवन में संयमशीलता की आवश्यकता को सभी विचारशील नागरिकों ने स्वीकार किया है।
मैनपुरी, जासं। महानता के लिए आत्मसंयम का होना जरूरी है। धैर्य और सहनशीलता से हर समस्या का सामना किया जा सकता है। अधीरता से काम बिगड़ते हैं, जबकि संयम से हर राह आसान होती है। वैसे भी मानव जीवन में संयमशीलता की आवश्यकता को सभी विचारशील नागरिकों ने स्वीकार किया है। महान पुरुषों की जीवनियों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि उन्होंने जीवन में जो भी सफलता, उन्नति, श्रेय, महानता, आत्म कल्याण आदि की प्राप्ति की, उनके कारणों में आत्म संयम प्रधान रहा। संयम के पथ पर अग्रसर होकर ही उन्होंने अपने जीवन को महान बनाया। इसमें कोई संदेह नहीं कि संयमशीलता के पथ पर चल कर ही मनुष्य सही मानव और देवता बनता है।
अपनी मानसिक वृत्तियां, बुरी आदतों और वासनाओं पर काबू पाना ही आत्म संयम के पथ पर अग्रसर होना है, इससे मनुष्य की शक्तियों का व्यर्थ ही ह्रास न होकर केंद्रीयकरण होने लगता है, जो जीवन में एक विशेषता लाता है। अपने विकारों पर नियंत्रण करने और हानिकारक आदतों से छुटकारा पाने के लिए जो चेष्टा व क्रिया की जाती है, उसी का नाम संयम है। कितु यह कार्य इतना सरल नहीं है, जितना कि केवल इसके अर्थ को समझ लेना। जब इसे क्रिया क्षेत्र में उतारा जाता है तो संयम शीलता का पथ बड़ा कठिन जान पड़ता है।
आत्मसंयम के पथिकों को प्रतिदिन अपना आत्म निरीक्षण करते रहना अत्यावश्यक है। विचारों और कृत्यों के बारे में सदैव सूक्ष्म निरीक्षण करते रहना चाहिए। विचारों और कार्यों का परस्पर घनिष्ठ संबंध होता है। जैसे विचार होंगे, वे ही क्रिया रूप में अवश्य परिणत होंगे। इसलिए बुरी विचारधारा से सदैव बचना चाहिए, साथ ही विचारों से किये जाने वाले कृत्यों से दूर रहना आवश्यक है। आत्म निरीक्षण के लिए प्रात: उठते समय एवं सायंकाल को सोते समय अपने दिनभर के कार्यों विचारों का लेखा जोखा लेना चाहिए।
अवनीश वर्मा, प्रधानाचार्य, एके कालेज, जागीर (मैनपुरी)।