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व‌र्ल्ड सीनियर सिटीजन डे: न लें जिंदगी से रिटायरमेंट, मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए अपनाएं थेरेपी

बुजुर्ग बढ़ाएं सामाजिक दायरा। पारिवारिक स्नेह भी जरूरी। अकेले रहने वाले बुजुर्गो को ज्यादा स्वास्थ्य संबंधित परेशानी।

By JagranEdited By: Published: Tue, 21 Aug 2018 04:38 PM (IST)Updated: Tue, 21 Aug 2018 04:43 PM (IST)
व‌र्ल्ड सीनियर सिटीजन डे: न लें जिंदगी से रिटायरमेंट, मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए अपनाएं थेरेपी
व‌र्ल्ड सीनियर सिटीजन डे: न लें जिंदगी से रिटायरमेंट, मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए अपनाएं थेरेपी

लखनऊ[राफिया नाज]। अकेलापन किसी परिस्थिति से ज्यादा वह मानसिक स्थिति है, जिसे आप चाहें तो सकारात्मक तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं, अन्यथा यह आगे चलकर एक विकृति का रूप ले लेती है। रिटायरमेंट के बाद भी अगर बुजुर्ग अपने आपको सामाजिक तौर पर एक्टिव रखें तो एक स्वस्थ जिंदगी जी सकते हैं। किन तरीकों से रिटायरमेंट के बाद भी आप जिंदगी की क्लास में शत-प्रतिशत योगदान दे सकते हैं, इस पर दैनिक जागरण की रिपोर्ट -

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अकेलापन है बुजुर्गो की सबसे बड़ी समस्या:

लखनऊ विश्वविद्यालय के सायकोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो.पीसी मिश्रा की वर्ष 2017 की 'प्रमोटिंग वेलबीइंग अमंग एल्डर्ली' विषय पर रिसर्च में यह बात निकल कर आई कि जो बुजुर्ग परिवार के साथ रहते हैं और जिनका सामाजिक दायरा बड़ा है उनकी सेहत अकेले रहने वाले बुजुर्गो की अपेक्षा अच्छी होती है। वहीं अगर वे बुजुर्ग जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं, लेकिन उनके पारिवारिक संबंध अच्छे नहीं हैं और सोशल गैद¨रग नहीं है, उनका स्वास्थ्य भी अपेक्षाकृत ठीक नहीं रहता है। 400 बुजुर्गो का हुआ सर्वे :

रिसर्च में वृद्धाश्रम और कॉलोनी में रहने वाले 400 बुजुर्गो का सर्वे किया गया। इनकी आयु 60 वर्ष से अधिक थी। अधिकतर ऐसे बुजुर्ग जो कि आर्थिक रूप से संपन्न थे, लेकिन उनका परिवार उनके साथ नहीं था और न ही उनका सामाजिक सरोकार ज्यादा था, उनकी सेहत अपेक्षाकृत खराब थी। वहीं ऐसे बुजुर्ग जो कि अपने परिवार के साथ थे और आर्थिक रूप से संपन्न नहीं थे इसके बाद भी उनका स्वास्थ्य बेहतर था। वहीं लगभग यही हाल वृद्धाश्रम में रहने वाले लोगों का भी था।

निकले ऐसे तथ्य:

1. कॉलोनी में रहने वाले बुजुर्ग, सोशली एक्टिव- 80 फीसद बुजुर्ग सेहतमंद

2. वृद्धाश्रम और अलग-थलग रहने वाले लोग- 45 फीसद बुजुर्ग अस्वस्थ, किसी न किसी मानसिक विकार से पीड़ित।

अस्वस्थ रहने वाले बुजुर्गो में तीन बजे मेजर फेक्टर निकले-

1. अकेलापन, 2. सोशल सपोर्ट, 3. डायवर्सिफाइड रिलेशनशिप स्किल डेवलपमेंट से बेहतर हुई जीवनशैली :

