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चुनावी शोर से गायब हुआ सेहत का मुद्दा, मरहम को तरसते हैं मरीज

अस्पतालों में न तो डॉक्टर्स हैं और न ही पर्याप्त दवाएं। महिला चिकित्सालय में स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ की कई वर्षों से कमी बनी हुई है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 15 Apr 2019 09:55 PM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 06:11 AM (IST)
चुनावी शोर से गायब हुआ सेहत का मुद्दा, मरहम को तरसते हैं मरीज
चुनावी शोर से गायब हुआ सेहत का मुद्दा, मरहम को तरसते हैं मरीज

मैनपुरी, जागरण संवाददाता। लोकसभा चुनाव में इस बार सेहत का मुद्दा गायब है। मंचों से बड़े-बड़े दावे करने वाले नेता सेहत की बात पर चुप्पी साध रहे हैं। हर कोई अपने हाथों अपनी पीठ थपथपा रहा है, लेकिन मर्ज के दर्द से कराहती आवाज सुनना कोई नहीं चाहता। मैनपुरी में सपा, बसपा और भाजपा तीनों सरकारों की सरपरस्ती रही लेकिन किसी भी दल के जनप्रतिनिधि ने बदतर स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त कराने की कोशिश न की। अस्पतालों में भवन तो बने हैं, मगर न तो चिकित्सक हैं और न ही उपकरण व दवाएं। स्थिति यह है कि तीमारदारों को मरीजों का उपचार के लिए प्राइवेट अस्पतालों में मोटा बिल भरना पड़ रहा है। अबकी लोकसभा चुनाव में बेहतर स्वास्थ्य का यह मुद्दा मतदाताओं के बीच न सिर्फ चर्चा का विषय बना हुआ है, बल्कि एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है। अल्ट्रासाउंड न ही सीटी स्कैन

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जिला चिकित्सालय में पांच वर्षों से अल्ट्रासाउंड और लगभग छह वर्षों से सीटी स्कैन मशीन खराब पड़ी है। तकनीशियन के न होने के कारण मरीजों को राहत नहीं मिल पा रही है। अल्ट्रासाउंड की जांच के लिए मरीजों को 500 रुपये और सीटी स्कैन के लिए ढाई से तीन हजार रुपये प्राइवेट सेंटरों पर खर्च करने पड़ रहे हैं। 2006 से राजनीति की भेंट चढ़ती रही कैंसर यूनिट

2004 में डब्ल्यूएचओ ने सर्वे में मैनपुरी में सबसे ज्यादा कैंसर रोगियों के मिलने की बात कही थी। सर्वे के बाद 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कैंसर यूनिट की स्वीकृति दी थी। लगभग 10 करोड़ रुपये की लागत से 2008 में जिला अस्पताल में यूनिट बनकर तैयार हुई थी। सत्ता परिवर्तन में काम रुक गया। 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दोबारा इस यूनिट को शुरू कराने की बात कही थी। स्थिति यह रही 13 वर्षों के बाद भी कैंसर यूनिट को लेकर राजनीति खेली जा रही है। आज तक कोई भी सरकार कैंसर रोगियों को राहत नहीं दिला सकी है। ये हैं स्वास्थ्य से जुड़ीं मुख्य दिक्कतें

- सर्जरी और सीजर से जुड़ीं सामान्य दवाओं और चिकित्सीय सामग्री का अस्पतालों में न होना।

- विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी।

- अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, डिजिटल एक्स-रे सहित दूसरी रक्त जांचों की सुविधा न होना।

- मेडिकोलीगल की महिला अस्पताल में व्यवस्था न होना।

- गर्भवती महिलाओं के सुरक्षित प्रसव के लिए उन्हें सैफई और आगरा रेफर करना।

- पर्याप्त दवाओं की अनुपलब्धता। इन चिकित्सकों की है कमी

जिला चिकित्सालय में बाल रोग विशेषज्ञ, सर्जन, ईएनटी विशेषज्ञ, ह्दय रोग विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, फिजीशियन, अस्थि रोग विशेषज्ञ सहित स्टाफ नर्सों की कमी है। महिला चिकित्सालय में स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ की कई वर्षों से कमी बनी हुई है। एक नजर में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति

अस्पताल सृजित पद कार्यरत रिक्त

जिला चिकित्सालय 26 10 16

महिला चिकित्सालय 08 04 04

100 शैय्या विग 18 03 15

पीएचसी व सीएचसी 145 45 100


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