महाशिवरात्रिः यूपी में मंदिर-मंदिर हर-हर बम-बम, शिव-पार्वती परिणय सूत्र में बंधे
महाशिवरात्रि पर पूरे उत्तर प्रदेश के शिव मंदिरों में घंटा, घडिय़ाल के साथ ओम नम: शिवाय, बम-बम भोले के उद्घोष गूंजते रहे। साथ ही शंकर-पार्वती परिणय सूत्र में आबद्ध किए गए।
लखनऊ (जेएनएन)। महाशिवरात्रि पर पूरे उत्तर प्रदेश के शिव मंदिरों में घंटा, घडिय़ाल के साथ ओम नम: शिवाय, बम-बम भोले के उद्घोष गूंजते रहे। शिव-शक्ति मिलन पर्व महाशिवरात्रि पर शिव भक्ति की फुहार से श्रद्धालुओं का खूब तन-मन भीगा। देवाधिदेव के आंगन आस्था की सुगंध से महक उठे। सभी प्रमुख मंदिरों में जलाभिषेक व दुग्धाभिषेक कर पुष्प, बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि चढ़ाने के लिए तांता लगा रहा। अमंगल को मंगल करने वाले महादेव के सबसे प्रिय दिवस महाशिवरात्रि पर भोर होने से पहले ही भक्ति के अंकुर फूट पड़े। दुग्धाभिषेक, जलाभिषेक तथा अभिषेक के साथ पूजन और दर्शन का क्रम दिनभर चला। मंदिरों में तड़के से ही कतारे देखी गई। कानपुर के आनंदेश्वर, लखनऊ के मनकामेश्वर, फर्रुखाबाद के पांडवेश्वर और काशी के बाबा विश्वेशवर समेत जिले-जिले गांव-गांव मंदिरों में भोले भंडारी के लिए आस्था उमड़ती दिखी। 14 फरवरी को महाशिवरात्रि पर शुभ संयोग में व्रत, उपवास और पूजन शुभ फलदायी माना गया।
शंकर-पार्वती को परिणय सूत्र में आबद्ध
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि की रात बाबा के सिर फूलों का मऊर सजा तो चार प्रहर की आरती के रूप में विवाह की रस्म निभाई गई। सप्तर्षि आरती के अर्चकों ने सस्वर मंत्रों से पूजा-आराधना करते हुए देवाधिदेव महादेव भोले शंकर और गौरा पार्वती को परिणय सूत्र में आबद्ध किया। इस मौके पर भक्तों ने औघड़दानी को गुप्तदान के रूप में चोरउधा समर्पित किया और नेग में शिव कृपा मांगी। महंत आवास पर हल्दी और मटकोर की रस्म के बाद विधि विधान से मातृका पूजन किया गया। शाम बरातें निकलीं और फूलों से महमह करते गर्भगृह में विवाह की रस्म के तहत रात 11 से 12.30 बजे तक, 1.30 से 2.30 बजे तक, भोर तीन से चार बजे तक और सुबह पांच से 6.30 बजे तक चार प्रहर की सप्तर्षि आरती की गई। इस बीच दर्शन-पूजन के लिए भक्तों का रेला उमड़ता रहा।
14 को संक्रांति का शुभ फल भी
14 फरवरी महाशिवरात्रि का व्रत-उपवास करने वालों को तिथि और तारीख का दुर्लभ संयोग मिला। इस दिन तिथि भी 14 होगी और तारीख भी। साथ ही 14 फरवरी को भगवान शिव का प्रिय नक्षत्र श्रावणी रहा। इस नक्षत्र में शिव की पूजा शुभ फलदायी मानी जाती है।14 फरवरी को महाशिवरात्रि का व्रत करने वालों को संक्रांति का शुभ फल भी प्राप्त होता है। इस दिन बुध कुंभ राशि में आना और सूर्य से मिलन की संक्राति के कारण महाशिवरात्रि का व्रत 14 को भी किया गया। 14 को व्रत रखने वाले को 14 तारीख की शाम को ही चतुर्दशी तिथि में व्रत का पारण करना पड़ा। महाशिवरात्रि को भगवान शिव पर पर बेलपत्र के अलावा गंगाजल, गन्ने के रस, पंचामृत और कुशा के जल से भगवान का अभिषेक किए जाने की परंपरा है।
पांडवेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़
फर्रुखाबाद महाभारतकालीन पांडवेश्वरनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ रही। रह-रहकर भोले के भक्तों के मुख से गूंज रहे जयकारे श्रद्धा की फुहार बनकर बरस रहे थे। बम बोल और हर-हर महादेव का घोष होता रहा। पांडवेश्वरनाथ मंदिर परिसर स्थित श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग के गेट पर अंकित सत्यम शिवम सुंदरम की तरह भक्त शिवजी की साधना में लीन हो रहे थे। श्री सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, त्रयंम्बकेश्वर, भीमेश्वर, काशी विश्वनाथ, केदारनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर, वैद्यनाथ व घुश्मेश्वर पर बारी-बारी से जलाभिषेक कर पूजन किया गया।