Holi Special: मुंह में पानी ला देगी गुजिये की ये खास वैराइटी
होली के मौके पर बनने वाली खास गुजिया और पेकडि़या पर स्पेशल स्टोरी।
लखनऊ, [कुसुम भारती]। चाशनी में डूबी, खोवा और मेवा से तैयार गुझिया का स्वाद आमतौर पर पूरे साल चखने को मिलता है। मगर, होली के मौके पर खासतौर से 'पेड़किया का इंतजार होता है। जो घर से लेकर दुकानों तक तैयार की जाती हैं। लखनऊ में आम बोलचाल की भाषा में ज्यादातर लोग पेड़किया को ही गुझिया कहते हैं। जबकि ये दोनों अलग-अलग वैराइटी हैं। आपको बता दें, पेड़किया सूखी होती है और गुझिया चाशनी में डुबोकर बनाई जाती है। पुराने लोग आज भी सूखी गुझिया को पेड़किया ही कहते हैं। होली के स्वागत में घरों से लेकर दुकानों तक गुझिया तैयार होने लगी हैं। चुनिंदा दुकानों पर लखनवी गुझिया के शौकीन परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि देश-विदेश में रहने वाले दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए भी गुझिया खरीद रहे हैं।
गुड़-सोंठ से बनी पेड़किया
एक दुकान के मालिक जागेश कुमार गुप्ता कहते हैं, मेवा और खोवा का स्वाद ही हमारी परंपरा है, जिसे हम पुरखों के जमाने से सहेजे हुए हैं। मिलावट रहित घर जैसी स्वादिष्ट गुझिया ग्राहकों को उपलब्ध कराते हैं। होली के मौके पर गुड़ और सोंठ की पेड़किया की खूब मांग रहती है। मौसम परिवर्तन के चलते गुड़ और सोंठ से बनी पेड़किया शरीर के लिए फायदेमंद होती है। मगर इसे केवल आर्डर पर ही तैयार किया जाता है। फिलहाल, सादी, मेवायुक्त, केसरिया, ड्राई फ्रूट, काजू, पिस्ता से तैयार कई वैरायटी हैं। इनकी कीमत प्रति किग्रा छह सौ रुपये से 1400 रुपये तक है।
नवरतन गुझिया का बेहतरीन स्वाद
चौक स्थित रामआसरे दुकान पर पिछले दो सौ सालों से लखनऊ के लोगों को गुझिया का स्वाद मिल रहा है। दुकान के प्रोपराइटर सुमन बिहारी गुप्ता कहते हैं, वैसे तो होली के मौके पर ज्यादातर लोग अपने घर पर ही गुझिया बनाते हैं, मगर गुझिया के शौकीन हमसे भी खरीदते हैं।इसकी खास वजह यह भी है कि हमारे यहां कई वैरायटी मिल जाती हैं। खांडसारी चीनी से बनी सादी गुझिया में घर जैसा स्वाद मिलता है। इसके अलावा नवरतन, केसरिया, पिस्ता, काजू गुझिया के अलग शौकीन हैं। नौ प्रकार के मेवों से तैयार नवरतन गुझिया की काफी डिमांड रहती है। इनकी देश ही नहीं विदेश में भी मांग है। इस बार भी बाहर के बहुत से आर्डर आ चुके हैं।
आज भी मिल रहा बरसों पुराना स्वाद
होली के मौके पर गुझिया की कई वैरायटी बाजार में रखी गई हैं। कहीं, सादी तो कहीं मेवा भरी और कहीं केसरिया, गुझिया शौकीनों को स्वाद चखा रही है। अमीनाबाद स्थित मधुरिमा स्वीट्स में खरीदारी करने आए गोयल कहते हैं, मैं यहां का परमानेंट कस्टमर हूं। बरसों से इनकी गुझिया का स्वाद चख रहा हूं। आज भी वही पुराना स्वाद मिलता है और यही इनकी खासियत है। हालांकि, अब शुगर का मरीज हूं, मगर होली के मौके गुझिया जरूर खाता हूं।
कई दिन चलती है सूजी की गुझिया
इतिहासकार, डॉ. योगेश प्रवीन कहते हैं, लखनऊ में भाषा और जुबान की बड़ी एहतियात बरती जाती है। खासकर खानपान को लेकर। यहां पुलाव और बिरयानी अलग वैरायटी हैं, मगर ज्यादातर लोग एक ही समझते हैं। वहीं, गुलाब जामुन, काला जाम और रसगुल्ला भी अलग वैरायटी है। काला जाम में अंदर इलायची होती है, गुलाब जामुन सादा होता है और रसगुल्ला सफेद छेने का होता है, जबकि लोग तीनों को रसगुल्ला ही कहते हैं। इसी तरह जिस पर चाशनी चढ़ी होती है, उसको गुझिया कहते हैं, और जो बिना चाशनी के बनती है उसको पेड़किया कहते हैं। मगर लखनऊ वाले अब गुझिया ही कहते हैं।
गुझिया बनाने के लिए पहले औरतें होली से पहले अपने नाखून नहीं काटती थीं क्योंकि गुझिया को गोठने में नाखून की मदद लेती थीं। पहले नाखून से बड़े सहूलियत से गोठी गई गुझिया को लखनऊ वाले बेगम नूरजहां के सिर का ताज भी कहते थे। जिस गुझिया को गोठने में नाखून का ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता था, उसे रस्सीबटान कहते थे। बाद में समय के साथ गुझिया बनाने के तरह-तरह के सांचे भी आने लगे। खोवा से बनी गुझिया ज्यादा टिकाऊ नहीं होती, जबकि सूजी (रवा) से बनी गुझिया ज्यादा दिन तक चलती है। पहले लोग गुझिया में खरबूजा के बीज, चिरौंजी और मेवा डालते थे। अब तो दुकानों में तमाम वैरायटी मिलने लगी हैं। घर की बनी गुझिया स्वाद ही अलग होता है।
घंटों की मेहनत से तैयार होती है गुझिया
मैदा को गूंथकर ढलने के लिए रख दिया जाता है। फिर खोवा को खूब भूना जाता है। इसके बाद खोवा में आवश्यकतानुसार चीनी, मेवा मिलाया जाता है। फिर मैदा को पूड़ी की तरह बेलकर इसमें मावा भरकर हाथ या सांचे की मदद से गुझिया का आकार देकर देशी घी या रिफाइंड में तल लिया जाता है। फिर सादी या चाशनी में डुबोकर खाया जाता है। चाशनी वाली गुझिया के लिए अलग से चाशनी तैयार करके उसमें गुझिया डाली जाती हैं।