डीएम की पहल, मूक-बधिर बच्चों का होगा कॉक्लियर इंप्लांट
जिले भर से चिन्हित किए गए 50 दिव्यांग बच्चे 17 मई को होगा स्वास्थ्य परीक्षण विशेषज्ञों की बुलाई गई विशेष टीम एक इंप्लांट में होता है लगभग छह लाख का खर्चा।
मैनपुरी, जागरण संवाददाता। आर्थिक तौर पर कमजोर बोलने और सुनने में अक्षम बच्चों के अभिभावकों में नई उम्मीद जागी है। जिलाधिकारी की पहल पर आधा सैकड़ा मूक-बधिर बच्चों को चिन्हित किया गया है। विशेष परीक्षण के लिए 17 मई को जिला चिकित्सालय में शिविर की तैयारी की जा रही है। शिविर में यदि किसी बच्चे में सुनने और बोलने की क्षमता के बारे में पुष्टि होती है तो कॉक्लियर इंप्लांट के जरिए उनका उपचार किया जाएगा।
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरके सागर का कहना है कि इन सभी बच्चों की सुनने की क्षमता का मशीनों के जरिए आकलन किया जाएगा। ऐसे बच्चे जिनकी श्रवण शक्ति वापस लौटने की थोड़ी भी उम्मीद होगी, उन सभी को कॉक्लियर इंप्लांट के लिए चिन्हित किया जाएगा। डॉ. सागर का कहना है कि यह एक महंगा ऑपरेशन होता है, जिसका लगभग खर्च छह लाख रुपये के आसपास होता है। प्रशासनिक पहल पर बच्चों के लिए यह सुविधा निश्शुल्क दिलाई जाएगी और उनका उपचार कराया जाएगा। क्या होता है कॉक्लियर इंप्लांट
सीएमएस डॉ. आरके सागर का कहना है कि कॉक्लियर कान के अंदर एक छोटी अस्थि होती है जिसे ऑपरेशन के जरिए दुरुस्त किया जाता है। यह ऑपरेशन बेहद रिस्की होता है। अक्सर दो से तीन महीने में बच्चों में सुनने की क्षमता का विकास हो जाता है। जब बच्चा सुनने लगता है तो वह प्रशिक्षण के जरिये छह से आठ महीने में सामान्य बच्चों की भांति बोलना शुरू कर देता है लेकिन कई बार स्थितियां ऐसी नहीं बनती हैं। कुछ बच्चे पांच से छह वर्षों में भी नहीं बोल पाते। ऑडियोमीटरी से जांची जाएगी क्षमता
जिले भर से चिन्हित किए गए मूक-बधिर बच्चों की सुनने की क्षमता की जांच के लिए उनकी ऑडियोमीटरी कराई जाएगी। मशीनों के माध्यम से उनकी श्रव्य क्षमता का परीक्षण किया जाएगा।
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