UP: महिला ने ट्रेन के शौचालय में दिया बच्चे को जन्म, आरपीएफ सिपाही ने नवजात और मां को बचाया
महाराष्ट्र से झारखंड जा रही नांदेड़-संतरागाछी सुपरफास्ट एक्सप्रेस में एक महिला ने ट्रेन के शौचालय में बच्चे को जन्म दिया। इस दौरान करीब 30 मिनट तक वह शौचालय में ही रही है। एक आरपीएफ सिपाही की सूझबूझ ने न सिर्फ महिला बल्कि उसके बच्चे की भी जान बचाई।
लखनऊ, (आईएएनएस)। ट्रेन के शौचालय में बच्चे को जन्म देने के बाद तड़प रही मां की एक आरपीएफ सिपाही ने न सिर्फ मदद की बल्कि मां और बच्चे दोनों को अपनी सूझबूझ से बचा लिया। अब उसकी इस बहादुरी की हर ओर सराहना हो रही है।
26 वर्षीय आरपीएफ कांस्टेबल ने ट्रेन के शौचालय में करीब आधे घंटे तक लाचार पड़ी नवजात और मां को बचाने के लिए एक निजी क्लिनिक में अपने अनुभव का इस्तेमाल किया। आरपीएफ कांस्टेबल, कुमारी सोना, मथुरा जिले की हैं और पहले एक निजी क्लिनिक में काम करती थीं।
घटना मंगलवार शाम को राउरकेला, ओडिशा की ओर जाने वाली ट्रेन में हुई। महिला यात्री ने शौचालय में बच्चे को जन्म दिया था। शिशु सांस नहीं ले रहा था लेकिन आरपीएफ कांस्टेबल सोना के दखल के बाद शिशु की सांस चलने लगी। बाद में राउरकेला जंक्शन पर रेलवे की एक मेडिकल टीम महिला और उसके बच्चे को नजदीकी अस्पताल ले गई। उसके प्रयास के लिए दक्षिण के चक्रधरपुर रेलवे मंडल (झारखंड) की सोना- ईस्टर्न रेलवे (एसईआर) की उसके सहयोगियों और वरिष्ठों ने सराहना की है।
महिला की पहचान 24 वर्षीय लक्ष्मी गोदरा के रूप में हुई है। उसके नवजात बच्चे की हालत स्थिर बताई जा रही है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, लक्ष्मी अपने पति बहादुर गोदरा और बहनोई के साथ नांदेड़-संतरागाछी सुपरफास्ट एक्सप्रेस (12767) में नांदेड़ (महाराष्ट्र) के हजूर साहिब से टाटानगर (झारखंड) की यात्रा कर रहा था। रेलवे के सूत्रों ने कहा, जब लक्ष्मी को प्रसव पीड़ा हुई तो वह शौचालय गई थी। उसने अंदर बच्चे को जन्म दिया। चूंकि महिला सहित कोई भी यात्री उसे बचाने नहीं आया, इसलिए वह अपने नवजात शिशु के साथ शौचालय के अंदर रही।
लेकिन जैसे ही ट्रेन राउरकेला जंक्शन पर पहुंची, उसका पति रेलवे प्लेटफार्म पर कूद गया और मदद के लिए चिल्लाया। आरपीएफ कांस्टेबल, कुमारी सोना ने बताया कि, मैंने आरपीएफ में शामिल होने से पहले एक निजी क्लिनिक में बच्चे के जन्म का कुछ अनौपचारिक अनुभव प्राप्त किया था। जहां मैंने एक गैर-चिकित्सीय कर्मचारी के रूप में काम किया था। मैंने अपनी सूझबूझ का पालन किया और उसकी मदद के लिए दौड़ी। नवजात कोई हलचल नहीं दिखा रहा था और उसका शरीर पीला पड़ रहा था। मैंने उसे घुमा दिया और उसकी पीठ सहलाने लगी। मुझे कुछ मिनट लगे जब बच्चा रोने लगा जिसके बाद मैंने उसे कंबल में लपेट दिया। तब तक मेडिकल टीम आ गई और ले लिया।