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पौत्र से हारे थे भाजपा के प्रेमसिंह, अब दादा को देंगे चुनौती

मैनपुरी जासं। केसरिया खेमे से लड़ाका घोषित होने के बाद मैनपुरी में सियासत की जंग दिलचस्प मोड़ पर है। भाजपा प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य पहले सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के पौत्र तेजप्रताप यादव के सामने इसी मैदान में उतरे थे। तब उनको शिकस्त झेलनी पड़ी थी। अब उनके सामने तेज प्रताप के दादा मुलायम सिंह यादव सामने हैं। इस बार मैनपुरी की सियासी बिसात पूरी तरह नए रंग में डूबी है। सपा का बसपा से गठबंधन है और कांग्रेस मैदान छोड़ चुकी है। ऐसे में भाजपा और गठबंधन प्रत्याशी में सीधा मुकाबला होना तय है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 03 Apr 2019 11:28 PM (IST)Updated: Wed, 03 Apr 2019 11:28 PM (IST)
पौत्र से हारे थे भाजपा के प्रेमसिंह, अब दादा को देंगे चुनौती
पौत्र से हारे थे भाजपा के प्रेमसिंह, अब दादा को देंगे चुनौती

दिलीप शर्मा, मैनपुरी: केसरिया खेमे से लड़ाका घोषित होने के बाद मैनपुरी में सियासत की जंग दिलचस्प मोड़ पर है। भाजपा प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य पहले सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के पौत्र तेजप्रताप यादव के सामने इसी मैदान में उतरे थे। तब उनको शिकस्त झेलनी पड़ी थी। अब उनके सामने तेज प्रताप के दादा मुलायम सिंह यादव सामने हैं। इस बार मैनपुरी की सियासी बिसात पूरी तरह नए रंग में डूबी है। सपा का बसपा से गठबंधन है और कांग्रेस मैदान छोड़ चुकी है। ऐसे में भाजपा और गठबंधन प्रत्याशी में सीधा मुकाबला होना तय है।

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मैनपुरी लोकसभा सीट को मुलायम सिंह के गढ़ के तौर पर जाना जाता है। यहां बीते आठ चुनावों से सपा अपराजेय है। इसमें से चार मुलायम सिंह ने ही जीते हैं। अब पांचवी बार मुलायम मैदान में है। इस सीट पर जातीय समीकरण लंबे समय से प्रभावी रहे हैं। लोकसभा क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग के मतदाता करीब 45 फीसद हैं। इनमें यादव मतदाताओं की हिस्सेदारी करीब 25 फीसद तक है। इनके बाद शाक्य मतदाताओं का नंबर आता है। सवर्णों की बात करें तो इनका कुल आंकड़ा 25 फीसद तक है। लगभग इतने ही एससी मतदाता हैं। अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या सबसे कम करीब पांच फीसद है। इसी जातीय समीकरण ने यहां सपा को मजबूत बनाया है। सवर्णो का एक वर्ग भी पूर्व में सपा के साथ दिखता रहा है। हालांकि बीते कुछ चुनावों में तस्वीर थोड़ी बदली है।

अब भाजपा पूरे देश में नरेंद्र मोदी के प्रति जबरदस्त समर्थन के दावे के साथ मैदान में है। भाजपा का कहना है कि इस बार उनका संगठन पूरे लोकसभा क्षेत्र में मजबूत है। केंद्र की योजनाओं और आतंकवाद पर सख्त रुख के चलते जनता में नरेंद्र मोदी के प्रति समर्थन बढ़ा है। दावा किया जा रहा है कि इस बार जातियों के चक्रव्यूह में बड़ी सेंध लगेगी।

भाजपा जीत का दावा जरूर कर रही है, लेकिन बीते चुनावों के आंकड़े इसके काफी मुश्किल होने का इशारा कर रहे हैं। वर्ष 2014 के उपचुनाव में तेजप्रताप यादव ने प्रेम सिंह शाक्य को ही 3.21 लाख वोटों के अंतर से हराया था। जबकि प्रेम सिंह शाक्य को कुल 3.32 लाख वोट मिले थे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह ने भाजपा प्रत्याशी को साढ़े तीन लाख वोटों के अंतर से पराजित किया था। ऐसे में भाजपा को जीत की दहलीज तक पहुंचने के लिए वोटों की इतनी बड़ी खाई को पाटना होगा, वो भी तब जब बसपा व सपा में गठबंधन है। 40 फीसद वोट तक पहुंच चुकी है भाजपा:

अब तक लड़े नौ चुनावों में भाजपा अधिकतम 40.06 फीसद वोट ही हासिल कर सकी है। वर्ष 1991 में भाजपा को 26.57 फीसद वोट मिले थे। इसके बाद वर्ष 1998 में 40.06 फीसद वोट मिले। वर्ष 2004 के उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी 2.6 फीसद वोटों तक ही सिमट गया था। बीते उपचुनाव की बात करें तो भाजपा प्रत्याशी को 33 फीसद वोट मिले थे। हालांकि एक भी बार भाजपा को जीत हासिल नहीं हो सकी। - उप चुनाव में सपा को मिले थे 64.89 फीसद वोट:

मत प्रतिशत के मामले में सपा अब तक यहां सबसे आगे रही है। वर्ष 1996 के चुनाव में सपा को 42.77 फीसद वोट मिले थे। वर्ष 2014 के चुनाव में 59.63 फीसद वोट मिले। परंतु वर्ष 2014 के उपचुनाव में फिर उछाल आया और सपा को 64.89 फीसद वोट हासिल हुए।


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