Lockdown in Lucknow: जब मजदूरी नहीं तो कहे दे कमरे का किराया-बिजली बिल
Lockdown in Lucknow बाजार में मजदूरी का संकट घर वापसी आखिरी विकल्प। साइकिल से सत्तर किमी का सफर तय करने की ठान ली।
लखनऊ, जेएनएन। Lockdown in Lucknow: कोई कुछ भी कही, अब मैं यहां बिल्कुल नहीं रुकेंगे। क्योंकि काम है नहीं और जिनके यहां काम करते थे, वह चाहते थे हम लोग रुके, लेकिन पुलिस वालों ने काम बंद करवा दिया। जब पुलिस वाले आए तो कहे काम बंद करो और मजदूरों को एकत्रित न होने दो। मकान मालिक ने कुछ दिन तो सुना अनसुना किया, लेकिन पड़ोसियों ने जब तक काम बंद नहीं करा दिया, तब तक शांत नहीं बैठे।
अब बीस दिन से काम नहीं है और कमरे का किराया भी महीने की बीस तारीख को पूरा होता है। इसलिए सोचा कुछ दिन अपने जिला बाराबंकी के गांव मोहम्मदपुर खाला ही चले जाए। इसलिए मकान मालिक का भी हिसाब कर दिया। यहां रहकर कमाई है नहीं उल्टे बिजली का बिल व कमरे का किराए देना पड रहा था। यह कहते हुए हेम अपनी पत्नी लीलावती व बेटे रूद्र के साथ साइकिल से ही 70 किमी दूर अपने गांव के लिए चल देते हैं।
चिनहट के पास किराए पर रहने वाले ऐसे कई मजदूर धीमे-धीमे करके अपने गहजनपद की ओर वापस जा रहे हैं। लॉकडाउन में कमाई से ज्यादा उन्हें किराए व बिजली बिल की चिंता सता रही है। क्योंकि भवन स्वामी को देर सवेर किराए तो देना ही है। साइकिल लेकर निकले हेम कहते हैं कि 1800 रुपये किराए व दो सौ रुपये बिजली का हर माह देना होता है। इसके अलावा खाने पीने में तीन हजार खर्च हो जाते थे, जब मजदूरी मिलती थी, तो मियांफ़- बीवी छह से सात सौ रुपये रोज कमा लेते थे। माह में 22 से 25 दिन काम करने पर जो पैसा बचता था, उसमें कुछ पैसा अम्मा बप्पा को भेज देते थे और हजार से दो हजार बच जाता था, लेकिन अब बाजार में काम नहीं है। ऐसे में घर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। कम से कम जो पिफजूल खर्च है, वहीं बचेगा।
गांव में मजदूरी मिलती है कम
गांव में मजदूरी पंद्रह दिन ही मिल पाती है। यहां दिहाडी शहर की तरह नहीं मिलती और लीलावती इसलिए काम नहीं कर सकती, क्योंकि वह उसकी ससुराल है। इसलिए एक आदमी की दिहाडी से घर तब तक तो ठीक चलता है जब तक कोई बीमार नहीं होता। अगर घर में कोई बीमार हुआ तो बिना कर्जा लिए इलाज संभव नहीं है और पिफर यही क्रम अगर दो चार माह चल गया तो मजदूर कर्जदार हो जाता है।
रुकते-रुकाते शाम तक पहु्ंच जाएंगे
वैसे अभी तक गांव बस से ही जाते थे, साइकिल का इस्तेमाल साइड पर जाने के लिए करते थे,लेकिन अब सवारी नहीं है। टक वाले भी पैसे बहुत मांग रहे हैं। साइकिल से समय जरूर लगेगा, लेकिन गांव में भी मजदूरी अगर बंगल के गांव में मिली तो साइकिल वहां बहुत काम आएगी। हेम कहते हैं कि तीन लोगों को साइकिल से ले जाने में दिक्कत तो होगी लेकिन चार घंटे का सफर शाम तक रुकते-रुकाते तय करेंगे। अब गांव जाना है तो कहे की जल्दी। बस से पौने दो घंटे का है सफर।