कवियों ने हंसाने गुदगुदाने के साथ विचार को गंभीर ¨बदु छोड़े
जागरण संवाददाता, महोबा: कजली महोत्सव का सांस्कृतिक मंच चौथे दिन कवि सम्मेलन के नाम रहा। देश्
जागरण संवाददाता, महोबा: कजली महोत्सव का सांस्कृतिक मंच चौथे दिन कवि सम्मेलन के नाम रहा। देश व प्रदेश के ख्यातिलब्ध कवियों ने श्रोताओं को हंसने, ताली बजाने व गीतों पर झूमने को विवश किया। डाक्टर विष्णु सक्सेना के गीत हों या कविता तिवारी की कविता या श्रीप्रकाश पटैरिया का ओर एक एक पंक्तियों पर श्रोता तालियां बजा कर कवियों का उत्साहवर्धन करने को मजबूर हो रहे थे।
पियूष नगायच के संयोजकत्व में शाम 8 बजे से शुरू हुए कवि सम्मेलन में कविता तिवारी ने सरस्वती वंदना से सम्मेलन की शुरुआत की।
इसके बाद राजेन्द्र राजन, अन्सार कम्बरी, श्रीप्रकाश पटैरिया, डा. विष्णु सक्सेना, किरण जोशी, तेज नारायण बेचैन, श्रीमती अनु सपन, श्री मनवीर मधुर, जलाल मयकश, पदम अलबेला, श्री अनिल अमल आदि कवियों ने लोगों के सामने हास्य, ओज व व्यंग्य के माध्यम से देश की दशा पर गंभीर टिप्पणी कर ते हुए विचार के लिए बिन्दु दिए।
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न्यूक्लियर परिवार की सोच ने देश की संस्कृति पर प्रहार किया है। जीवन की भागमभाग में हमने परस्पर प्रेम को भुला दिया है। कवि सम्मेलन के मंचों पर हमारा यही प्रयास रहत है कि हम प्रेम का संदेश देकर समाज में भाई चारा स्थापित करने का संदेश दें।
डा. विष्णु सक्सेना
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कविता कि गरिमा न कभी कम हुई और न होगी। जरूरत यह देखने कि है कि हम समाज के सामने परोस क्या रहे हैं। हमारी परोसी चीज से ही कविता भीड़ से नीड़ में या नीड़ से भीड़ में पहुंचती है। केवल तालियां बजवाने के लिए हल्के चुटकुले कवि सम्मेलनों की गरिमा गिराते हैं।
मनवीर मधुर
जैसे एक पिता पुत्री का रचयिता होता है और उसकी रक्षा करता है, उसी तरह हम कविता के रचनाकार हैं। जिस तरह हम पुत्री के गौरव की रक्षा करते हैं ठीक उसी तरह अपनी रचना से कविता के भी गौरव की रचना कर रहे हैं। कोई पिता अपनी पुत्री को फूहड़ संस्कार नहीं देना चाहता, इसी तरह कोई गंभीर कवि अपनी रचना में फूहड़ता नहीं लगाना चाहता।
श्रीप्रकाश पटैरिया
काव्य का जन्म अध्यात्म से हुआ, वाल्मीकि ने क्रोंच पक्षी की कराह से आहत हो कर काव्य का रचनात्मक विस्फोट किया। आज तकनीकी संस्थानों में भी कविता पसंद की जा रही है यह एक सुखद संकेत है। जो पीढ़ी पढ़ाई के दबाव में हिन्दी से दूर रहते थे हमारे कवियों ने उन्हें कविता के माध्यम से हिन्दी से जोड़ा है, यह संस्कृति रक्षा के लिए अच्छी निशानी है।
सुश्री कविता तिवारी
जीवन जब किसी की कमी महसूस होती है तो काव्य की हूक उठती है। वहीं हूक कविता बन कर प्रस्फुटित हो कर समाज को दिशा देती है। पीड़ा के बिना भाव की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। जैसे रत्नावली के प्रेम में पागल तुलसी को उसकी फटकार ने पीड़ा दी और तुलसी आज तुलसीदास के रूप में पूजे जा रहे हैं उसी तरह जब तक दिल से कमी का एहसास नहीं होगा काव्य प्रस्फुटित नहीं होगा।
डा. अनु सपन