सहकारिता में भ्रष्टाचार करने पर सेवा मंडल पदाधिकारियों पर कसेगा शिकंजा
भर्तियों में विभिन्न बैंकों के प्रबंध निदेशकों की संदिग्ध भूमिका के साथ ही सहकारी संस्थागत सेवा मंडल के पदाधिकारियों की भी मनमानी उजागर हो रही है।
लखनऊ (जेएनएन)। समाजवादी सरकार में सहकारिता विभाग में हुई भर्तियों की धांधली परत-दर-परत खुलने लगी है। भर्तियों में विभिन्न बैंकों के प्रबंध निदेशकों की संदिग्ध भूमिका के साथ ही सहकारी संस्थागत सेवा मंडल के पदाधिकारियों की भी मनमानी उजागर हो रही है। भर्तियों के समय के सेवा मंडल के अध्यक्ष और सदस्यों पर सरकार शिकंजा कसने जा रही है।
सहकारी संस्थागत सेवा मंडल के जरिये उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक में 1030 और उत्तर प्रदेश कोआपरेटिव बैंक में 50 सहायक प्रबंधकों की नियुक्ति हुई। इन नियुक्तियों में अफसरों ने भ्रष्टाचार की बड़ी मिसाल कायम की। उप्र कोआपरेटिव बैंक के एमडी रविकांत सिंह को इस आरोप में निलंबित कर दिया गया है। रविकांत के अलावा बाकी दोषियों के बारे में साक्ष्य जुटाये जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर इन भर्तियों की एसआइटी जांच हो रही है। इसके अलावा भी उच्च स्तर पर कुछ जांचें चल रही हैं। सहकारिता की भर्तियों के लिए सहकारी संस्थागत सेवा मंडल का गठन सरकार द्वारा किया जाता है। भर्तियों के लिए अपर आयुक्त/अपर निबंधक सहकारिता को सेवा मंडल का अध्यक्ष जबकि दो अन्य अपर निबंधकों को सेवा मंडल का सदस्य बनाया जाता है।
आरोप है कि ग्राम्य विकास बैंक और कोआपरेटिव बैंक में तैनात रहे प्रबंध निदेशकों को मिलाकर सेवा मंडल ने मनमाफिक तरीके से नियुक्तियां की। कोआपरेटिव बैंक में सहायक प्रबंधकों की नियुक्ति में शासनादेश का उल्लंघन करते हुए पदों के विज्ञापन होने के बाद भी शैक्षिक योग्यता में परिवर्तन किया गया। सेवा मंडल द्वारा आदेशों का उल्लंघन करते हुए सहायक प्रबंधकों की चयनित सूची उप्र कोआपरेटिव बैंक को भेजी गई।
यहां तक कि उच्च न्यायालय के स्थगनादेश के बावजूद सेवा मंडल द्वारा चयन सूची जारी की गई। इसी तरह उप्र सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड लखनऊ में 1030 भर्तियों में सेवा मंडल और प्रबंध निदेशक की मिली भगत से अकेले इटावा के ही 200 अभ्यर्थियों को सहायक आंकिक एवं सहायक फील्ड अफसर के पद पर नियुक्ति दे दी गई। रविकांत सिंह के निलंबन के बाद बाकी दोषियों पर भी तेजी से शिकंजा कसने लगा है।