कोरोना के कहर ने झकझोरा, देह ही कर दी दान
कोरोना काल में कई परिचित खोए मदद न कर पाने का मलाल तीन साल पहला किया था नेत्र दान का संकल्प
वीरभान सिंह, मैनपुरी: कोरोना संक्रमण की विभीषिका ने हर किसी को असहनीय चोट दी है। हालात ऐसे थे कि लोग चाहकर भी परिचितों की मदद नहीं कर पाए। एक शिक्षक को भी इसी बात का मलाल है। व्यथित इतने कि उन्होंने अपनी देह ही दान कर दी। फिर कोई कोरोना के संक्रमण की चपेट में न आए, इसके लिए कोविड प्रोटोकाल के अनुपालन को जागरूक करते रहते हैं।
मानवता की एक मिसाल बने हैं भानु प्रताप सिंह। वे मूल रूप से फीरोजाबाद जिले के शिकोहाबाद के रहने वाले हैं। मैनपुरी शहर में वर्ष 2011 से रह रहे हैं। यहां पर वे इंग्लिश स्पीकिग एकेडमी का संचालन करते हैं। पिछले दो वर्षों से कोरोना संक्रमण की विभीषिका ने उन्हें भी झकझोर दिया। वे कहते हैं कि इन दो वर्षों में उन्होंने कई अपने परिचितों को संक्रमण की वजह से खो दिया है। चाहकर भी वे उनकी मदद नहीं कर सके। बहुत से ऐसे भी रहे जिनके शारीरिक अंगों ने बीमारी की वजह से काम करना बंद कर दिया और अंतत: उनकी मौत हो गई। व्यथित भानु प्रताप सिंह ने अपनी देह दान करने का संकल्प किया। कई महीनों तक इसकी प्रक्रिया समझने के बाद उन्होंने 18 जुलाई 2021 को नोट्टो (नेशनल आर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन) को कानूनी प्रक्रिया के तहत अपनी देह दान कर दी।
मुश्किल था परिवार को समझाना: भानु प्रताप सिंह कहते हैं कि यह फैसला उनका व्यक्तिगत था लेकिन, परिवार के सदस्य भी उनसे जुडे़ हैं। ऐसे में परिवार को समझाना मुश्किल था। उनके देह दान के निर्णय के बाद उन्हें परिवार की नाराजगी का सामना भी करना पड़ा। पिता हरीबाबू, मां कमला देवी कई दिनों तक नाराज रहे। पत्नी अलका यादव ने भी इस निर्णय का विरोध किया। मगर, सबको समझाकर इस सच्चाई के लिए राजी कर लिया।
वर्ष 2018 में किया नेत्रदान: मृत्यु के बाद अगर उनके अंग किसी दूसरे को नई जिंदगी दे सकते हैं, तो इससे बड़ी मानवता नहीं है। इसी भावना के तहत वे वर्ष 2018 में वे आइ बैंक एसोसिएशन आफ इंडिया, हैदराबाद को कानूनी प्रक्रिया के तहत नेत्रदान कर चुके हैं।
बेटे को खोकर समझा अपनों का दर्द: भानु प्रताप सिंह ने दूसरों की मदद का यह बड़ा निर्णय यूं ही नहीं लिया। वह बताते हैं कि कोरोना में जो दर्द दूसरों का देखा, वर्ष 2019 में वे स्वयं बीमारी के ऐसे ही दर्द से जूझ चुके हैं। उन्होंने अपना मासूम बेटा खोया है। बुखार से बीमार बच्चे को लेकर वे जगह-जगह अस्पताल में भटके थे। बहुत प्रयासों के बावजूद अपने बच्चे को नहीं बचा सके। कई महीनों तक वह दर्द उन्हें मन ही मन कचोटता रहा। तभी फैसला कर लिया कि जो उनके साथ हुआ, वह किसी और के साथ न हो। ऐसे कर सकते हैं आवेदन: देह दान से इच्छुक व्यक्ति सरकार की आनलाइन वेबसाइट की मदद ले सकते हैं। नोट्टो (नेशनल आर्गन एंड टिशु ट्रासप्लाट आर्गेनाइजेशन) की वेबसाइट ओपन कर उसके पेज से अंग दान से संबंधित प्रक्रिया, जागरूकता कार्यक्रम और अस्पतालों के संबंध में जानकारी ली जा सकती है। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन इस संस्था का संचालन किया जा रहा है।