पान के गढ़ महोबा में तबाही के कगार पर किसान
महोबा का पान अपने मान की लड़ाई लड़ रहा है। मौसम की मार और सिंचाई संसाधनों के अभाव में पान किसान तबाह हो गए हैं।
महोबा [अजय दीक्षित]। महोबा का पान अपने मान की लड़ाई लड़ रहा है। मौसम की मार और सिंचाई संसाधनों के अभाव में पान किसान तबाह हो गए हैं। नौवीं शताब्दी से चली आ रही पान की खेती अब सिमट कर रह गई है। सरकार की ओर से अनुदान की घोषणा की गई है तो उम्मीद लगाई जा रही है कि पान की खेती से किनारा कर रहे किसान फिर इससे जुड़ेंगे, साथ ही नए किसान भी।
600 से घटकर अब 60 एकड़ में ही खेती
एक अनुमान के अनुसार महोबा में 1960 के आस-पास लगभग 150 एकड़ क्षेत्र में पान की खेती होती थी। 70 से 80 के दशक में रकबा चार सौ एकड़ के करीब पहुंच गया। वर्ष 2000 में यह करीब 600 एकड़ था। इसके बाद मौसम की मार और शासन की उपेक्षा से लगातार रकबा घटता रहा। अब 60 एकड़ के करीब ही पैदावार बची है।
पान की खेती अतिवृष्टि, अनावृष्टि, पाला, गर्मी, आग, आंधी, तूफान एवं ओलावृष्टि आदि कारणों से चौपट हो गई। हालात अब भी नहीं बदले हैं। किसान रज्जू, राजेंद्र, अरविंद, महेश चौरसिया का कहना है कि अब पान कृषक भुखमरी के कगार पर जा पहुंचे हैं।
जो गिर कर टुकड़े-टुकड़े हो जाए वह देशावरी
पान जो गिरकर टुकड़ेटुकड़े हो जाए, वही महोबा का करारा देशावरी पान है। देशावरी पान में करारापन, कम रेशे, हल्की कड़वाहट होती है। पत्ता गोल व नुकीला होता है। अन्य पान की बात करें तो सांची पान मोटा, हरा तथा अधिक रेशेदार होता है। कपूरी पान हल्का कड़वा होता है। पत्ती हल्के पीले रंग की होती है। बांग्ला पान
का स्वाद कड़वा होता है। सौंफिया पान में रेशे कम होते हैं, सौंफ की सुगंध तथा मीठे स्वाद का होता है। पत्ता गहरे हरे रंग का होता है।
इतिहास के आईने में पान का मान
कभी महोत्सव नगर के नाम से मशहूर रहा बुंदेलखंड का यह इलाका चंदेल और प्रतिहार शासकों का गढ़ रहा था। खजुराहो, कालिंजर, चित्रकूट, गोरखगिरी पर्वत, आल्हा-ऊदल... यहां के चप्पे-चप्पे पर इतिहास की छाप है। महोबा में पान का युद्ध संस्कृति से भी नाता रहा है। रिवाज था कि किसी से युद्ध करना हो तब चांदी के थाल में पान रखा जाता था। इसे बीड़ा कहते थे जो वीरों के लिए चुनौती के रूप में आता था। महोबा के पान के लिए जंग भी हो गईं।
राजस्थान से पहुंचा था बुंदेलखंड
नौवीं सदी में महोबा में चंदेल नरेश ने पान की बेल राजस्थान के उदयपुर-बासवाड़ा से यहां मंगाई थी और गोरखगिरी के पश्चिमी क्षेत्र में रोपित कराई था। बुंदेलखंड में पछुआ व दक्षिणी हवाएं ज्यादा ही गर्म होती हैं, इसलिए पान के बरेज मदनसागर, कीरत सागर व अन्य सरोवरों के किनारे-किनारे लगाई गईं ताकि पर्याप्त सिंचाई हो सके। चंदेल शासन में पान कृषि का महत्वपूर्ण अंग था।
दरीबा पान विपणन केंद्र
वर्ष 1905 के गजेटियर में महोबा को दरीबा पान विपणन केंद्र कहा गया। यहीं से पान रेलमार्ग से दिल्ली, मुंबई, सूरत, पुणे तथा देश के विभिन्न शहरों व पाकिस्तान आदि देशों को सप्लाई होता था।
बिन पानी सब सून
बुंदेलखंड के इस इलाके में नौवीं शताब्दी में शुरू हुई थी पान की खेती
- मौसम की मार और जल संसाधनों की कमी ने किया तबाह
- साल 2000 में 600 एकड़ था रकबा, अब 60 पर सिमटा