प्रो.पीसी मिश्रा ने बताया कि ऐसे बुजुर्ग जो किसी न किसी तरह से बीमार थे, उन्हें बेहतर जीवन जीने के टिप्स दिए गए। जिसमें वो खुद को व्यस्त रखते थे, 15 दिन के अंदर ही उनके स्वास्थ्य में सुधार आने लगा। इसमें उन्हें ध्यान लगाने से लेकर धार्मिक एक्सरसाइज आदि चीजें बताई गई। अकेले रहने के बाद भी रह सकते हैं एक्टिव :

आजकल एकल परिवार का कॉन्सेप्ट बढ़ रहा है। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई के बाद बुजुर्गो को अपनी लाइफ में खालीपन लगने लगता है। ऐसे में जरूरी है कि बुजुर्ग अपने लिए बेहतर लाइफ स्टाइल प्लान करें जिससे वे खुद को व्यस्त रख सकें। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग से रिटायर बीएल कुशवाहा ने बताया कि उनके बच्चे यूएस में जॉब कर रहे हैं। अपनी पत्‍‌नी के साथ लखनऊ में रहते हैं। इसके बाद भी वे अपने आपको फिट रखते हैं। सुबह उठकर रोजाना आधा घंटा वॉक और एक्सरसाइज करते हैं। हेल्दी डाइट लेते हैं, साथ ही कई संगठनों से जुड़े हुए हैं, पत्नी भी सोशली काफी एक्टिव हैं। अच्छी जीवनशैली की वजह से दोनों लोग फिट रहते हैं। 23 प्रतिशत बुजुर्ग मानसिक रोगी :

केजीएमयू के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ.एससी तिवारी की वर्ष 2013 की रिसर्च 'प्रीवेलेंस ऑफ सायकेट्री मोर्बीडिटी अमंग द कम्यूनिटी रूरल ओल्डर अडल्ट इन नॉर्थ इंडिया' के मुताबिक- 60 वर्ष की आयु के ऊपर अल्जाइमर बीमारी की संभावना 2.4 प्रतिशत है। वहीं दूसरे मानसिक डिस्आर्डर में मूड डिस्आर्डर 7.6 प्रतिशत है। वहीं तनाव दो प्रतिशत है। कुल 23 प्रतिशत बुजुर्गो में मानसिक रोगी निकले।

कैसे रहें फिट :

- अपना सामाजिक दायरा बढ़ाना चाहिए।

- घर के छोटे-मोटे कामों में व्यस्त रखना चाहिए।

- हर छह या सात माह पर अपना हेल्थ चेकअप करवाना चाहिए।

- 60 वर्ष के ऊपर की आयु के लोगों को ऐसे गेम्स खेलने चाहिए जिसमें दिमाग का इस्तेमाल ज्यादा हो। इसमें पजल्स, मोबाइल गेम्स और शतरंज आदि शामिल किया जा सकता है।

मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए कारगर हैं थेरेपी :

केजीएमयू के वृद्धावस्थ्या मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में डिमेंशिया, डिप्रेशन और अन्य तरह के मानसिक रोगियों के लिए कई तरह की थेरेपी है।

सायकोथेरेपी: इसमें ऐसे बुजुर्ग मरीजों का इलाज किया जाता है जो कि काउंसिलिंग से ठीक हो जाते हैं। वहीं अगर थोड़े सीवियर मरीज होते हैं तो उन्हें दवा और सायकोथेरेपी दोनों दी जाती है। नॉन फार्मेकोलॉजिकल थेरेपी: यह अधिकतर डिमेंशिया की बीमारी में इस्तेमाल होती है। इसमें मरीजों को बताया जाता है कि किस तरह से वे अपने लाइफ स्टाइल में बदलाव करें जिससे वो क्वालिटी ऑफ लाइफ जी सकें। ऑक्यूपेशनल थेरेपी: इसमें बुजुर्गो को कुछ स्किल सिखाई जाती है जिससे वो सीखकर अपने घर में खुद को व्यस्त रख सकते हैं। यह थेरेपी डिप्रेशन को दूर करने और मस्तिष्क को उत्तेजित करने के काम आती है।


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