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जय हिद- 13 साल के देश प्रेमी ने लिखी थी बेवर बलिदान की गाथा

14 अगस्त1942 में देशप्रेमियों ने थाने पर फहराया था झंडा 24 घंटे तक जमाए रहे थे कब्जा जंग में शहीद हुए थे कई क्रांतिकारी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Aug 2019 10:16 PM (IST)Updated: Tue, 13 Aug 2019 06:26 AM (IST)
जय हिद- 13 साल के देश प्रेमी ने लिखी थी बेवर बलिदान की गाथा
जय हिद- 13 साल के देश प्रेमी ने लिखी थी बेवर बलिदान की गाथा

मैनपुरी, दिलीप शर्मा। आजादी की जंग का इतिहास मैनपुरी के क्रांतिवीरों की वीर गाथाओं से भरा पड़ा है। 1857 में मैनपुरी छह माह तक आजाद रही थी। वहीं अगस्त क्रांति के दौर में बेवर के वीरों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। 13 साल के एक देशप्रेमी छात्र ने बेवर में क्रांतिकारियों के बलिदान की गौरवमयी कहानी की नींव रखी थी। पूरा बेवर क्रांति के रंग में सराबोर हो गया था। इस दौरान अंग्रेज सरकार के नुमाइंदों को खदेड़ थाने पर तिरंगा फहरा दिया था। बाद में अंग्रेज सरकार ने दमनकारी नीति अपनाई और क्रांतिकारियों पर गोलियां बरसाई थी। इसमें छात्र सहित कई क्रांतिकारी शहीद हुए थे।

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सन 1942 में महात्मा गांधी ने पूर्ण आजादी का नारा देख अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। मैनपुरी में इसकी शुरुआत हुई तो 11 और 12 अगस्त को बेवर में हीरालाल दीक्षित और कढ़ोरीलाल गुप्ता गिरफ्तार कर लिए। इसके विरोध में 14 अगस्त को नगर के टाउन मिडिल स्कूल के छात्रों ने क्रांतिकारियों के साथ नगर में जुलूस निकाला। इसका नेतृत्व 13 वर्षीय छात्र कृष्ण कुमार मिश्र कर रहे थे। छात्रों का जोश देख उनके अभिभावक, दुकानदार और क्रांतिकारी शामिल हुए थे। इस बीच रास्ते में गयाप्रसाद को थानेदार ने गिरफ्तार कर लिया। इससे आक्रोशित बेवर वासियों ने गयाप्रसाद को पुलिस की पकड़ से छुड़ा लिया। भीड़ के तेवर देख थानेदार सिपाहियों के साथ वहां से निकल थाने पहुंच गया। जुलूस जब थाने पहुंचा तो थानेदार ने छात्रों से पूछा कि वे क्या चाहते हैं? इस पर उन्होंने तिरंगा लहराने की बात कही। क्रांतिकारियों की संख्या और जोश को देखकर उनको अनुमति दी गई। फिर क्या था, छात्रों ने थाने के भवन पर तिरंगा फहरा दिया। इस घटनाक्रम की जानकारी तत्कालीन कलक्टर को मिली तो उसने प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए। मैनपुरी से एक पुलिस दल भी बेवर भेज दिया गया। विरोध में सख्ती से कुचलने के आदेश दिए गए थे।

14-15 अगस्त,1942 की रात में ही बेवर से महाराम, सूबेदार आर्य, शंभूदयाल, मन्नीलाल आदि को गिरफ्तार कर लिया गया। 15 अगस्त की सुबह इसकी खबर मिलते ही पूरे नगर में आक्रोश फैल गया। छात्राओं ने गिरफ्तार नेताओं को थाने से छुड़ाने के लिए दोपहर में फिर जुलूस निकाला। इस जुलूस में बेवर की जनता बच्चों के साथ निकल पड़ी थी। गया प्रसाद जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे, जबकि उनके खिलाफ वारंट जारी था। जुलूस वंदे मातरम के जयघोष करते हुए थाने तक पहुंच गया। यहां पुलिस ने बंदूकें तान रखी थीं। पुलिस ने गया प्रसाद को गिरफ्तार करना चाहा तो जूलूस में शामिल लोगों ने उनको घेरे में ले लिया। इसके बाद पुलिस ने क्रांतिकारियों पर फायरिग शुरू कर दी। जमुना प्रसाद त्रिपाठी को सबसे पहले गोलियां लगीं। इसके बाद कृष्ण कुमार मिश्रा और सीताराम गुप्ता गोलियों का शिकार हुए। इनकी शहादत मौके पर ही हो गई। घटना में भोलानाथ दीक्षित, सुरजन सिंह, लालता प्रसाद, नाथूराम, रामस्वरूप, आनंद स्वरूप भी गोली लगने से घायल हो गए। इससे जुलूस तितर-बितर हो गया। बेवर की इस बलिदान गाथा का इतिहासकार एवं साहित्यकार श्रीकृष्ण मिश्रा एडवोकेट ने अपनी पुस्तक समग्र मैनपुरी में पूरा उल्लेख किया है। हालांकि बेवर के इस बलिदान के बाद क्रांति की ज्वाला थमने के बजाय और सुलगती रही। आसपास के गांवों के लोगों ने अंग्रेज सरकार से लोहा लिया था। गोली लगने के बाद भी न गिरने दिया तिरंगा

समग्र मैनपुरी पुस्तक में लिखा गया है कि पहली गोली क्रांतिकारी जमुना प्रसाद त्रिपाठी के माथे में मारी गई थी। उनके शहीद होते ही छात्र कृष्ण कुमार मिश्रा हाथ में तिरंगा लिए आगे बढ़े। इस पर सिपाहियों ने उनके दांये हाथ में गोली मारी। गोली लगने के बाद कृष्ण कुमार ने अपने बांये में तिरंगा पकड़ा और आगे बढ़ने लगे। फिर उनकी जांघ में गोली लगी, परंतु इसके बाद भी वह नहीं रुके तो तीन गोलियां और मारी गईं। इसके बाद भारत मां का ये लाल तिरंगा आसमान की ओर किए हुए नीचे गिर पड़ा था। अमन सभा में जाने की आलोचना से जागा था छात्रों का देशप्रेम

अगस्त क्रांति की शुरुआत के बाद अंग्रेजों ने बेवर में 12 अगस्त को अमन सभा की थी, जिसमें टाउन मॉडल स्कूल के छात्र शामिल हुए थे। अगले दिन नगर में लोगों ने सभा में शामिल होने वालों की निदा की। इससे छात्रों को आत्मग्लानि का अहसास हुआ और उसके बाद ही 14 अगस्त को जूलूस निकालने का फैसला लिया गया था। प्रधानाचार्य ने उतरवाकर रख लिया घंटा

14 अगस्त के लिए छात्रों की योजना था कि घंटा बजते ही सभी जुलूस बनाकर निकलेंगे। छात्र घरों से लाठियां साथ लाए थे। प्रधानाचार्य को इसकी भनक लगी तो उसने घंटा ही उतरवा कर रख लिया। तब जगदीश नारायण त्रिपाठी ने प्रधानाचार्य को चकमा दिया और उनके कमरे में जाकर घंटा बजा दिया था।


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