निरीक्षण के दौरान क्या इशारा कर रहीं करोड़ों रुपये की एक्सपायर दवाइयां!
एक्सपायर दवाओं का जखीरा मिलना बहुत बड़ा कारनामा है और इसके लिए किसी को भी माफ नहीं किया जाना चाहिए। करोड़ों रुपये की इस राशि को स्टोर/ इनवेंट्री देखने वाले से लेकर मैनेजिंग डायरेक्टर तक से यह वसूली एक माह के भीतर होनी चाहिए।
लखनऊ, राजू मिश्र। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कदाचित यह नहीं सोचा होगा कि एक सामान्य निरीक्षण के दौरान करोड़ों रुपये की एक्सपायरी दवाइयों का जखीरा मिलेगा। अपने मातहतों के साथ बीते दिनों वह लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन के गोदाम पर पहुंचे। निरीक्षण के दौरान वह चौंक गए। उप मुख्यमंत्री को वहां 16 करोड़ 40 लाख रुपये की एक्सपायरी दवाइयां मिलीं। ये वो दवाइयां थीं, जो अस्पतालों को भेजी जानी थीं, मगर नहीं भेजी गईं। निरीक्षण में प्रदेश के स्वास्थ्य अमले के प्रबंधन की लापरवाहियां उजागर हुईं। जनता के रुपयों की बर्बादी का पता चला।
उप मुख्यमंत्री पाठक के निरीक्षण के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा हुआ है। जांच बैठ चुकी है। दस्तावेजों को खंगाला जा रहा है। रिपोर्ट जल्द प्रस्तुत करने को कहा है। निर्देश दिए गए हैं कि भविष्य में इस प्रकार की कोई गड़बड़ी सामने न आए, इसके लिए ठोस कदम उठाए जाएं। इन सभी सरकारी प्रक्रियाओं के बीच बड़ा सवाल यह है कि अस्पताल तक दवाइयां क्यों नहीं भेजी गईं? क्या सभी अस्पतालों में दवाओं का पर्याप्त स्टाक था? अगर कहीं से डिमांड पत्र नहीं आया तो अधिकारी क्यों दवाइयों के एक्सपायर होने का इंतजार करते रहे? ऐसे कई तरह के सवाल हैं तो आमजन उठा रहे हैं। प्रश्न यह भी है कि क्या तफ्तीश सही मुकाम तक पहुंच पाएगी? एक सरकारी गोदाम में रखी करोड़ों रुपये की दवाइयां अनुपयोगी हो गईं तो क्या इसके जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई होगी? क्या उनसे इसकी वसूली की जाएगी?
दरअसल इस घटना के पीछे बड़े भ्रष्टाचार की भी आशंका है। दवा कारोबार से जुड़े बड़े व्यापारी बताते हैं कि एक्सपायर हो चुकी दवाओं की रीपैकेजिंग कर इसे दोबारा बाजार में उतारने का धंधा फल-फूल रहा है। इसमें एक्सपायर हो चुकी दवाओं को पुराने पैकेजिंग से निकाल लिया जाता है। इसके बाद इन दवाइयों की नई पैकेजिंग कर दोबारा बाजार में बिक्री के लिए भेज दिया जाता है। यह जानलेवा कारोबार है, जो तेजी से बढ़ता जा रहा है। आशंका है कि एक्सपायर हो चुकी दवाओं का बड़े स्रोत ऐसे ही सरकारी गोदाम और अस्पताल हो सकते हैं। ऐसे में यह जांच का विषय है और इसके तमाम पहलुओं को टटोलना आवश्यक है। चिकित्सक बताते हैं कि एक्सपायर दवा रोगियों की परेशानी को और बढ़ा सकती है। ये दवाएं असरकारक नहीं होतीं और मरीज की तकलीफ बढ़ाती हैं। इतना ही नहीं, बाद में उपचार की प्रक्रिया जटिल हो जाती है। इसलिए एक्सपायर हो चुकी दवाओं को नष्ट किया जाना चाहिए।
चिकित्सा जगत, उससे जुड़ी सरकारी मशीनरी और लोगों से उच्च नैतिक मूल्यों की अपेक्षा की जाती है। आशा की जाती है कि वे मरीजों और उनके स्वजन के प्रति संवेदनशील हों। यही उनका धर्म भी बताया गया है। कोरोना काल में कई चिकित्सकों, नर्सो और अस्पताल कर्मचारियों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए मरीजों का उपचार किया। कई चिकित्सकों की जान तक चली गई। कई दवा कारोबारियों ने भी कई अच्छी पहल कर मरीजों की सहायता की। सभी के प्रयासों से महामारी को हराने में हमें सहायता मिली। ठीक इसी दौरान आपदा के असुर भी दिखाई दिए। नकली रेमडिसिविर इंजेक्शन से लेकर अन्य नकली दवाइयों तक का कारोबार खूब हुआ। ऐसे असुरों को आपदा में भी कमाई दिखाई दी। वे संवेदनशून्यता के साथ काली कमाई करते रहे। ऐसा करने वाले कई लोग सलाखों के पीछे पहुंचे तो कई बच भी गए होंगे। सरकारी गोदाम से एक्सपायर दवाइयां मिलना भी धांधली की ओर ही इशारा है। ऐसी घटनाएं हमें सचेत कर रही हैं।
शासन को बता रही हैं कि ऐसा अवैध धंधा करने वालों के खिलाफ कठोर कानून बनाकर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने का समय आ गया है। भविष्य के लिए भी ठोस उपाय किए जाने चाहिए ताकि ऐसी घटना दोबारा नहीं हो।एक माह में भुगतान न करने वाले पर 12 प्रतिशत का ब्याज लगाते हुए वसूली की जानी चाहिए। यदि तीन माह के भीतर कोई अधिकारी रिकवरी की रकम न लौटाए तो उसके घर की कुर्की कर देनी चाहिए। सरकार को इस मामले में हर बिंदु पर बारीकी से जांच और ठोस कार्रवाई करते हुए आमजन को अच्छा संदेश देना चाहिए। नजीर खड़ी करनी चाहिए। यही न्याय है।