राजधानी की महिलाएं ऐसा क्यों कह रही हैं कि शहर उनके लिए सुरक्षित नहीं
लखनऊ विश्वविद्यालय के पब्लिक पॉलिसी विभाग बीए ऑनर्स की छात्रा निहारिका राय ने छेड़छाड़ पर रिसर्च किया है। उनके अनुसार महिलाएं मानती हैं कि सुरक्षित नहीं है शहर।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। छेड़छाड़ या ईव टीजिंग... हर महिला इसे सुनकर ही सहम जाती है जबकि अपराधियों के लिए यह अपराध की शुरुआत है। छेड़छाड़ के लगभग 90 फीसद से ज्यादा मामले दर्ज तक नहीं किए जाते हैं, जबकि कई बार ये घटनाएं लड़कियों को मानसिक रूप से इतना ज्यादा परेशान कर देती हैं कि वे आत्महत्या तक कर लेती हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय के पब्लिक पॉलिसी विभाग बीए ऑनर्स की छात्रा निहारिका राय ने छेड़छाड़ पर रिसर्च किया है।
73 फीसद महिलाओं ने माना सुरक्षित नहीं है शहर
सर्वे राजधानी की 80 लड़कियों और महिलाओं पर किया गया, जिसमें 16 से 30 वर्ष की आयु की महिलाएं शामिल थीं। इसमें 73 फीसद महिलाओं ने माना कि राजधानी में छेड़छाड़ के मामले बहुत हो रहे हैं और वो अपने शहर को किसी भी तरह से सुरक्षित नहीं मानती हैं। वहीं 23 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि जितनी बार वो बाहर निकलती हैं उनके साथ दिन भर में पांच बार से ज्यादा छेड़छाड़ की घटना होना आम है।
पब्लिक प्लेस सबसे ज्यादा असुरक्षित
सबसे ज्यादा छेड़छाड़ के मामले पब्लिक प्लेस में होते हैं। 100 में से 47 फीसद मामले पब्लिक प्लेस में, 23 फीसद गली-मोहल्लों और सड़कों पर, 20 फीसद मामले पब्लिक ट्रांसपोर्ट में होते हैं। वहीं 10 फीसद मामले बिजी मार्केट में होते हैं।
मात्र सात फीसद लड़कियां मांगती हैं पुलिस से मदद
छेड़छाड़ की घटना होने पर मात्र सात फीसद लड़कियां और परिवारीजन ही पुलिस के पास जाना ठीक समझती हैं। वहीं 59 फीसद महिलाएं केवल बोल कर ही विरोध जताती हैं। 27 फीसद महिलाएं फिजिकली, मारपीट से विरोध जताती हैं। इसके अलावा मात्र सात फीसद महिलाएं पब्लिक की मदद मांगती हैं।
27 फीसद महिलाएं छेड़छाड़ को मान चुकी हैं अपनी नियति
छेड़छाड़ जैसी घटनाएं इतनी आम हो चुकी हैं और शिकायत करने पर कभी पुलिस तो कभी घरवाले साथ नहीं देते हैं। ऐसे में 27 फीसद महिलाएं छेड़छाड़ को अपनी नियति मान चुकी हैं।
लड़कियों ने माना 1090 और डॉयल 100 ही मजबूत विकल्प
छेड़छाड़ की घटना अगर पब्लिक प्लेस में होती है तो उन्हें सबसे पहले वो वहां मौजूद लोगों से मदद मांगती हैं। वहीं सबसे ज्यादा असहाय वो पब्लिक ट्रांसपोर्ट में महसूस करती हैं। लोगों से भरी हुई बस, टैंपो में लड़के फिजिकली टच करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में वो या तो खुद बोलकर या गुस्सा करके विरोध जताने की कोशिश करती हैं। इस तरह की परिस्थिति में अगर वो लोगों से मदद मांगती हैं तो नहीं मिल पाती है। लड़कियों ने सबसे ज्यादा मददगार डॉयल 100 और 1090 को माना।
सीसीटीवी कैमरे हो सकते हैं कारगर समाधान
छेड़छाड़ की घटना से बचने के लिए 42 फीसद महिलाओं ने माना कि सीसीटीवी कैमरे छेड़छाड़ की घटनाओं को रोक सकती है। अगर व्यक्ति को लगेगा कि वो हर समय निगरानी में है तो इस तरह की हरकत करने से पहले कई बार सोचेगा।
छेड़छाड़ का दायरा
किसी भी लड़की को 14 सेकेंड से ज्यादा देर तक घूरना। पीछा करना, सीटी बजाना, छूने की कोशिश करना। कमेंट करना। बेइज्जत करने की मंशा से हंसना। पब्लिक ट्रांसपोर्ट में पुश करना। इसके अलावा कई और हरकतों को छेड़छाड़ में शामिल किया गया है।
छेड़छाड़ पर है कठोर सजा
भारतीय दंड संहिता की धारा 354 का इस्तेमाल ऐसे मामलों में किया जाता है। जहां स्त्री की मर्यादा और मान सम्मान को क्षति पहुंचाने के लिए उस पर हमला किया गया हो या उसके साथ गलत मंशा के साथ जोर जबरदस्ती की गई हो।
क्या होती है सजा
भारतीय दंड संहिता के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की मर्यादा को भंग करने के लिए उस पर हमला या जोर जबरदस्ती करता है, तो उस पर आइपीसी की धारा 354 लगाई जाती है। जिसके तहत आरोपी पर दोष सिद्ध हो जाने पर दो साल तक की कैद या जुर्माना या फिर दोनों की सजा हो सकती है।
नई पीढ़ी से करनी होगी शुरुआत
लविवि की बीएफए थर्ड ईयर की छात्रा माधवी ने बताया कि जो लोग इस सोच के साथ बड़े हो चुके हैं उन्हें बदला नहीं जा सकता है। केवल कानून के सहारे डराया जा सकता है। अगर हमें महिलाओं के प्रति सम्मान सिखाना है तो नई पीढ़ी को यह बात समझानी होगी। इसके लिए स्कूल लेवल से ही शुरुआत करनी होगी।
कानून तो हैं लेकिन पालन नहीं हो रहा
निहारिका राय ने बताया कि देश में कानून तो हैं लेकिन उनका पालन कठोरता से नहीं किया जा रहा। इसलिए जोर कानून के पालन पर होना चाहिए।