Move to Jagran APP

नन्हे श्रमदानी ने जेब खर्च से खरीदे तसले

जागरण संवाददाता, महोबा : जुनून है जहन में तो हौसले तलाश करो, मिसाले-आबे-रवां रास्ते तलाश्

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Jun 2018 06:20 PM (IST)Updated: Fri, 15 Jun 2018 06:20 PM (IST)
नन्हे श्रमदानी ने जेब खर्च से खरीदे तसले
नन्हे श्रमदानी ने जेब खर्च से खरीदे तसले

जागरण संवाददाता, महोबा : जुनून है जहन में तो हौसले तलाश करो, मिसाले-आबे-रवां रास्ते तलाश करो। ये इज्तराब रगों में बहुत जरूरी है, उठो सफर के नए सिलसिले तलाश करो..। दिलों में हौसला और जज्बा लाने के लिए किसी शायर की यह चंद पंक्तियां काफी है। इन्हें चरितार्थ होते देखना है तो चले आईए दो हजार फीट ऊपर ऐतिहासिक गोरखगिरि पर्वत और मिलिए नन्हे श्रमदानी अंश से।

loksabha election banner

बता दें कि यहां श्रमदानियों द्वारा पिछले 20 दिनों से गोरख सरोवर की खोदाई में श्रमदान किया जा रहा है। नन्हे श्रमदानी अंश अपने साथी बच्चों के साथ बड़ों का हौसला बढ़ा रहे है। जिला अधिवक्ता समिति के महामंत्री चंद्रशेखर स्वर्णकार के पुत्र अंश इस बार हाईस्कूल में गए है और वह ज्ञानस्थली पब्लिक स्कूल के छात्र है। गर्मी की छुट्टी होने के कारण अपने पिता के साथ रोज सुबह 5.30 बजे गोरख सरोवर में श्रमदान करने आते हैं। कई दिनों की खोदाई के बाद तसले पुराने हुए और लोगों को परेशानी हुई। अंश के मन में कौंध हुई और उसने घर जाकर अपनी गोलक को तोड़ा और जितने पैसे निकले उससे दस नए तसले बाजार से खरीदे और इन्हें श्रमदानियों को भेंट किए। अंश ने श्रमदानियों को प्रेरणा देकर उनका जज्बा और हौसला बढ़ाया है। सभी बच्चे के इस हौसले को सलाम करते है। श्रमदान के 20वें दिन बुंदेली समाज संयोजक तारा पाटकार, मुकुलजी, प्रशांत गुप्त, पवित्र पाटकर, राजीव तिवारी, शोभालाल यादव, माधव खरे, अजय चौरसिया, कृष्ण गोपाल द्विवेदी, डा. एलसी अनुरागी व अंचल सोनी का कहना है कि यदि आज की युवा पीढ़ी भी अंश से प्रेरणा ले तो पत्थरों में भी फूल खिलाए जा सकते है। श्रमदानियों के हौसलों को देखकर जुबां से बस यही निकलता है कि मंजिल न दे चराग न दे हौसला तो दे दे, तिनके का ही सही तू मगर आसरा तो दे दे।

सेवानिवृत्त फौजी ने भी भरा जोश

गोरखगिरि पर्वत पर बने गोरख सरोवर में चल रहे श्रमदान के दौरान 20वें दिन शुक्रवार को शहर के निवासी वरिष्ठ फौजी कृष्णाशंकर जोशी भी पहुंचे। श्री जोशी वर्ष 1965 व 1972 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में विजयी भारतीय सेना के अंग थे। उन्होंने सरोवर पहुंचकर श्रमदानियों का जोश बढ़ाया। उनका मानना है कि समाजसेवा ही सच्ची देशसेवा होती है। सभी को अपनी मातृभूमि व देशहित के लिए आगे आकर अपना अमूल्य योगदान देना होगा। सिद्ध बाबा के पावन स्थल पर हो रहा श्रमदान अपने आप में ही सबसे पुण्य का कार्य है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.