जैतपुर की सेना ने अंग्रेजी छावनी को किया था ध्वस्त
अभिषेक द्विवेदी, महोबा महाराजा छत्रसाल के वंशजों जैतपुर के राजा पारीक्षत व उनकी रानी ने
अभिषेक द्विवेदी, महोबा
महाराजा छत्रसाल के वंशजों जैतपुर के राजा पारीक्षत व उनकी रानी ने देश पर हुकूमत करने वाली गोरों की सेना को कई बार अपने अदम्य साहस का परिचय देकर घुटने टेकने को मजबूर कर दिया। जिसका अंग्रेजों ने लोहा माना। जिसकी चर्चाएं आज भी बुजुर्गों की जुबां पर सुनाई देती है। जैतपुर के राजा रानी को अंग्रेजों ने कानपुर में नजरबंद किए जाने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वहां से लौटने के बाद फिर अंग्रेजों से लोहा लिया और अपनी छोटी सी जैतपुर की सल्तनत का अंग्रेजी राज्य में विलय कराया। यहां बना राजा का किला आज भी उनके शौर्य एवं पराक्रम की गवाही देता है। जिसे देखने के लिए लोग यहां पहुंचते है और इतिहास से रूबरू होते है। हालांकि वर्तमान में इस किले की ओर कोई ध्यान न देने से यह दुर्दशा पर सिसकियां भर रहा है।
बात उस समय की है जब देश गोरों का गुलाम था। 1841 में जब जैतपुर सहित अन्य राजाओं ने एकसूत्र में बंधकर अंग्रेजी सेना से मोर्चा लेने का निर्णय लिया और उनकी हुकूमत को ध्वस्त करने का संकल्प लिया था। लेकिन मौकापरस्त पसंद चरखारी राज्य का समर्थन नहीं मिला। फिर भी छोटे से राज्यों ने हिम्मत नहीं हारी और अपने लिए संकल्प को पूरा किया। छोटे से राज्य जैतपुर ने कैथा गांव में बनी बड़ी अंग्रेजों की छावनी को साहस का परिचय दिखाते हुए उसे ध्वस्त कर दिया। इसके अंग्रेजों ने नई विशाल सेना बनाई और जैतपुर में राजा पारीक्षत के राज्य की घेराबंदी कर दी। राजा व उनकी सेना ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया लेकिन अंग्रेजों ने राजा रानी को कैद कर उन्हें कानपुर भिजवा दिया जहां वह नजरबंद रहे। इतिहासकार डा. एलसी अनुरागी बताते है कि राजा रानी को वहां पेंशन भी दी गई। रानी को कुछ दिन बाद नजरबंदी से मुक्त कर दिया। इसके बाद 1858 में पारीक्षत की रानी ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में पूर्ण योगदान देकर जैतपुर का नाम ऊंचा किया और हारकर जैतपुर को अंग्रेजी हुकूमत ने अपने राज्य में मिलाया। यहां का किला आज भी राजा पारीक्षत और उनकी रानी व सेना के अदम्य साहस और शौर्य की मूक गवाही देता है।