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जय हिद: पांच हजार क्रांतिकारियों की तैयार हुई थी फौज

मैनपुरी षड्यंत्र कांड में रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां ने निभाई थी अहम भूमिका 1917 से 1920 तक मैनपुरी को बनाया था अपना ठिकाना उप्र से राजस्थान तक फैला था संगठन।

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Aug 2019 09:52 PM (IST)Updated: Mon, 12 Aug 2019 06:23 AM (IST)
जय हिद: पांच हजार क्रांतिकारियों की तैयार हुई थी फौज
जय हिद: पांच हजार क्रांतिकारियों की तैयार हुई थी फौज

मैनपुरी, दिलीप शर्मा। ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला देने वाले मैनपुरी षड्यंत्र कांड के सूत्रधारों में रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां भी शामिल थे। उन्होंने मैनपुरी को अपना ठिकाना बना रखा था। यहीं से बढ़कर संगठन का दायरा राजस्थान तक पहुंच गया था। पांच हजार से अधिक क्रांतिकारियों की फौज तैयार कर ली गई थी। हथियार और गोला-बारूद भी जुटाया जा रहा था। गद्दारों ने आजादी की लड़ाई के इतिहास की इस मुहिम को नाकाम कर दिया।

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आजादी की जंग में ब्रिटिश हुकूमत को मैनपुरी ने बड़ी चुनौतियां दी थीं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मैनपुरी ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। महाराजा तेज सिंह की अगुवाई में मैनपुरी को आजाद करा लिया गया था। छह माह तक ब्रिटिश फौज मैनपुरी को दोबारा फतह नहीं कर पाई थी। इसके बाद भी क्रांतिकारियों के संघर्ष की घटनाएं होती रहीं। 1918 से 1920 तक हुए मैनपुरी षड्यंत्र कांड में तो अंग्रेज सरकार से सीधे युद्ध की तैयारियां कर ली गई थीं। उस वक्त युवाओं में देशप्रेम की भावनाएं हिलोरें ले रही थीं। गेंदालाल दीक्षित ने मातृवेदी संगठन बनाया था। बड़ी संख्या में युवा इसमें शामिल हो गए। संगठन को बढ़ाने और युवाओं को क्रांति के लिए तैयार करने का जिम्मा रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां ने संभाला था। रामप्रसाद बिस्मिल की बहन शास्त्री देवी मैनपुरी के कोसमा गांव में ब्याही थीं। ऐसे में उनका यहां पहले से आना-जाना रहता था। युवाओं को एकत्र करने के लिए दोनों ने मिशन स्कूल और आर्य समाज मंदिर को ठिकाना बना रखा था। संगठन का दायरा बढ़ने लगा तो अंग्रेजों को भी इसकी भनक लग गई। ब्रिटिश सरकार अशफाक और बिस्मिल की तलाश में जुट गई। रामप्रसाद बिस्मिल ने कोसमा में रह रही उनकी बहन शास्त्री देवी के गांव में शरण ली। जब यहां भी गिरफ्तारी होने की आशंका हुई तो उन्होंने जंगलों में अपना ठिकाना बना लिया। उन दो सालों में इनके प्रयासों से संगठन का फैलाव मैनपुरी, आगरा, फर्रुखाबाद, मथुरा, बरेली, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, इटावा, एटा, शहाजहांपुर, कानपुर और राजस्थान के कुछ शहरों तक हो गया था। पांच हजार से अधिक युवा इसमें शामिल थे। नरेश चंद्र सक्सेना सैनिक द्वारा लिखित पुस्तक, 'मैनपुरी जनपद: स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास', में इसका जिक्र किया गया है। क्रांतिकारियों की रणनीति कामयाब नहीं हो सकी। युद्ध छिड़ने से पहले ही संगठन में शामिल दलपत नामक युवक ने गद्दारी कर दी। जिसके बाद क्रांतिकारियों की दनादन गिरफ्तारियां हुईं।

मैनपुरी षड्यंत्र कांड में ये हुए थे गिरफ्तार

इतिहासकार और साहित्यकार श्रीकृष्ण मिश्रा एडवोकेट ने अपनी पुस्तक समग्र मैनपुरी में उल्लेख किया है कि दलपत की गद्दारी के बाद गेंदालाल दीक्षित, सिद्धगोपाल, चंद्रधर जौहरी, रामदीन, हेतराम, जयदयाल, शम्भूदयाल, प्रभाकर शर्मा, अजय सिंह, राजाराम, शिवचरन लाल, फतेह सिंह, मुकुंदीलाल गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद मुकदमे चलाकर सिद्धगोपाल, चंद्रधर जौहरी, प्रभाकर, शिवचरन व फतेह सिंह को पांच-पांच साल की सख्त कारावास की सजा दी गई। मुकुंदीलाल को तीन साल की सजा हुई थी। गद्दार दलपत को उसकी गवाही के चलते बरी कर दिया गया था। अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आए थे बिस्मिल

अंग्रेजी सरकार रामप्रसाद बिस्मिल को तब नहीं पकड़ पाई थी। उस वक्त बिस्मिल शाहजहांपुर में थे। गद्दारी की जानकारी मिलने के बाद वह भूमिगत हो गए। इसी तरह देवनारायण आगरा से और माधौराम मैनपुरी से फरार हो गए थे। क्रांतिकारी प्रताप सिंह फर्रुखाबाद में लालमनि सेठ के यहां रह रहे थे। वह भी वहां से भूमिगत हो गए थे।


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