जनपद की राजनीति के पितामह बाबूलाल तिवारी का निधन
जागरण संवाददाता, महोबा: जीवन के 103वें वर्ष में कदम रखने वाले जनपद की राजनीति के पितामह और
जागरण संवाददाता, महोबा: जीवन के 103वें वर्ष में कदम रखने वाले जनपद की राजनीति के पितामह और वयोवृद्ध पंडित बाबूलाल तिवारी आखिरकार बीमारी से ¨जदगी की जंग हार गए।
28 अगस्त 1916 को जन्मे बाबूलाल तिवारी बीते एक वर्ष के अस्वस्थ चल रहे थे। परिवारीजन अक्सर लखनऊ एसजीपीजीआइ में उनके स्वास्थ्य का परीक्षण कराते थे। बुधवार को उनकी हालत बिगड़ने पर दोबारा लखनऊ ले जाया गया जहां उपचार के दौरान मौत हो गई। तिवारी के मौत की सूचना आते ही शहरवासियों में मायूसी छा गई। सुबह से ही तिवारी के घर पर लोगों की भीड़ एकत्र होने लगी। दोपहर 12:00 उनका शव पुष्पांजलि के लिए रामलीला मैदान मंच पर रखा गया, जहां उमड़े जनसैलाब ने अपने प्रिय नेता को भावभीनी विदाई दी। पुष्पांजलि स्थल से शवदाह गृह तक जाते समय लोग गगन भेदी नारे लगा रहे थे। पुष्पांजलि के बाद दोपहर 2:00 बजे राठ रोड शवदाह गृह में बड़े पुत्र चंद्रशेखर तिवारी उर्फ ¨चताहरण ने मुखाग्नि दी।
महात्मा गांधी को कार से सभा मंच तक ले जाने का मिला था गौरव
बीती गांधी जयंती से पहले स्व. बाबूलाल तिवारी ने 25 सितंबर को दैनिक जागरण से हुई बातचीत में बापू के साथ बिताए पलों को याद करते हुए कहा था कि 1939 में जिला कांग्रेस के अध्यक्ष भगवानदार टपोरी के प्रयासों से गांधीजी सत्याग्रह के प्रचार में 21 नवंबर 1939 को प्रांतीय अनाथालय के शिलान्यास में जनपद आए। स्टेशन रोड तिलक हाल में फौरी तौर पर बने अनाथालय में ठहरे। घुटनों तक आधी धोती ऊपर गमछा और एक कंधे में लटकाने वाला कपड़े का थैला यही उनकी पोशाक थी। रात में आने की वजह से अधिक लोगों को जानकारी नही हुई। अनाथालय को विस्तार देने के लिए पं. बैजनाथ तिवारी ने अपनी जमीन दान दी। उस समय रामलीला मैदान में छोटा सा गोल चबूतरा बना कर सभा रखी गई थी। वाहन कम हुआ करते थे। मैं (बाबूलाल तिवारी) अपनी शेरवले कार से बापू को अनाथालय से रामलीला मैदान तक लेकर गया। पहली बार देखा तो लगा कि किसी दिव्य विभूति के दर्शन कर रहा हूं। अब बहुत कुछ याद नहीं रह गया है। लोग गांधीजी को सुनना चाहते थे, इसलिए जिसे जानकारी होती वही रामलीला मैदान की तरफ चल देता था। बापू लोगों से सत्याग्रह में शामिल होने और देश को आजाद कराने की अपील कर रहे थे।
महोबा से तीन बार विधायक रहे तिवारी
स्व. बाबूलाल तिवारी का राजनीतिक सफर भी लंब रहा। पहली बार वे 1980 में निर्दलीय चुनाव लड़ कर जीते। दूसरे चुनाव में वे कांग्रेस में शामिल हो गए।
-1947 से 1957 तक नगर पालिका परिषद महोबा के सदस्य रहे।
-1953 से 1956 तक कॉपरेटिव के डायरेक्टर रहे।
-1957 से 1977 तक नगर पालिका परिषद महोबा के अध्यक्ष रहे।
-1980 से 1991 तक तीन बार विधायक रहे।
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प्लेग की महामारी में युद्धस्तर पर निभाई थी सराहनीय भूमिका
आजादी के पूर्व क्षेत्र में संक्रामक प्लेग ने अपना रौद्र रूप दिखाया था। उस समय सैकड़ों की तादाद में लोगों की मौत हुई। जानकारों के अनुसार ऐसे भयावह संक्रमण में खुद की परवाह किए बिना बाबूलाल तिवारी ने युद्धस्तर पर समाज सेवा की और शवों को कंधों पर लाद कर अंतिम संस्कार कराया था।
शिक्षा का स्तर बढ़ाने में दिया योगदान
स्व. तिवारी महोबा में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने से भी पीछे नहीं हटे। उन्होंने अपने पिता की याद में मुकुंदलाला तिवारी इंटर कालेज का निर्माण कराया जिसे बाद में प्रदेश सरकार ने राजकीय इंटर कालेज के रूप में स्वीकार लिया। वे 1965 से 1971 और फिर 1984 से 2016 तक डीएवी इंटर कॉलेज प्रबंधक भी रहे।
स्व एनडी तिवारी को महोबा से चुनाव लड़ने का दिया था आमंत्रण
पूर्व मुख्यमंत्री स्व. नारायण दत्त तिवारी केंद्रीय मंत्री के रूप काम करने के बाद 1987-89 के दौरान कांग्रेस ने प्रदेश में मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालने के लिए केंद्र से उत्तर प्रदेश भेजा तो बाबूलाल तिवारी ने उन्हें महोबा से चुनाव लड़ने का आमंत्रण दिया। जिसे स्व. तिवारी ने स्वीकार भी किया था। पर हाई कमान ने निर्णय बदलते हुए उन्हें विधान परिषद सदस्य बना कर मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी थी।