यहां हर घर में हैं सीमाओं के रखवाले
मैनपुरी के गांव अंजनी के तीन सौ से अधिक युवा सेना में सेवाएं दे रहे हैं। इसी गांव के प्रवीन कुमार कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे।
ज्योत्यवेंद्र दुबे, मैनपुरी: यूं तो मैनपुरी को ऋषि-मुनियों की तपोभूमि कहा जाता है। लेकिन जब भी देश की आन बान शान की बात आई तो यहां के युवाओं ने एक योद्धा बनकर जंग लड़ी। फिर चाहे आजादी की जंग में अंग्रेजो को खदेड़ने की बात आई हो या फिर सीमा पर दुश्मनों से लोहा लेने की। हर बार मैनपुरी के लालों ने न केवल डटकर मुकाबला किया बल्कि मुंहतोड़ जवाब भी दिया। लेकिन एक गांव ऐसा भी है जहां हर घर के लाडले सीमाओं के रखवाले हैं। गांव में घरों की संख्या से अधिक युवा सेना में हैं। ये गांव है शहर से छह किलोमीटर दूर बसा अंजनी। यहां के अधिकतर युवा सेना और अर्द्धसैनिक बलों में कार्यरत हैं तो वहीं कुछ पुलिस में भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस गांव को लोग वीर जवानों के गांव से ही जानते हैं। कारगिल के युद्ध में इसी गांव के प्रवीन कुमार यादव दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इसके बाद लोगों को लगा था कि अब शायद इस गांव के युवाओं का रुझान सेना में न रहे। लेकिन प्रवीन कुमार की शहादत ने युवाओं का जोश दूना कर दिया। गांव में रहने वाले तीन सौ परिवारों में लगभग चार सौ युवा सेना, अर्द्धसैनिक बल व पुलिस में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। शायद ही ऐसा कोई घर होगा जिसमें कोई न कोई सदस्य सेना में न हो।
गांव में घुसते ही अधिवक्ता राजेंद्र ¨सह के मकान के बाहर लगी सात नेमप्लेट इस गांव के युवाओं की देशभक्ति की गवाही देती हैं। राजेंद्र ¨सह के परिवार के पांच बेटे सेना में हैं तो वहीं दो बेटे उत्तर प्रदेश पुलिस में हैं। नई पीढ़ी भी सेना में जाने का भरपूर जज्बा है। यहां शायद ही ऐसा कोई घर हो जिस पर सैनिक के नाम की नेमप्लेट न लगी है। पूरे गांव में लगभग 350 युवा सेना में, 20 अर्द्धसैनिक बलों में व 15 युवा पुलिस में कार्यरत हैं। खास बात ये है कि आज के युग में जहां लोग अपने बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाना चाहते हैं वहीं इस गांव का हर परिवार अपने बेटे को द श की सेवा करने के लिए भेजना चाहता है। गली में खेलते हुए बच्चों से भी अगर पूछेंगे कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं तो बस एक ही जवाब मिलेगा फौजी। दशकों से इस गांव में देशसेवा का ये जज्बा आज भी कायम है। बॉक्स
शहीद स्थल बढ़ाता है जज्बा
गांव के बाहर शहीद प्रवीन कुमार यादव का शहीद स्थल बना हुआ है। वे कारगिल युद्ध में तीन जून 1999 को शहीद हुए थे। गांव के युवा कहते हैं कि वे जब भी शहीद स्थल के सामने से गुजरते हैं तो सेना में जाने की उनकी इच्छा और प्रबल हो उठती है। वे कहते हैं कि एक दिन मरना तो सबको ही है, लेकिन सीमा पर मरने वाले सैनिक अमर हो जाते हैं। बॉक्स
नहीं होती दूध की बिक्री
अंजनी गांव सैनिकों के साथ-साथ अपनी एक और खास पचान के लिए जाना जाता है। यहां हर घर में लोगों ने दुधारू पशु पाल रखे हैं। जिनसे रोजाना लगभग दस क ंतल दूध का उत्पादन होता है। लेकिन इस गांव में दूध की बिक्री नहीं होती है। अगर किसी को जरूरत है तो गांव के लोग उसे निश्शुल्क दूध दे देते हैं। ऐसा क्यों है इस बारे में भी किसी को जानकारी नहीं है। गांव के लोगों का कहना है कि वे बचपन से ये नियम देखते आ रहे हैं और उसकी का पालन कर रहे हैं।
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लोगों की बात
हमने तो जब से होश संभाला है बस तब से एक ही इच्छा है सेना में जाने की। इसके लिए तैयारी कर रहे हैं। उम्मीद है कि जल्द ही देश की सीमाओं की रक्षा करने का अवसर मिलेगा।
पपेंद्र यादव। गांव के अधिकांश लोग सेना में ही हैं। हमारे गांव के ही प्रवीन कुमार यादव सेना में शहीद हुए थे। आज तक जितने भी लोगों ने नौकरी की है, अधिकांश सेना में ही गए हैं।
सूर्यांश। मुझे सेना की ड्रेस बहुत अच्छी लगती है। न जाने कब सेना में जाने का मौका मिलेगा, तब जाकर कहीं इस ड्रेस को पहनने का मौका मिल सकेगा।
श्रीकांत। गांव के बुजुर्ग जहां सेना से सेवानिवृत्त हैं तो वहीं युवा भी सेना व अर्द्धसैनिक बलों में ही हैं। पढ़ाई पूरी हो जाए उसके बाद मैं भी सेना की तैयारी करूंगा।
ऋषभ यादव।