घटिया कॉटन से जख्मों पर मरहम
ड्रग वेयर हाउस से भेजी गई थी 295 पौंड संक्रमित कॉटन, महीने भर से हो रहा उपयोग, किसी ने नहीं जताई आपत्ति।
जासं, मैनपुरी : पहले चिकित्सकों की कमी, फिर दवाओं का टोटा और अब घटिया कॉटन से जख्मों पर मरहम ने एक बार फिर से अस्पताल की शाख पर सवाल खडे़ कर दिए हैं। महीने भर से घटिया कॉटन से मरीजों के जख्मों पर मरहम-पट्टी की जा रही है। हैरत की बात तो ये है कि अभी तक किसी ने भी इस पर आपत्ति नहीं जताई। ड्रग वेयर हाउस से भेजी गई घटिया किस्म की कॉटन का मामला सामने आने पर अस्पताल प्रशासन ने भी चुप्पी साध ली है।
जिला अस्पताल की इमरजेंसी में आने वाले घायलों को मिनी ओटी में रखा जाता है। यहां प्राथमिक उपचार दिया जाता है, लेकिन यह प्राथमिक उपचार ही विवादों में है। सवाल घायलों के जख्मों पर लगाई जाने वाली कॉटन को लेकर है। असल में जख्मों की सफाई करने और मरहम-पट्टी के लिए जिस कॉटन का उपयोग किया जा रहा है, वह बेहद घटिया किस्म की है। धूसर मटमैले रंग की काटन का नवंबर 2018 से लगातार प्रयोग हो रहा है।
जानकारी करने पर पता चला कि कॉटन का स्टॉक खत्म हो जाने पर इमरजेंसी सेवाओं के लिए ड्रग वेयर हाउस से नवंबर 2018 में 295 पौंड (एक पौंड लगभग 450 ग्राम) कॉटन उधार मांगी गई थी। वेयर हाउस ने पैक कॉटन को अस्पताल भिजवाया दिया था, जिसे सीधा इमरजेंसी पहुंचा दिया गया। इस कॉटन से रोजाना मरीजों का उपचार किया जा रहा है। हैरत की बात है कि महीने भर से इस गंदी कॉटन का प्रयोग होने के बावजूद किसी ने भी आपत्ति नहीं जताई। यहां से भी मंगाई गई है कॉटन: स्टोर से मिली जानकारी के अनुसार फीरोजाबाद की शिवा मेडिकल एजेंसी से लगभग 500 पौंड कॉटन मंगाई गई थी। हाल ही में नए स्टॉक में देहरादून की एमबिनेट कंपनी ने 350 बंडल कॉटन भेजे हैं, जो नए बंडल भेजे गए हैं वे पूरी तरह से सफेद कॉटन के हैं। जख्म को बना सकती है नासूर: सर्जन डॉ. गौरव पारिख का कहना है कि घाव के उपचार में साफ-सफाई का बेहद ख्याल रखना पड़ता है। जरा सी असावधानी जख्म को नासूर कर सकती है। यदि हम संक्रमित कॉटन, पट्टी अथवा बैंडेज को घाव पर लगाते हैं तो उससे जख्मों पर इंफेक्शन बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है।