Independence Day 2022: भारत-पाक बंटवारे की लकीर खिंची तो अपने ही हो गए बेगाने, पढ़ें रोचक इतिहास
Independence Day 2022 बंटवारे के दौरान पाकिस्तान के कस्बा अकालगढ़ जिला- गुजरांवाला से आए स्वर्गीय मुंशीराम अरोरा के पुत्र व्यापारी नेता कुलभूषण अरोरा ने कहा कि घर के बुजुर्ग जब बंटवारे का किस्सा सुनाते तब आंसू रोके नहीं रुकते थे।
बहराइच, [प्रभंजन शुक्ल]। सन् 1947 में भारत की आजादी से पहले हुए बंटवारे का दंश तीसरी पीढ़ी को अब भी कचोटता है। विभाजन के बाद किसी तरह जान बचाकर भागे करीब सौ विस्थापित परिवार बहराइच में आकर बसे थे। घर-व्यापार छोड़कर किसी तरह से नई जिंदगी की जद्दोजहद शुरू की। वह समय याद कर सभी सिहर उठते हैं।
14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है। बंटवारे का दर्द बताते हुए वर्तमान पाकिस्तान के जिला हजारां अंतर्गत हवेलियां कस्बे से 1947 में विस्थापित होकर आए स्व. अमरीक लाल मल्होत्रा के पुत्र मनीष मल्होत्रा ने बताया कि रूह कांप उठती थी, जब पिताजी बंटवारे का मंजर सुनाते थे। कत्ल-ए-आम और लाशों से भरी अटारी पहुंचती गाड़ियां! किस तरह अपना जमा जमाया व्यवसाय, घर व खेत, सब कुछ छोड़ खाली हाथ अपने परिवारों की जान बचाते हुए स्पेशल ट्रेनों में भरकर फिर रिफ्यूजी कैंपों में रहते हुए रिश्तेदारों को खोजते-खोजते भारत आए थे।
विभाजन में पाकिस्तान के कस्बा अकालगढ़ जिला- गुजरांवाला से आए स्वर्गीय मुंशीराम अरोरा के पुत्र व्यापारी नेता कुलभूषण अरोरा ने कहा कि घर के बुजुर्ग जब बंटवारे का किस्सा सुनाते, तब आंसू रोके नहीं रुकते थे। बंटवारे की लकीर खिंची तो रातों रात लाखों लोग अपने ही देश में बेघर हो गए। विस्थापित परिवार की दूसरी पीढ़ी के राजेश मंसानी के दादा का घर गांव तिरोड़ तालुका सालेहपट जिला सक्खर था। कहा, विभाजन के रूप में 14 अगस्त 1947 का दिन हमेशा ताजा रहने वाला जख्म है।
इस दिन देश बंटा और भारतीय उप महाद्वीप के टुकड़े होकर पाकिस्तान बना। बंटवारे के जिम्मेदार किसी परिस्थिति में माफीलायक नहीं हैं। गांव उकाड़ा मंडी जिला शादीवाल से विस्थापित परिवार के व्यापारी सुशील भल्ला ने बताया कि जब-जब पिताजी बंटवारे के किस्से सुनाते थे, खून खौल उठता था। पिता स्वर्गीय ओमप्रकाश भल्ला ने बताया था कि बंटवारे का बवाल जब शुरू हुआ, तब पाकिस्तान के साहीवाल में उनके पिता (हमारे दादा जी) को गोली मार दी गई थी। किसी तरह जान बचाकर बाकी लोग अटारी पहुंच सके थे।