मैनपुरी, जागरण टीम, (दिलीप शर्मा)। मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव में तमाम दिग्गज तो प्रतिष्ठा बचाने के लिए दम झोंक ही रहे हैं, लेकिन शिवपाल के लिए चुनौती दोहरी है। उनकी केवल प्रतिष्ठा ही नहीं भविष्य भी दांव पर है। कुछ दिन पहले तक सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ तल्ख रिश्तों के चलते चर्चाओं में रहने वाले शिवपाल बहू को आशीर्वाद दे परिवार के साथ आ खड़े हुए हैं। परिवार भी एकजुटता का संदेश दे रहा है, लेकिन इसके पीछे जसवंतनगर का गणित भी एक बड़ा कारण माना जाता है। ऐसे में भविष्य में उनका कद बने रहने का पैमाना जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र में सपा का प्रदर्शन भी बनेगा।
अखिलेश यादव के बीच 2017 से बनी थी दूरी
वर्ष 2017 में मुलायम सिंह यादव के परिवार में छिड़े सत्ता संघर्ष के बाद शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच दूरी बढ़ना आरंभ हुआ था। 2017 मेें भाजपा प्रदेश की सत्ता में आने के बाद सपा परिवार में दरार गहरी होती चली गई। इसके चलते ही शिवपाल सिंह यादव ने अलग से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम अपना दल बनाया। फिर 2019 का लोकसभा चुनाव आते-आते बयानबाजी ने दरार तो इतना बड़ा कर दिया कि शिवपाल सिंह यादव खुद फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर भतीजे अक्षय यादव के सामने चुनाव मैदान में उतर गए। उस चुनाव में शिवपाल को जीत तो नहीं मिली, परंतु अक्षय यादव को भी हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि उस चुनाव में भी शिवपाल सिंह यादव मैनपुरी सीट पर सपा-बसपा गठबंधन की टिकट पर लड़े मुलायम सिंह यादव को समर्थन दिया था।
सपा की टिकट पर विधायक बने शिवपाल सिंह
इस साल हुए विधानसभा चुनाव से पहले शिवपाल फिर अखिलेश के साथ चले गए और सपा की टिकट पर ही जसवंतनगर सीट से विधायक बने। परंतु इसके बाद फिर रिश्तों में फिर तल्खी आई, जो अब मुलायम सिंह के निधन के बाद हो रहे लोकसभा उपचुनाव में दोबारा पारिवारिक एकता में बदल चुकी है। इस चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव के सामने मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत को बचाने की चुनौती है। ऊपर से उनकी पत्नी डिंपल यादव प्रत्याशी है। ऐसे में अखिलेश और शिवपाल फिर एक हो गए हैं। परंतु यह भी कहा जा रहा है कि जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र में शिवपाल की पकड़ भी इसकी एक बड़ी वजह है।
जसवंतनगर क्षेत्र से मिलती है बढ़त
लोकसभा चुनावों में जसवंतनगर क्षेत्र से ही सपा को हर बार सबसे ज्यादा बढ़त मिलती है। 2019 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव 94 हजार मतों के अंतर से जीते थे और इसमें से 62 हजार वोटों की बढ़त अकेले जसवंतनगर क्षेत्र से मिली थी। सपा इस बार इस बार भी यही उम्मीद लगाए हैं और यह उम्मीद शिवपाल सिंह यादव से है। ऐसे में कहा जा रहा है कि जसवंतनगर क्षेत्र से डिंपल यादव को मिलने वाले वोटों की संख्या भी शिवपाल सिंह यादव के भविष्य का पैमाना बनेगी।
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असमंजस में फंसा प्रसपा का संगठन
शिवपाल सिंह यादव के जाने से प्रसपा का संगठन भी असमंजस में फंसा हुआ है। प्रसपा ने केवल 2019 के लोकसभा चुनाव में ही कुछ सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। बताया जाता है कि प्रसपा के संगठन के लोग इस साल के विधानसभा चुनाव में अलग से लड़ना चाहते थे। परंतु शिवपाल सिंह यादव के साथ जाने से निराश हुए, अब फिर वह सपा के साथ हैं। ऐसे में संगठन के लोगों को अपना राजनीतिक भविष्य नजर नहीं आ रहा है। यही वजह है कि संगठन के बहुत से बड़े नेता अन्य दलों में जा चुके हैं या निष्क्रिय हो गए हैं। प्रसपा के जसवंतनगर के जिलाध्यक्ष सुनील यादव भी बीते 28 नवंबर को करहल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जनसभा में भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
आसान नहीं जसवंतनगर की चुनौती
शिवपाल सिंह यादव वर्ष 1994 में पहली बार जसवंतनगर के विधायक बने थे। इसके बाद से वह लगातार चुनाव जीत रहे हैं। बीता चुनाव भी 90 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीता था। लेकिन इस बार शिवपाल के ही करीबी रहे रघुराज सिंह शाक्य को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है। रघुराज सिंह शाक्य भी जसवंतनगर के रहने वाले है और उनका भी वहां प्रभाव माना जाता है। शिवपाल के कई अन्य करीबी भी भाजपा में जा चुके हैं। भाजपा भी पूरे संगठन की ताकत झोंके हुए हैं। ऐसे में शिवपाल सिंह यादव के सामने सपा प्रत्याशी को बढ़त दिलाने की चुनौती बहुत आसान नहीं है।