कसौटी के स्तंभ से जीवंत राममंदिर की युगों पुरानी विरासत, विक्रमादित्य को नींव की खोदाई में मिले थे ये
रामजन्मभूमि के इतिहास के अनुसार कसौटी के जिन 84 स्तंभों पर विक्रमादित्य ने मंदिर का निर्माण कराया था उनमें से कई का अस्तित्व अब भी विद्यमान है।
अयोध्या [रघुवरशरण]। रामजन्मभूमि पर बने मंदिर का इतिहास युगों पूर्व से ही समीकृत होता है। युगों के सफर में यदि यहां बना मंदिर कई बार जीर्ण पड़ा, तो उसे नए सिरे से निर्मित भी कराया गया। इस दौरान मंदिर का आकार-प्रकार तो बदलता रहा, पर निर्माण में प्रयुक्त कसौटी के स्तंभ अक्षुण्ण बने रहे। कसौटी के इन स्तंभों में से एक आज भी रामलला के ठीक सामने युगों पुरानी याद जिंदा करता है।
रामजन्मभूमि के इतिहास के अनुसार कसौटी के जिन 84 स्तंभों पर विक्रमादित्य ने मंदिर का निर्माण कराया था, उनमें से कई का अस्तित्व अब भी विद्यमान है। 1528 में मीर बाकी के हमले के बाद भी इन 84 स्तंभों में से कई का वजूद नष्ट नहीं हुआ। मीर बाकी ने इन्हीं 12 स्तंभों के सहारे मंदिर को मस्जिद का स्वरूप दिया। छह दिसंबर 1992 को ढांचा ध्वंस से पूर्व तक पुराकथाओं में वर्णित कसौटी के स्तंभों की मौके पर पहचान भी होती रही और इन्हीं स्तंभों के आधार पर इस दावे को बल मिलता था कि रामजन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़कर मस्जिद का आकार दिया गया था। ढांचा ध्वंस के बाद पुरातात्विक महत्व वाले कसौटी के स्तंभों को सहेजे जाने की यदा-कदा आवाज भी उठती रही। आज कसौटी के सभी 12 स्तंभों का हिसाब लगाना तो मुश्किल है, पर इनमें से कुछ जहां रामजन्मभूमि के ही करीब स्थित मानसभवन के एक कक्ष में संरक्षित हैं, वहीं इन्हीं में से एक स्तंभ को ध्वंस के बाद कारसेवकों ने रामलला के ठीक सामने स्थापित कर दिया था और जो सवा 27 वर्ष से उसी स्थान पर कायम है।
विक्रमादित्य को नींव में मिले कसौटी के 84 स्तंभ
राममंदिर में प्रयुक्त कसौटी के स्तंभों का जिक्र लोमश रामायण में मिलता है। रामजन्मभूमि के इतिहास से संबंधित प्रतिनिधि कृति ‘रामजन्मभूमि का रक्तरंजित इतिहास’ में लेखक रामगोपाल पांडेय ‘शरद’ ने लोमश रामायण के इस प्रसंग को उद्धृत किया है। वह लिखते हैं, प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान महाराज विक्रमादित्य के संरक्षण में रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की शुरुआत हुई। नींव की खोदाई के दौरान कसौटी पत्थर के 84 स्तंभ मिले थे और विक्रमादित्य ने इन्हीं स्तंभों पर भव्य भवन का निर्माण कराया।
संरक्षित हो दुर्लभ धरोहर
रामादल ट्रस्ट के अध्यक्ष पं. कल्किराम इन स्तंभों को अत्यंत दुर्लभ करार देते हैं। वे इन स्तंभों की वैज्ञानिक दृष्टि से प्रामाणिकता पुष्ट कराने तथा स्वतंत्र संग्रहालय में संरक्षित करने के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखने की तैयारी कर रहे हैं।
विश्वकर्मा ने किया था इन स्तंभों का निर्माण
लोमश रामायण के अनुसार, इन स्तंभों का निर्माण भगवान राम के पूर्वज महाराज अनरण्य ने देवशिल्पी विश्वकर्मा से कराया था और यह स्तंभ उनकी राजसभा में लगाया गया था। लंकापति रावण के आक्रमण के दौरान महाराज अनरण्य वीरगति को प्राप्त हुए और रावण कसौटी के 84 स्तंभों को उखाड़कर लंका ले गया। रावण लंका में इन स्तंभों का उपयोग उस सोने को परखने में करता था, जिससे उसने स्वर्णमयी लंका का निर्माण कराया। लंका विजय के बाद भगवान राम ने हनुमान जी से कहा, सीता का बदला तो रावण वध से पूर्ण हो गया पर अनरण्य दादा का बदला कैसे पूरा होगा। ..तब हनुमान जी लंका की राजसभा में लगे सभी कसौटी के स्तंभों को वापस अयोध्या ले आए और उसे अयोध्या के राज दरबार में स्थापित कराया। इन स्तंभों पर भगवान राम ने अपनी प्रशस्ति उत्कीर्ण कराने के साथ विजय और सफल प्रतिशोध के अभियान का नेतृत्व करने वाले हनुमान जी की मूर्ति भी उत्कीर्ण कराई, जिसे आज भी इन स्तंभों पर देखा जा सकता है।