भवन न संसाधन, फिर भी यहा जज्बे से होती पढ़ाई
पढ़ाने की चाह हो तो बच्चे भी पढ़ते हैं, भले ही जगह कोई भी हो। आइए जानते हैं, राजधानी में कुछ लोग कैसे अपने प्रयास से ज्ञान का उजियारा फैला रहे हैं.
लखनऊ(जेएनएन)। संसाधनों का रोना रोकर पढ़ाई में फेल हो रहे सरकारी स्कूलों को राजधानी के ही कुछ जागरूक लोग आईना दिखा रहे हैं। युवा से वरिष्ठ नागरिक तक के लोग हैं जिनमें शिक्षा के उजियारे से दूर अभावों में पल रहे गरीब बच्चों को शिक्षित करने की चाह है। वह उन बच्चों की भी मदद करते हैं, जिनके पास ट्यूशन पढ़ने के साधन नहीं। शिक्षा के इन नायकों के पास कोई बड़े स्कूल भवन नहीं, बच्चों को बैठाने के लिए पर्याप्त इंतजाम भी नहीं, उन्हें कोई तनख्वाह भी नहीं मिल रही, फिर भी वह नयी पीढ़ी को शिक्षित करने में जुटे हैं।
कोई टीन शेड के नीचे क्लास लगाकर पढ़ा रहा है तो कोई मलिन बस्ती में जाकर। पूर्व डीजीपी महेश चंद्र द्विवेदी तो अपने घर में ही क्लास चलाते हैं। पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रहे समाजसेवी चंद्रभूषण तिवारी ने पेड़ बचाने की शिक्षा बचपन से ही देने की ठानी है और वह तीन-तीन विद्यालय चलाकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। शिक्षा विभाग व पढ़ाई से ज्यादा अन्य कार्यो में रुचि लेने वाले शिक्षकों के लिए ये शिक्षादूत नजीर हैं। इनकी मेहनत साबित करती है कि पढ़ाने की चाह हो तो बच्चे भी पढ़ते हैं, भले ही जगह कोई भी हो। आइए जानते हैं, राजधानी में कुछ लोग कैसे अपने प्रयास से ज्ञान का उजियारा फैला रहे हैं.
पढ़ा रहे 'प' से पेड़ 'ल' से लगाओ :
समाजसेवी चंद्रभूषण तिवारी अपने दम पर गरीब बच्चों के लिए छह स्कूल चला रहे हैं। लोगों की मदद से खाली जमीन पर टीन शेड लगाकर ये स्कूल रजनीखंड, वृंदावन, ट्रासपोर्टनगर, औरंगाबाद, सालेहनगर और रिक्शा कॉलोनी में चल रहे हैं। इन स्कूलों में 650 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। दान की किताबों से वह बच्चों का स्कूल बैग तैयार कराते हैं। वह अपने स्कूलों में पर्यावरण संरक्षण के साथ अपनी सास्कृतिक धरोहरों से भी बच्चों को परिचित कराते हैं। 'प' से पेड़ 'ल' से लगाओ जीवन में खुशहाली लाओ., 'क' से किसान 'ज' जवान, हम सब पहले बनें इंसान.जैसे सबक वह बच्चों को देते हैं। रविवार को छुट्टी के दिन आम लोग भी इन स्कूलों में पढ़ाने के लिए आमंत्रित रहते हैं। विद्यालय मंगलवार को बंद होते हैं।
खुद पढ़ते हुए कर रहे शिक्षा का दान:
जिस उम्र में छात्र अपने जीवन के सपनों को साकार करने की जद्दोजहद करते हैं, उस उम्र में युवा मानस मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों के सपने साकार करने में जुटे हैैं। बाबा साहब भीम राव आबेडकर विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के शोध छात्र मानस उपाध्याय की इच्छा है कि हर बच्चा शिक्षित हो। राजाजीपुरम में रहने वाले मानस कॉलोनी में ही हैदर कैनाल नाले के किनारे बसी मलिन बस्ती में जाकर स्थानीय लोगों द्वारा उपलब्ध कराए गए स्थान पर बच्चों को दो घटे नियमित रूप से पढ़ाते हैं। उनकी क्लास में 19 बच्चे हैं। जब भी कोई बच्चा गैर हाजिर होता है तो मानस उसकी चिंता करते हैं। वह गैरहाजिर बच्चे को उसके घर बुलाने चले जाते हैं। उसे क्लास लाकर पढ़ाई की महत्ता बताते हैं। रिटायर्ड डीजीपी जगा रहे शिक्षा की अलख:
शहर के शिक्षादूतों में पूर्व डीजीपी महेश चंद्र द्विवेदी और उनकी प8ी नीरजा द्विवेदी भी शामिल हैं। पिछले 15 साल से अपने गोमती नगर विवेकखंड स्थित आवास में ये दंपती गरीब बच्चों को निश्शुल्क पढ़ा कर शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। 15 अगस्त 2003 को शुरू हुई पाठशाला से अब तक कई बच्चे पढ़कर निकल चुके हैं। दोपहर 3 बजे से लगने वाली पाठशाला में इस समय 182 इनरोलमेंट हैं, पाच समूहों में पढ़ाई होती है। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए ये कोचिंग है। लॉरेटो स्कूल की आरती कपूर के अलावा सीमा बाजपेयी, विद्या सिंह और सपना कपूर बच्चों को बिना कोई भी वेतन लिये रोजाना तीन घटा पढ़ाती हैं। कई लोग कॉपी, किताब, वाटर कूलर और अन्य सामान दान देकर दंपती की मदद भी करते हैं। यहा से पढ़े बच्चे कई अच्छी नौकरी में हैं। हाल ही में एक बच्चा पालीटेक्निक डिप्लोमा करके एचएएल में अप्रेंटिस कर रहा है। कुछ बच्चे विवि में पढ़ाई करने के साथ इस पाठशाला में बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
शालिनी चलाती हैं स्पेशल क्लास:
समाजसेवी शालिनी सिंह गऊघाट के पास गरीबों के बच्चों को पढ़ाने के लिए स्पेशल क्लास चलाती हैं। उन्होंने अपने स्कूल को 'पहल' नाम दिया है। इसमें 30 बच्चे पढ़ते हैं। शालिनी कहती हैं कि एमए समाजकार्य व संस्कृत की पढ़ाई करने के बाद वह समाजसेवा में जुट गईं। पिछले वर्ष तक घर के आसपास गरीब बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाती थीं। बाद में दिसंबर 2017 में गऊघाट के पास गरीब बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाने के लिए पहल स्कूल खोला है। यहा पढ़ रहीं बच्चियों में रोशनी (सात) कुरैशा (सात), परी (तीन) अंग्रेजी में कविताएं फर्राटे से पढ़ लेती हैं। बच्चे अपने उज्जवल भविष्य का ताना-बाना बुनने में जुटे हुए हैं।