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खटारा बसों से मंजिल तक पहुंचना मुश्किल

जागरण संवाददाता, महोबा: एकमात्र झांसी-बांदा रेलवे ट्रैक होने से जनपद से अन्य जगह यात्रा के लिए

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Sep 2018 11:16 PM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 11:16 PM (IST)
खटारा बसों से मंजिल तक पहुंचना मुश्किल
खटारा बसों से मंजिल तक पहुंचना मुश्किल

जागरण संवाददाता, महोबा: एकमात्र झांसी-बांदा रेलवे ट्रैक होने से जनपद से अन्य जगह यात्रा के लिए रोडवेज बस ही सहारा है। यात्रियों को सुविधा देने का दावा करने वाले महोबा रोडवेज डिपो की बसों की हालत कुछ ज्यादा ही खराब है। खटारा बसों से मंजिल तक पहुंचना यात्रियों को मुश्किल ही लगता है। इसका फायदा निजी बस संचालक उठाते हैं और सरकार को राजस्व का चूना लगा रहे हैं।

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महोबा डिपो की 113 बसों में से अधिकांश पुरानी हो चुकी हैं। सात बसें कबाड़ में खड़ी हैं और पांच बसें 12 साल से ज्यादा पुरानी हो गई हैं। बीते दो साल से डिपो में एक भी नई बस नहीं आई है। लखनऊ, दिल्ली, राठ, सागर, बांदा, इलाहाबाद सहित लगभग एक दर्जन रास्तों पर चलने वाली बसें डिपो को 10 लाख रुपये प्रतिमाह से अधिक की आय दे रही हैं। इसके बाद भी अधिकांश बसों के फ‌र्स्ट एड बॉक्स में दवाएं रहती ही नहीं हैं। अग्नि शमन यंत्र कुछ ही बसों में दिखाई देते है। वर्कशॉप में मरम्मत के बाद चलने वाली बसों की कोई गारंटी नहीं रहती है। खराटा रोडवेज बसों का फायदा निजी बस संचालक उठाते हैं। रोडवेज के पीछे तहसील डाक बंगला रोड पर संचालित निजी बसें आराम से सवारियां ढोकर रोडवेज को चूना लगा रही हैं।

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चालक की सतर्कता से बची यात्रियों की जान

कुछ दिन पहले सवारियां भर कर कुलपहाड़ जा रही डिपो की बस के पहिए के बोल्ट खुल गए। यह तो गनीमत रही कि चालक ने समय रहते बस की चाल भांप कर गाड़ी साइड में लगा चेक किया, वरना बड़े हादसे से इन्कार नहीं किया जा सकता था। मामले में डिपो के एआरएम ने बस को ओके सिग्नल देकर निकालने वाले कर्मचारी से सवाल जवाब कर काम पूरा मान लिया।

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डिपो के बेड़े की बसों का पर्याप्त रखरखाव किया जाता है। मैकेनिकल गलती से हादसे न हों, इस पर पूरी सतर्कता रखी जाती है। हाल ही में उच्चाधिकारियों से डिपो के लिए दो नई एसी बसों की मांग की गई है।

-आरएस चौधरी, एआरएम, महोबा डिपो


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