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डेयरी फार्मिंग व कम्पोस्ट मे¨कग से बनें आत्म निर्भर

जागरण संवाददाता, महोबा: बहुआयामी डेयरी फार्मिंग का प्रशिक्षण लेकर मौजूदा समय जैविक खेती

By JagranEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 06:13 PM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 06:13 PM (IST)
डेयरी फार्मिंग व कम्पोस्ट मे¨कग से बनें आत्म निर्भर
डेयरी फार्मिंग व कम्पोस्ट मे¨कग से बनें आत्म निर्भर

जागरण संवाददाता, महोबा: बहुआयामी डेयरी फार्मिंग का प्रशिक्षण लेकर मौजूदा समय जैविक खेती के चलन का लाभ भी लिया जा सकता है। थोड़े से प्रशिक्षण के बाद किसान खुद आत्म निर्भर होकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं।

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यह बात आल बैंक ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान में 10 दिवसीय डेयरी फार्मिग एवं वर्मी कम्पोस्ट मे¨कग प्रशिक्षण कार्यक्रम के शुभारम्भ पर वक्ताओं ने कही। संस्थान के निदेशक अमित कुमार ने बताया कि यह प्रशिक्षण ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत चलाया जा रहा है। सभी लोग इस प्रशिक्षण का लाभ लें और स्वरोजगार स्थापित कर आत्म निर्भर बनें। इलाहाबाद बैंक प्रधान कार्यालय कोलकाता के मुख्य प्रबंधक सीपी जैन ने कहा कि वर्तमान समय में डेरी फार्मिंग बहुआयामी है, एवं जैविक खेती का चलन भी जोरो पर है। जैन ने समस्त अभ्यर्थियों को आत्म निर्भर बनकर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने की बात कही। अग्रणी जिला प्रबंधक एसके साहू ने कहा डेयरी एवं वर्मी कम्पोस्ट व्यवसाय के जरिये स्वरोजगार स्थापित कर आर्थिक स्तर को बेहतर बनाया जा सकता है। साहू ने कहा कि यह व्यवसाय ग्रामीण उद्यमिता के लिये बेहद प्रभावी है। उन्होने जैविक खाद का इस्तेमाल कर भूमि की उर्वरा शक्ति बढाने की सलाह दी। संकाय सदस्य तन्मय पाण्डेय ने बताया कि बुन्देलखण्ड में दुग्ध की आपूर्ति मांग के अनुरूप काफी कम है, जिससे दुग्ध का उत्पादन जितना भी अधिक से अधिक किया जाए उसकी खपत सुनिश्चित है। डेयरी की महत्ता पर प्रकाश डालते हुये पाण्डेय ने कहा कि यह व्यवसाय आर्थिक रुप से मजबूती प्रदान करने वाला एवं दुग्ध के विभिन्न उत्पाद दही, छाछ, घी, मक्खन, पनीर आदि का विक्रय करके अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है। पाण्डेय ने बताया कि वर्तमान में केमिकल युक्त खाद का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे खेती की उर्वराशक्ति क्षीण होने के साथ उसके उत्पाद का सेवन मानव शरीर के लिये हानिकारक होता है। अत: उसके स्थान पर जैविक-कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करने से खेती की उर्वराशक्ति तो बढ़ती है साथ ही पैदा की जाने वाली फसल मानव स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद है।


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