उपचुनाव ने समाजवादी पार्टी को दी संजीवनी, चाचा के साथ आने से अखिलेश को मिली ताकत!
पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट का उपचुनाव सपा के लिए सबसे बड़ी प्रतिष्ठा से जुड़ा था। नेताजी की सियासी विरासत संभालने के लिए अखिलेश ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुना था।
लखनऊ, शोभित श्रीवास्तव, जागरण टीम : मैनपुरी लोकसभा व खतौली विधानसभा उपचुनाव में मिली जीत के साथ ही समाजवादी पार्टी को संजीवनी मिलती दिख रही है। आजमगढ़ व रामपुर लोकसभा उपचुनाव में जिस तरह सपा को अपनी ही सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था, उससे पार्टी को बड़ा झटका लगा था लेकिन इस उपचुनाव में साइकिल ने रफ्तार भरी और पार्टी को नई ताकत दी। इस जीत का असर नगरीय निकाय चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव में भी नजर आएगा। हालांकि, सपा को उस रामपुर सीट पर हार का सामना करना पड़ा है जहां मतदान में गड़बड़ी को लेकर उसने आयोग से चुनाव को निरस्त करने की मांग की थी।
पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट का उपचुनाव सपा के लिए सबसे बड़ी प्रतिष्ठा से जुड़ा था। ''''नेताजी'''' की सियासी विरासत संभालने के लिए अखिलेश ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुना था। पिछले उपचुनाव में जो गलतियां अखिलेश ने की थी उससे सबक लेते हुए इस बार कोई चूक नहीं की। अखिलेश ने सबसे पहले नाराज चल रहे चाचा शिवपाल सिंह यादव को मनाया। अखिलेश यह जानते थे कि मैनपुरी का चुनाव बगैर चाचा को साथ लिए नहीं जीता जा सकता है। जीत दर्ज करने के लिए सपा प्रमुख ने खुद माइक्रो लेवल पर चुनाव प्रबंधन किया और करीब 20 दिनों से मैनपुरी क्षेत्र में ही नेताजी की सियासी विरासत बचाने के लिए डटे रहे।
इसी का नतीजा है कि डिंपल यादव ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली है। डबल इंजन की सरकार के बावजूद ''''नेताजी'''' की सहानुभूति की लहर ऐसी चली कि सपा ने मैनपुरी लोकसभा की पांचों विधानसभा सीटों पर कमल मुरझा दिया। पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह मैनपुरी विधानसभा सीट से विधायक हैं किंतु वे भी अपनी सीट पर कमल नहीं खिला पाए। भोगांव से भाजपा विधायक व पूर्व मंत्री राम नरेश अग्निहोत्री भी अपनी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार को नहीं जिता पाए। अखिलेश इस बार मैनपुरी के साथ ही रामपुर के उपचुनाव में भी प्रचार करने गए। आजमगढ़ व रामपुर लोकसभा उपचुनाव में मिली हार के कारणों में एक प्रमुख कारण अखिलेश का वहां प्रचार करने न जाना भी था। चूंकि आजमगढ़ लोकसभा सीट से अखिलेश ही सांसद थे और उन्हीं के छोड़ने पर यह सीट रिक्त हुई थी।
यह उपचुनाव सपा के लिए संदेश भी है कि सैफई का यादव परिवार एकजुट हुआ तो उसके परिणाम मैनपुरी में दिखाई दे रहे हैं। परिवार एक-पार्टी एक का संदेश देकर उपचुनाव से जिस तरह से सपा ने वापसी की है वर्ष 2024 में भी इसके सुखद परिणाम नजर आ सकते हैं। अब अगर यादव परिवार में बिखराव होता है तो अखिलेश के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है। साथ ही अखिलेश पर विश्वास का संकट भी खड़ा हो सकता है।