मैनपुरी, जागरण संवाददाता: सपा के गढ़ को ढहाने के भाजपा के दावे और इरादे, दोनों बुरी तरह ढेर हो गए। ऐसी करारी हार मिली कि पूरा संगठन सदमे में है। लोकसभा सीट की बात तो दूर हर बार बढ़त दिलाने वाले भोगांव विधानसभा क्षेत्र तक में भाजपा प्रत्याशी पिछड़ गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दो-दो जनसभाएं, दोनों उप मुख्यमंत्रियों का प्रवास-जनसभाएं, दर्जनों मंत्रियों-जनप्रतिनिधियों को गांव-गांव संपर्क, कुछ भी प्रभाव नहीं दिखा पाया। 

मुलायम सिंह यादव के निधन के चलते उभरी सहानुभूति लहर में शाक्य प्रत्याशी उतार कर जातीय मतों की गोलबंदी की रणनीति भी नाकाम रही। भाजपा की जबरदस्त हार का साक्ष्य यह कि पार्टी प्रत्याशी रघुराज सिंह खुद अपना बूथ तक नहीं जीत सके। 

उपचुनाव में सपा के गढ़ को ढहाने के इरादे से उतरी भाजपा पहले दिन से ही दावे करने में लगी थी। आजमगढ़ लोकसभा सीट पर जीत का उदाहरण दे, मैनपुरी में रिकार्ड जीत का दम भरा जा रहा था। इस साल हुए विधानसभा चुनाव में जिले की चार सीटों में से दो सीटों पर मिली जीत और अन्य सीटों पर बढ़े मत प्रतिशत से भी भाजपा का हौसला बढ़ा हुआ था। 

मतदाताओं के मन की बात समझने में नाकाम रही पार्टी

सीट को जीतने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। अपने मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों की पूरी फौज मैदान में उतार दी थी। प्रवासी के रूप में ढाई हजार बड़े नेताओं-पदाधिकारियों को अलग से लगाया गया था। खुद मुख्यमंत्री दो जनसभाएं करने मैनपुरी आए थे। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने यहां प्रवास किया उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने जनसभाएं की थी और एक दिन प्रवास किया था। परंतु चुनाव प्रचार में जुटी भाजपा मतदाताओं के मन की बात समझने में नाकाम रही। 

बाहरी प्रत्याशी का हुआ नुकसान

भाजपा ने इस बार शाक्य प्रत्याशी के रूप में रघुराज सिंह शाक्य को प्रत्याशी बनाया था। भाजपा की रणनीति थी कि मुलायम सिंह के शिष्य और शिवपाल के करीबी रहे रघुराज जसवंतनगर में सपा की बढ़त को कम करेंगे। दूसरी तरफ संख्या बल में दूसरे नंबर पर माने जाने वाले शाक्य मतदाताओं का साथ उनको मिलेगा। परंतु मैनपुरी की चारों विधानसभाओं में रघुराज सिंह शाक्य को बाहरी प्रत्याशी होने के चलते मतदाताओं का साथ नहीं मिला। 

स्थानीय नेताओं की नाराजगी ने कराई हार

भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण स्थानीय नेताओं से मतदाताओं की नाराजगी को माना जा रहा है। भाजपा के परंपरागत वोटर कहे जाने वाले क्षत्रिय, ब्राह्मण, लोध आदि मतदाताओं में बड़े पैमाने पर असंतोष था। संगठन इस नाराजगी को भांपने में नाकाम रहा। इसके चलते ही इन वर्गों के मतदाताओं ने भी सपा प्रत्याशी को भरपूर वोट किया। यही कारण रहा कि सपा को हर विधानसभा क्षेत्र से बड़ी जीत मिली। 

9.83 प्रतिशत वोट का हुआ नुकसान

भाजपा को उपचुनाव में सपा ने बड़ा झटका दिया। भाजपा के मत प्रतिशत में भी बड़ी गिरावट आई। वर्ष 1991 में भाजपा को 26.57 फीसद वोट मिले थे। इसके बाद 98 में 40.06 फीसद वोट मिले। 2004 के उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी 2.6 फीसद वोटों तक ही सिमट गया था। 

वर्ष 2014 के उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी को 33 फीसद वोट मिले थे। वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा को इतिहास के सर्वाधिक 44.01 प्रतिशत मत मिले थे। परंतु इस बार भाजपा मत प्रतिशत 34.18 प्रतिशत तक ही सिमट गया। जबकि सपा को 10.42 प्रतिशत की बढ़त मिली। 2019 में सपा को 53.66 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि इस बार 64.08 प्रतिशत मत मिले। 

भाजपा की हार के बड़े कारण

  • स्थानीय नेताओं से मतदाताओं की नाराजगी।
  • भाजपा का जीत को लेकर अति आत्मविश्वास। 
  • बाहरी नेताओं का मतदाताओं से जुड़ाव न बन पाना।
  • बूथ प्रबंधन की रणनीति का पूरी तरह विफल होना।

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Edited By: Shivam Yadav