Navratri 2022: 10 साल से कम उम्र की कन्या पूजन से मिलती है सुख-समृद्धि, पढ़ें शुभ मुहूर्त और महत्व
Shardiya Navratri 2022 नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बड़ा महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही श्रद्धालुओं का नवरात्र व्रत पूरा होता है। लेकिन कन्या पूजन पर कन्याओं की उम्र का बहुत ध्यान रखना होता है।
Shardiya Navratri 2022: लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। नवरात्र की अष्टमी को हवन और नवमी को व्रत का पारण करना उत्तम होता है। पूरे नवरात्र में व्रत रखने वाले नवमी को कन्या पूजन के साथ व्रत का पारण करेंगे। पहले व अंतिम दिन व्रत रखने वाले सोमवार को अष्टमी का व्रत रखेंगे और हवन वूजन के बाद नवमी को कन्या पूजन कर सकेंगे। कुछ श्रद्धालु अष्टमी को भी कन्याओं का पूजन करते हैं।
आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि कन्यापूजन अष्टमी और नवमी तिथि को होता है। 10 वर्ष से कम आयु की कन्याओं का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। दो अक्टूबर को शाम 5 :14 बजे से शोभन योग शुरू हो जाएगा और तीन अक्टूबर को दोपहर 2 : 22 बजे तक रहेगा। शोभन योग को बहुत ही शुभ माना गया है। आचार्य अरुण कुमार मिश्रा ने बताया कि अष्टमी तिथि दो अक्टूबर को शाम 6:21 बजे से शुरू होकर तीन अक्टूबर दोपहर 3:59 बजे समाप्त होगी। इसके बाद नवमी तिथि शुरू होगी। नवमी तिथि की शुरुआत तीन अक्टूबर को दोपहर 3:39 से शुरू होकर चार अक्टूबर को दोपहर 1:33 बजे तक है।
कब करें कन्या पूजनः आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि अष्टमी पर कन्यापूजन व हवन करने वाले तीन अक्टूबर को सुबह दोपहर 3:59 बजे तक कर सकते हैं। नवमी का कन्यापूजन चार अक्टूबर को सुबह से दोपहर 1 :33 बजे तक करना श्रेयस्कर रहेगा। कन्याओं के पूजन के बाद उन्हें दक्षिणा, चुनरी, उपहार आदि देकर पैर छूकर आर्शीवाद प्राप्त कर उन्हें विदा करना चाहिए।
आचार्य आनंद दुबे बताया कि दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है। माना जाता है कि कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सुख समृद्धि का वरदान देती हैं।
कन्या पूजन का महत्वः आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बड़ा महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही श्रद्धालुओं का नवरात्र व्रत पूरा होता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं।
व्रती नवमी को करें कन्या पूजन, लगाएं कुमकुमः आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि वैसे तो श्रद्धालु सप्तमी से कन्या पूजन शुरू कर देते हैं, लेकिन जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वह तिथि के अनुसार नवमी और दशमी को कन्या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है। आचार्य अनुज पांडेय ने बताया कि कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित कर दिया जाता है।
मुख्य कन्या पूजन के दिन इधर-उधर से कन्याओं को पकड़ के लाना सही नहीं होता है। गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं। आचार्य राकेश पांडेय ने बताया कि कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए। उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए। फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराना चाहिए। कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार देकर उनका पैर छूकर आशीर्वाद के साथ विदाई करनी चाहिए।
कन्याओं के पूजन से दूर होती हैं व्याधियां
- दो वर्ष की कन्या-पूजन करने से घर में दु:ख दरिद्रता दूर होती है।
- तीन वर्ष की कन्या- त्रिमूर्ति होती हैं, त्रिमूर्ति के पूजन से घर में धन के साथ पारिवारिक समृद्धि बढ़ती है।
- चार वर्ष की कन्या- कल्याणी माना जाता है, पूजा से परिवार का कल्याण होता है।
- पांच वर्ष की कन्या- रोहिणी होती हैं , रोहिणी का पूजन करने से व्यक्ति रोग से मुक्त होता है।
- छह वर्ष की कन्या-काली का रूप माना गया है। काली के रूप में विजय विद्या और राजयोग मिलता है।
- सात वर्ष की कन्या- चंडिका होती हैं, चंडिका रूप को पूजने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
- आठ वर्ष की कन्या-शांभवी कहलाती हैं, इनके पूजन से सारे विवाद पर विजय मिलती है।
- नौ वर्ष की कन्या- दुर्गा का रूप होती हैं, इनका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है।
- 10 वर्ष की कन्या- सुभद्रा कहलाती हैं, सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण पूर्ण करती हैं।