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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के सांस्कृतिक व आर्थिक उत्थान के चार साल

योगी सरकार का कनेक्टिविटी देने का काम एक्सप्रेस-वे और एयरपोर्ट के माध्यम से हो रहा है। वास्तविक समृद्धि की कथा तो अभी लिखी ही जा रही है। हां चार साल में इसकी एक तस्वीर उभरनी शुरू हो गई है जिसमें काफी-कुछ रंग भरे जा चुके और दिखने भी लगे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 22 Mar 2021 10:48 AM (IST)Updated: Mon, 22 Mar 2021 10:48 AM (IST)
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के सांस्कृतिक व आर्थिक उत्थान के चार साल
उत्तर प्रदेश पहली बार किसी मुख्यमंत्री की सोच में समग्रता से दिखाई दिया है।

लखनऊ, राजू मिश्र। उत्तर प्रदेश इन दिनों सांस्कृतिक और आर्थिक उत्थान के एक्सप्रेस-वे पर रफ्तार भरना शुरू करने की चौथी सालगिरह का उत्सव मना रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रदेश में सर्वाधिक चार साल पूरा करने वाली पहली भाजपा सरकार अपनी उपलब्धियों के भजन गा रही है। जो लोग प्रदेश की राजनीति पर बारीकी से नजर रखते हैं, वह जानते हैं कि चार साल में न केवल सरकार बदली है, बल्कि बहुत कुछ बदल गया है। अधिकारी तंत्र के काम करने का तरीका, राजनेताओं के सोचने और राजनीति का तरीका। जो सबसे बड़ा बदलाव आया है, वह यह कि उत्तर प्रदेश पहली बार किसी मुख्यमंत्री की सोच में समग्रता से दिखाई दिया है।

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प्रदेश में अब तक जितने मुख्यमंत्री हुए हैं, उनमें यदि नारायण दत्त तिवारी को अपवाद मान लिया जाए तो उनके बाद किसी मुख्यमंत्री की सोच में उत्तर प्रदेश कभी समग्रता से नहीं दिखा। कुछ मुख्यमंत्रियों ने विकास के प्रतीकवाद जरूर गढ़े। कभी सैफई विकास का प्रतीक बना तो कभी लखनऊ-नोएडा के पार्क ही विकास के मानक मान लिए गए। लंबे अंतराल के बाद प्रदेश को एक ऐसा मुख्यमंत्री मिला है जिसकी सोच में गन्ना किसान, ब्रज की धाíमक व आध्यात्मिक भूमि, अवध की आस्थावान धरा, उत्तराखंड और नेपाल से लगे तराई क्षेत्र, बुंदेलखंड के चित्रकूट-महोबा और पूर्वाचल में गोरखपुर से लेकर काशी तक का भूभाग समान रूप से झलकता है।

लखनऊ में शुक्रवार को अवध शिल्पग्राम में प्रदेश सरकार के चार वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित कार्यक्रम में स्वयं सहायता समूह के लाभार्थियों को चेक देते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। जागरण आर्काइव

चार साल में उपलब्धियों की सूची लंबी हो सकती है, लेकिन सरकार की समग्रतावादी सोच से जन्मी दो धाराएं उत्तर प्रदेश के लिए भविष्य के आधार स्तंभ की तरह विकसित हुईं। पहली, ओडीओपी (वन डिस्टिक्ट वन प्रोडक्ट) योजना जो अब ओडीएमपी (वन डिस्टिक्ट मेनी प्रोडक्ट) तक का सफर तय कर चुकी है। शुरुआत में यह योजना लांच करने के पीछे उद्देश्य था कि हर जिला अपनी विशेषज्ञता के एक उत्पाद को लेकर आगे बढ़े। राज्य सरकार इसके लिए छोटे-बड़े उद्यमियों को एक मंच पर लाकर उस उत्पाद के लिए मार्केटिंग चेन बनाए और ब्रांडिंग करे, ताकि रोजगार स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध हो सके और आíथक आधार मजबूत हो। इसकी सफलता का ही उदाहरण है कि अब एक प्रोडक्ट के बजाय कई जिलों से कई-कई प्रोडक्ट को इस योजना का हिस्सा बनाने के प्रस्ताव सरकार के पास पहुंच रहे हैं। हाल ही में गुड़ की ब्रांडिंग के लिए मेला लगाया गया, जिससे उसे नई पहचान मिली है।

आर्थिक व सांस्कृतिक विकास की दूसरी धारा धाíमक पर्यटन के रूप में निकली। जो लोग उत्तर प्रदेश की राजनीति की धुरी केवल अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को मान रहे थे, वे तब चकित हुए जब मुख्यमंत्री ने प्रयागराज के कुंभ को अंतरराष्ट्रीय ब्रांड की तरह प्रस्तुत किया। अयोध्या में शुरू हुई दीपोत्सव की परंपरा हर साल रिकार्ड बनाने लगी और बाद में यह चित्रकूट, काशी, मथुरा सहित पूरे प्रदेश का उत्सव बन गई। मुख्यमंत्री ने धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन को आíथक आधार बनाने की दृष्टि से अयोध्या के साथ नैमिष, देवीपाटन, विंध्याचल, चित्रकूट, काशी और मथुरा में सौंदर्यीकरण के काम कराए।

यात्री और पर्यटक सुविधाओं का विकास कराया और यह काम अब छोटे-छोटे तीर्थो तक कराया जा रहा है, ताकि प्रदेश की पहचान आध्यात्मिक शांति के केंद्र के रूप में उभरे। इस क्रम में श्रवस्ती-कुशीनगर-सारनाथ जैसे बौद्ध पर्यटन स्थलों और आगरा-फतेहपुर सीकरी के सूफी सíकट को सक्रिय करने का काम भी किया जा रहा है। सिर्फ इन स्थलों का ही विकास नहीं कराया गया बल्कि यहां तक कनेक्टिविटी देने का काम भी एक्सप्रेस-वे और एयरपोर्ट के माध्यम से हो रहा है। वास्तविक समृद्धि की कथा तो अभी लिखी ही जा रही है। हां, चार साल में इसकी एक तस्वीर उभरनी शुरू हो गई है, जिसमें काफी-कुछ रंग भरे जा चुके और दिखने भी लगे हैं।

कोरोना से सबक : पिछले साल जब इन्हीं दिनों कोविड-19 का प्रकोप प्रदेश में शुरू हुआ तो सबसे बड़ी मुश्किल थी प्रदेश का जर्जर स्वास्थ्य ढांचा। इसके बावजूद सीमित संसाधनों में ही कोविड के खिलाफ जंग शुरू हुई। लेकिन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दृष्टि सिर्फ इस दैनंदिन लड़ाई तक सीमित न थी। वह इसी दौर में एक ऐसा बुनियादी ढांचा विकसित करने के प्रयास में भी जुटे थे, जो भविष्य में इस तरह की आपदा में और प्रभावी ढंग से काम कर सके।

[वरिष्ठ समाचार संपादक, उत्तर प्रदेश]


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