0.5 एमएल ही लगाई जाएगी वैक्सीन की डोज
डब्ल्यूएचओ ने निर्धारित की गाइड लाइन इंट्रामस्कुलर ही लगाया जाएगा इंजेक्शन
जासं, मैनपुरी: कोरोना वैक्सीन को लेकर स्वास्थ्य महकमा पूरी तरह से अलर्ट हो गया है। खासकर वैक्सीनेशन के लिए एएनएम को खासा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। एपिडेमियोलाजिस्ट डा. अनिल यादव का कहना है कि वैक्सीनेशन को लेकर डब्ल्यूएचओ द्वारा गाइड लाइन निर्धारित कर दी गई है। कोविशील्ड कंपनी द्वारा उपलब्ध कराई गईं वैक्सीन इंट्रामस्कुलर ही लगाई जाएगी। इसका डोज भी निर्धारित किया गया है। एक व्यक्ति को सिर्फ 0.5 एमएल डोज ही दिया जाएगा। वैक्सीनेशन के बाद कम से कम 40 मिनट तक व्यक्ति को वेटिग रूम में बैठकर इंतजार करना होगा। एएनएम को इंट्रामस्कुलर वाली बात को समझना सबसे ज्यादा जरूरी है। इतने प्रकार के होते हैं इंजेक्शन
सबक्यूटेनियस इंजेक्शन :
इसमें दवा को त्वचा और मांसपेशी के बीच के ऊतकों में दिया जाता है। इसे एक छोटी सुई द्वारा दिया जाता है। इसमें दी जाने वाली दवा शरीर में धीरे-धीरे अवशोषित होती है। इंसुलिन का इंजेक्शन इसी तरीके से लगाया जाता है। इंट्रामस्कुलर इंजेक्शन :
इसमें दवा को शरीर के अंदर गहराई में मौजूद मांसपेशियों में सीधे पहुंचाया जाता है। इसके लिए एक बड़ी नीडिल का प्रयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य होता है कि दवा को ऐसी मांसपेशियों में पहुंचाया जाए, जिसमें बहुत सी रक्तवाहिकाएं हों, ताकि दवा जल्द प्रवाहित हो सके। इंट्राडर्मल इंजेक्शन :
इसमें दवा को त्वचा की दूसरी परत में दिया जाता है। इस परत को डर्मिस कहते हैं। इसके माध्यम से कई बीमारियों के टीके दिए जाते हैं। एलर्जी का पता भी इसी तरीके से लगाया जाता है। इंट्रावीनस इंजेक्शन :
इस टीके को सीधे नस में लगाया जाता है, ताकि दवा फौरन रक्त प्रवाह में संचारित हो सके और असर जल्द हो। डिपाट इंजेक्शन :
इसमें त्वचा की ऊपरी परत, ऊतक या मांसपेशी में इस प्रकार से इंजेक्शन लगाया जाता है कि इंजेक्शन की जगह पर एक गांठ बन जाती है और उसमें दवा डाल दी जाती है। ये धीरे-धीरे अवशोषित होती है। ऐसे लगाए जाते हैं इंजेक्शन
चिकित्सा अधीक्षक डा. पपेंद्र कुमार का कहना है कि इंट्रामस्कुलर इंजेक्शन लगाने के लिए बहुत ही सावधानियों की जरूरत होती है। बाजू के ऊपरी तरफ हाथ लगाने पर छोटी हड्डी महसूस होती है। ये कंधे की हड्डी के नीचे रहती है। इस हड्डी के 1.5 से 2 इंच नीचे सिधाई में ये इंजेक्शन लगाया जाता है। इसके अलावा जांच के बीच के हिस्से मे भी इसे लगाया जाता है। ज्यादातर बच्चों की जांघ में ही टीका लगाते हैं।