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बीमारी व कमजोरी से मर रहे गोवंशीय पशु

गोसदन मधवलिया में लगातार हो रही मौत के बाद जागे प्रशासन ने अब भले ही युद्धस्तर पर तमाम व्यवस्था कर गोवंशीय पशुओं के मौत के आंकड़े में कमी लाने में सफलता पा ली हो लेकिन इसके पहले गोसदन प्रशासन पशुओं के मौत के रिकार्ड के साथ मौत के कारणों को भी छुपाता रहा है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 21 Oct 2019 11:56 PM (IST)Updated: Tue, 22 Oct 2019 06:20 AM (IST)
बीमारी व कमजोरी से मर रहे गोवंशीय पशु
बीमारी व कमजोरी से मर रहे गोवंशीय पशु

महराजगंज: गोसदन मधवलिया में लगातार हो रही मौत के बाद जागे प्रशासन ने अब भले ही युद्धस्तर पर तमाम व्यवस्था कर गोवंशीय पशुओं के मौत के आंकड़े में कमी लाने में सफलता पा ली हो, लेकिन इसके पहले गोसदन प्रशासन पशुओं के मौत के रिकार्ड के साथ मौत के कारणों को भी छुपाता रहा है। जिसका पर्दाफाश संयुक्त निदेशक पशुपालन डा. अनिल शर्मा की टीम द्वारा मृत पशुओं के पोस्टमार्टम के बाद उसके बिसरा जांच के बाद हुआ है।

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दरअसल जिस प्रकार स्थानीय प्रशासन द्वारा ढाई हजार के आंकड़े को दिखाया जाता रहा और वास्तविक गणना में पशुओं की संख्या 954 मिली, उससे लगता है कि पशुओं की भारी संख्या में मौत होती रही, लेकिन प्रशासन इसे छुपाता रहा। गोसदन में केवल 6 पशु शेड हैं। जिसकी कुल क्षमता करीब 12 सौ के लगभग है। बावजूद इसके गोसदन प्रबंधन द्वारा अकेले नगर निगम गोरखपुर से 2500 पशु लिए गए। जबकि गोसदन में इतने पशुओं के चारा भूसा का प्रबंध नहीं था। जिसका नतीजा रहा कि धीरे-धीरे पशु एक-एक कर मरते रहे। जबकि प्रबंधन इसे दूसरा रूप देता रहा।

पशुपालन विभाग लखनऊ के संयुक्त निदेशक डा. अनिल शर्मा ने बताया कि अधिकांश पशु नगरों से गोसदन में आते हैं, इसके साथ ही कुछ ग्रामीण क्षेत्रों से भी आते हैं। जो भी पशु गोसदन को सौंपे जाते हैं। वह पशु पालकों द्वारा वृद्ध व असहाय होने पर ही छोड़े जाते हैं। जिसे छोड़ने के बाद छुट्टा घूमते हुए कोई पोषक व भरपेट भोजन नहीं मिल पाता है। जिससे वह कुपोषित हो जाते हैं, कुछ दिन में ही उसे गोसदन को सौंप दिया जाता है। जहां उसके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो पाता और उनकी मौत हो जाती है।


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