आस्था का केंद्र है बड़हरा महंथ की जगन्नाथ रथ यात्रा
उड़ीसा के पूरी भगवान जगन्नाथ धाम के तर्ज पर देश की प्राचीनतम रथ यात्राओं में विकास खंड के ग्राम सभा बड़हरा महंथ प्राचीन मंदिर से आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को 232 वें वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जा रही है।
महराजगंज : उड़ीसा के पूरी भगवान जगन्नाथ धाम के तर्ज पर देश की प्राचीनतम रथ यात्राओं में विकास खंड के ग्राम सभा बड़हरा महंथ प्राचीन मंदिर से आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को 232 वें वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जा रही है। इस यात्रा में हजारों श्रद्धालु होते हैं। रथ यात्रा की खासियत यह है कि पूरी व देश के अन्य स्थानों पर आयोजित होने वाले रथयात्रा की भांति यहां भगवान जगन्नाथ के साथ उनकी बहन सुभद्रा सवार होती हैं। शनिवार को निकलने वाली यात्रा की तैयारियां जोरों व अंतिम चरण पर पूर्ण हो चुकी हैं। बड़हरा महंथ स्थित प्राचीन भगवान जगन्नाथ मंदिर से पहली बार वर्ष 1786 में रथ यात्रा निकाली गई। अनवरत निकलने वाली रथ यात्रा का ऐतिहासिक महत्त्व है। रथ यात्रा दो बजे भगवान जगन्नाथ मंदिर से निकलेगी। इसके दो सप्ताह पूर्व भगवान को मठाधीश महंथ संकर्षण रामानुज दास सहित अनेक पुजारियों, सेवकों द्वारा ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को गर्भगृह में सर्वऔषधि, गुलाबजल मिश्रित 108 घड़े के जल से भगवान को स्नान कराया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान अस्वस्थ्य हो जाते है। मंदिर के पट को बंद कर दिया जाता है। तुलसी व जायफल के काढ़ा से उनका उपचार किया जाता है। दो सप्ताह के आराम के बाद आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से भगवान अपने भक्तजनों को दर्शन देते है। पूजा, अर्चना, छप्पन भोग, दिन में 12 बजे मंगल आरती के बाद पट को भक्तजनों के दर्शनार्थ खोल दिया जाता है। ततपश्चात लकड़ी के नंदीघोष रथ पर अपनी बहन सुभद्रा, भाई बलदेव के साथ विराजमान होते हैं। ऐसा माना जाता है कि रथ के रक्षक भगवान नर¨सह स्वयं होते हैं। रथयात्रा बरवा दिगम्बर गोपाला स्थित हिरण्य नदी पर पहुंचने पर देव मिलन के उपरांत विधिवत आरती पूजा होती है। इस अवसर पर आयोजित एक दिवसीय मेला के बाद सायं भगवान को गर्भ गृह में स्थापित कर दिया जाता है। पुराणों वर्णित है कि रथयात्रा पर विराजे भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता। मठाधीश महंथ संकर्षण रामानुज दास बताते हैं कि रथ को संवारने के लिए कारीगरों की टीम एक माह से जुटी है। बड़हरा महंथ की यह रथयात्रा देश के प्रचीनतम रथ यात्राओं में से एक है। रथयात्रा की खासियत यह होती है कि आज के दिन भगवान जगन्नाथ के साथ उनकी पत्नी लक्ष्मी की जगह बहन सुभद्रा बैठती हैं। साथ में भाई बलदेव होते हैं। ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को भगवान को बीमार पड़ जाने से मंदिर में गुप्त पूजा अर्चना होती है। मंदिर घंटा, नाद आदि नहीं बजते हैं । दुख का यह क्षण आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को समाप्त हो जाता है। मंदिर के ऐतिहासिक महत्त्व पर उन्होंने बताया कि जब यह पूरा इलाका नेपाल राष्ट्र के अधीन था, तब निचलौल के राजा महादत्त सेन ने 1786 में मठ के लिए जमीन दान दी थी। जगन्नाथपुरी उड़ीसा से आए वैष्णव रामानुज दास ने मठ की स्थापना की थी, तभी से रथयात्रा की परंपरा चली आ रही है।