ताउम्र मुफलिसी और सिस्टम से लड़े.. मगर हारे तो कैंसर से
वरिष्ठ रंगकर्मी आनंद प्रह्लाद के जाने से रंगकर्मी शोक में।
लखनऊ(जागरण संवाददाता)। रंगमंच में पिछले 25 वर्षो से अपनी प्रतिभा से विभिन्न नाटकों का मंचन करने वाले आनंद प्रह्लाद जिंदगी की जंग हार गए। पिछले कई महीनों से कैंसर से लड़ रहे आनंद प्रह्लाद का निधन रविवार को हुआ। सुबह 10:30 बजे लोहिया हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर सुनते ही कलाकारों में शोक की लहर दौड़ गई। उनके अंतिम दर्शन के लिए पार्थिव शव को संगीत नाटक अकादमी के परिसर में रखा गया। जहां पर सैकड़ों कलाकारों ने श्रद्धाजंलि दी। इसमें मुकेश वर्मा, विनोद मिश्रा, संजय त्रिपाठी, अभय गुप्ता, हफीज समेत कई लोग मौजूद रहे।
मूलरूप से संडीला के रहने वाले आनंद प्रह्लाद ने अपने कॅरियर में संघर्ष और मेहनत से एक अलग मुकाम बनाया। अपनी संस्था अभिमंच कला एकांश के माध्यम से रंगमंडल का संचालन किया। निरंतर नई प्रस्तुतियां देना रंगमंच के प्रति उनके प्रेम और समर्पण को दर्शाता है। 90 के दशक में आनंद का रंगमंच के प्रति जुनून शुरू हुआ। भारतेंदु नाट्य अकादमी के रंगमंडल और नई दिल्ली में श्रीराम सेंटर के रंगमंडल मे बतौर कलाकार अनुभव प्राप्त किया। अनेक नाटक मंच पर उतारे, नाट्य कार्यशालाओं और अपनी संस्था के रंगमंडल के माध्यम से अनेक कलाकारों को रंगमंच के लिए तैयार किया। उनके प्रमुख नाटकों में पियानो बिकाऊ है, एक टूटी हुई कुर्सी, टर्किश बाथ, दुर्लभ बंधु, संतोला, मरणोपरांत आदि शामिल हैं। मगर जीवन के अंतिम दिनों में वे सिस्टम और लालफीताशाही से हार गए। 11 जुलाई को केजीएमयू में एडमिट होने के बाद उन्हें उचित इलाज नहीं मिला, जिसका दर्द उन्होंने अपने फेसबुक पर भी लिखा। कलाकारों ने बताया कि बहुत ही परेशानी में नाटक करते थे। उनके कई नाटकों की ग्रांट अभी भी विभाग में फंसी हुई है। उनका दुनिया से जाना रंगमंच के लिए बहुत बड़ा नुकसान है।
आनंद ने किया देह दान:
आनंद प्रह्लाद की संजीदगी और इंसानियत का पता इसी बात से चलता है कि उन्होंने अपना देह दान कर दिया है। रंगकर्मी मुकेश वर्मा ने बताया कि आनंद की इच्छा थी कि उनकी मृत्यु पर शोक सभा का आयोजन न होकर उनको तालियों से श्रद्धाजंलि दी जाए। आनंद ने अब तक कई नए कलाकारों को मंच पर मौका दिया था। उनके निर्देशन में कई वरिष्ठ कलाकारों ने अपने अभिनय का हुनर दिखाया। रंगमंच से करते थे प्रेम:
आनंद का जाना लखनऊ रंगमंच के लिए अपूर्णनीय क्षति है। अभी कुछ दिन पूर्व ही अस्वस्थता की स्थिति में स्थानीय मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए थे। जहा पता लगा कि उन्हें कैंसर है और काफी फैल चुका है। कलाकार एसोसिएशन और कुछ स्थानीय रंगकर्मी जुटे और आनंद को पूरा सहयोग प्रदान किया। आनंद की आय का कोई स्त्रोत नहीं था, इसलिए सबने मिलकर आर्थिक मदद दी और आगे इलाज के लिए भी धन की व्यवस्था की। परिवार में केवल दो भाई एक बहन है।
क्या कहते हैं वरिष्ठ रंगकर्मी:
वरिष्ठ रंगकर्मी गोपाल सिन्हा ने बताया कि इसी बीमारी के बीच आनंद ने मेरी जिज्ञासा के उत्तर में बताया था कि नाटक से ही उनका विवाह माना जाए। जब तक जीवन है वह नाटक से तलाक नहीं ले सकते।