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पुरातन रीति-रिवाजों में छिपा वैज्ञानिक दृष्टिकोण

मैनपुरी, बेवर : पुरातन रीति रिवाजों को तर्क के आधार पर देखे जाने पर हम पाते हैं कि उनके पीछे कोई

By Edited By: Published: Wed, 30 Sep 2015 07:12 PM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2015 07:12 PM (IST)
पुरातन रीति-रिवाजों में छिपा वैज्ञानिक दृष्टिकोण

मैनपुरी, बेवर : पुरातन रीति रिवाजों को तर्क के आधार पर देखे जाने पर हम पाते हैं कि उनके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण छिपा होता है। धर्म और विज्ञान का विशेष संबंध है हमारे ऋषियों-मुनियों ने धर्म सिद्वांत बना कर उन्हें आस्था से जोड़ दिया जिससे मानव कल्याण के लिए वह परंपरा बन जाए। गंगा को माता की मान्यता दी तो उसके जल में तांबा जैसे तत्वों का समावेश बना रहे और गंगाजल हमेशा शुद्ध बना रहे तो परंपरा डाल दी कि जब भी कोई नदी अथवा नहर पार करेगा तो उसमें सिक्कों को डालेगा। धीरे धीरे यह एक मान्यता और परंपरा बन गई लेकिन आज जब सिक्का ही शुद्ध नहीं है तो फिर उसे गंगा अथवा किसी नदी में डालने का क्या औचित्य? पुराने जमाने में खाना खाने के स्थान को पहले शुद्ध गाय के गोबर से लीपा जाता था उसी स्थान पर स्नान करने के पश्चात अल्प वस्त्रों में भोजन करने का चलन था जिसके पीछे वैज्ञानिक शोच रही कि साफ सुथरा स्थान पर साफ सुथरे वस्त्रों के साथ भोजन करने से वाह््य विकारों से बचा जा सकता है। कालांतर में धीरे धीरे हम पाश्चात्य सभ्यता को अपनाते चले गए आज बिना स्नान किए जूता आदि पहने पहले खुले में असुरक्षित स्थान पर भी भोजन करने लगे हैं। जिसका परिणाम भी स्पष्ट है कि तमाम प्रकार की बीमारियां घेरने लगी हैं। नई पीढ़ी में हमें संस्कार देने होंगे। प्रचलित मान्यताओं को तर्क की कसौटी पर परखना होगा और फिर विचार करना होगा कि प्रचलित मान्यता हमारे लिए कहां तक उपयोगी हैं। तर्क के आधार पर किए गए अन्वेषण का नाम विज्ञान है। शरीर से पसीना निकलने के बाद यदि हमें ठंड लगती है तो उसके पीछे उत्वेदन का सिद्धांत काम कर रहा है हमें नीम के पेड़ के नीचे विश्राम करना आवश्यक क्यों है इसके पीछे तर्क है कि नीम विशेष प्रकार का एंटीवायटिक वृक्ष है इससे प्राणवायु तो निकलती ही है और वह अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध और निरोगी होती है। बच्चों को तर्क करने की आदत डालनी चाहिए तर्क सुसंगत होना चाहिए कुतर्क हमेशा विपरीत दिशा में ले जाता है। तर्कसंगत विचारों की श्रंखला से निकला परिणाम ही वैज्ञानिक सोच है। यह विचार शुरुआती अवस्था से ही बच्चों में समाहित करने चाहिए। धीरे धीरे जटिल समस्याओं को भी तर्क के आधार पर परखने का कौशल स्वत: पैदा हो जाएगा। बिना सोचे समझे परिपाटी पर चलना सभ्यता और विकास के लिए अभिशाप होता है।

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डॉ. उदय शर्मा, प्रधानाचार्य, बाल भारती हायर सेकेंड्री स्कूल, बेवर।

छात्र बोले

कृषि के लिए आधुनिक उपकरणों का लगातार इजाफा हो रहा है। सड़कों पर दौड़ती कीमती गाडि़यां वैज्ञानिक सोच का ही परिणाम हैं।

स्वप्निल चौबे।

विज्ञान के बढ़ते कदमों के कारण हम आज अंतरिक्ष पर यात्रा कर रहे हैं। आज हम शक्तिशाली भारत में निवास कर रहे हैं। हमारे पास अनेकों ऐसे वैज्ञानिक हैं जो अन्य देशों के पास नहीं हैं।

प्रशांत दुबे।

हम जिस कार्य को करते हैं, उसका तर्कसंगत होना बेहद जरूरी है। तभी हम कुछ अच्छा करने में कामयाब हो सकेंगे।

सुषमा शाक्य।

वैज्ञानिक सोच प्रत्येक व्यक्ति के अंदर होनी चाहिए। तरक्की का रास्ता बिना वैज्ञानिक सोच के तय नहीं किया जा सकता। शिक्षा के क्षेत्र में भी हमें तर्क संगत जवाब ही प्रस्तुत करने चाहिए।

प्रियंका।


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