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मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे झोलाछाप

हर माह गलत इलाज से जाती है दो से तीन लोगों की जान कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर रहा है स्वास्थ्य विभाग।

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Jun 2019 09:53 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jun 2019 06:29 AM (IST)
मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे झोलाछाप
मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे झोलाछाप

केस: 1

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किशनी क्षेत्र के गांव बुढ़ौली निवासी नीरज पेट दर्द से पीड़ित था। बीते साल जुलाई में वह गांव के ही झोलाछाप अनिल से इलाज कराने गया। 10 जुलाई को अनिल ने नीरज का पेट चीर कर ऑपरेशन कर दिया और टांके लगा दिए। ऑपरेशन के बाद अनिल की हालत बिगड़ गई और एक सप्ताह बाद उसकी मौत हो गई। मामले में मुकदमा दर्ज होने के बाद तीन माह तक झोलाछाप पुलिस की पकड़ में नहीं आया। 12 अक्टूबर को उसे गिरफ्तार किया गया था। केस: दो

बिछवां क्षेत्र के गांव लहरा निवासी अरविद पुत्र रामप्रकाश की 16 वर्षीय पुत्री शिवानी को 11 मार्च को तेज बुखार आ गया था। गांव के ही झोलाछाप क्लीनिक चलाने वाले एसके बंगाली के यहां ले जाया गया। उसने किशोरी को तेज बुखार में ही इंजेक्शन लगा दिया। कुछ ही देर बाद शिवानी की आंखों की रोशनी चली गई। मामले में शिकायत के बाद भी पुलिस और स्वास्थ्य विभाग ने सुनवाई नहीं की। बाद में जागरण के मामला उठाने के बाद कार्रवाई हुई। मैनपुरी, जागरण संवाददाता। जिले में झोलाछापों के इलाज से जान जाने के ये दो मामले तो मात्र उदाहरण हैं। हर माह ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं। गांव से लेकर कस्बों तक बड़े पैमाने पर झोलाछापों ने इलाज के नाम पर दुकानें खोल रखी हैं। यह मामूली बीमारी से लेकर गंभीर रोगों तक के इलाज का दावा करते हैं और गलत इलाज से लोगों की जान खतरे में डाल रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग भी इनको अनदेखा किए हुए है। जब भी कोई मामला सामने आता है तो स्वास्थ्य विभाग खानापूर्ति के लिए कुछ क्लीनिक सील कर देता है। बाद में यही झोलाछाप दूसरी दुकान खोलकर अपना कारोबार फिर शुरू कर देते हैं।

झोलाछापों की सक्रियता का अंदाजा खुद विभागीय आंकड़ों से ही लगाया जा सकता है। सीएमओ कार्यालय के रिकॉर्ड में मात्र 32 नर्सिंग होम और क्लीनिक ही पूरे जिले में संचालित हो रहे हैं। लेकिन, यह आंकड़ा सिर्फ कागजी है। हकीकत में नर्सिंग होम और क्लीनिकों की संख्या 400 से अधिक बताई जाती है। सूत्रों के मुताबिक झोलाछाप अपनी दुकान चलाने के लिए मोटा कमीशन अदा करते हैं। जब भी कोई अफसर छापा मारने निकलता है। इसकी सूचना भी कुछ विभागीय कर्मचारी उनको दे देते हैं। सिर्फ सूचना देने के लिए ही उन्हें प्रतिमाह 5 से 10 हजार रुपये दिए जाते हैं। इसके बाद भी यदि छापा पड़ जाता है तो उस कार्रवाई से बचने के लिए तो ज्यादा रकम खर्च करनी पड़ती है। इसकी सेटिग भी यही कर्मचारी कराते हैं। 20 दिन में गईं इतनी जान

घिरोर थाना क्षेत्र के गांव नगला नधा निवासी हरीश कुमार की आठ माह की बेटी रिया कुछ दिनों से बुखार से पीड़ित थी। परिजन गांव के ही चिकित्सक से उपचार दिला रहे थे। बीते सप्ताह हालत बिगड़ने पर इमरजेंसी लाए तो चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। बीते पिछले दिनों ही बिछवां थाना क्षेत्र के गांव किन्हावर निवासी 60 वर्षीय श्याम सिंह, 35 वर्षीय प्रवेश पुत्र महेश चंद्र, भोगांव निवासी 55 वर्षीय मुन्नी देवी और ज्योंती कस्बा निवासी अवध किशोर की भी झोलाछाप के गलत इलाज के कारण मौत हुई थी।

झोलाछाप को लेकर विभाग सख्ती बरत रहा है। उनके खिलाफ समय-समय पर कार्रवाई की जा रही है। जहां भी सूचना मिलती है, वहां छापेमारी कराई जाती रही है।

डॉ. एके पांडेय, सीएमओ, मैनपुरी।


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