Move to Jagran APP

लखनऊ: सौ साल पुरानी तकनीक से साफ हो रहा पानी, भारतीय मानक ब्यूरो ने भी नहीं किया पास

लखनऊवासियों की सेहत से खिलवाड़ जलकल विभाग के पास नहीं है पानी शुद्ध करने के उपयुक्‍त सयंत्र। दूषित जल पीने को मजबूर हैं लोग।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 21 Nov 2019 11:36 AM (IST)Updated: Fri, 22 Nov 2019 07:15 AM (IST)
लखनऊ: सौ साल पुरानी तकनीक से साफ हो रहा पानी, भारतीय मानक ब्यूरो ने भी नहीं किया पास
लखनऊ: सौ साल पुरानी तकनीक से साफ हो रहा पानी, भारतीय मानक ब्यूरो ने भी नहीं किया पास

लखनऊ, जेएनएन। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) ने राजधानी के पानी की गुणवत्ता पर यूं ही सवाल नहीं उठाए हैं। यहां गोमती के पानी को पीने लायक बनाने के लिए सौ साल पुरानी पारंपरिक तकनीक का इस्तेमाल आज भी किया जा रहा है। यह बताने की जरूरत नहीं कि गोमती देश की सबसे प्रदूषित नदियों में हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर शहरवासी किस गुणवत्ता का पानी पी रहे हैं? ऐसे में यदि लखनऊ के पानी को भारतीय मानक ब्यूरो ने पीने लायक नहीं बताया है तो क्या गलत है। 

loksabha election banner

जलकल विभाग द्वारा हर रोज ऐशबाग से 225 एमएलडी, बालागंज से 100 व गोमती नगर तीसरे जलकल से 80 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जाती है। गोमती से लिए गए कच्चे पानी को पारंपरिक विधि से शोधन के बाद घरों में आपूर्ति की जाती है। मुश्किल यह है कि गोमती से जलापूर्ति के लिए 'सीÓ ग्रेड की गुणवत्ता का पानी चाहिए होता है, लेकिन बरसात के चंद दिन छोड़ दें तो पूरे साल नदी जल की गुणवत्ता सही नहीं मिलती। ऐसे में पारंपरिक शोधन तकनीक से नदी जल को पीने योग्य बनाना असंभव है। 

पारंपरिक शोधन में दूर नहीं होती रासायनिक अशुद्धि

गोमती जल में रसायनों के साथ-साथ भारी धातुओं की पुष्टि हो चुकी है। ऐसे में केवल पारंपरिक विधि से किए गए शोधन से पानी कतई पीने योग्य नहीं बनता। जलकल अभियंता बताते हैं कि गोमती के पानी का शोधन करने के लिए कोऑगुलेशन, फ्लोक्यूलेशन, सेगमेंटेशन, फिल्ट्रेशन व क्लोरीनेशन किया जाता है। इससे पानी में तैरने वाली अशुद्धियां अलग हो जाती हैं और क्लोरीनेशन व ब्लीचिंग से पानी विसंक्रमित हो जाता है, लेकिन इस प्रोसेस में जल में मौजूद केमिकल व भारी धातुओं का उपचार नहीं होता। 

आगरा में इजरायली तकनीक से हो रहा उपचार 

उत्तर प्रदेश में केवल आगरा में जल शोधन के लिए अत्याधुनिक इजरायली तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। इस तकनीक से पीने के पानी की हर तरह की अशुद्धियां समाप्त हो जाती हैं। आगरा में यमुना जल बेहद दूषित था। इसलिए अलीगढ़ से गंगा से पानी लाकर यहां उपचार बाद आपूर्ति की जाती है। यह तकनीक महंगी है, लेकिन लोगों की सेहत के मद्देनजर जरूरत इस बात की है कि हर जगह उपचार की अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाए, तभी स्वच्छ जल मिल सकेगा। 

क्‍या कहते हैं जिम्‍मेदार 

जल निगम मुख्य अभियंता एके जिंदल ने बताया कि राजधानी में फिलहाल कंवेंशनल विधि से ही पानी का उपचार किया जाता है। ऐशबाग में 60 एमएलडी का एक और प्लांट बनाया जा रहा है। कंवेंशनल विधि को ही अपग्रेड किया जा रहा है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.