भाजपा के समीकरण में गठबंधन की सेंधमारी, खतौली ने सपा-रालोद गठबंधन की नींव की मजबूत
जयंत ने ट्वीट किया कि रालोद अब लकी नंबर नौ की तरफ बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि खतौली और मैनपुरी में जिस तरह सबका साथ मिला बहुत खुशी हुई किंतु रामपुर में लोकतांत्रिक मूल्यों का जिस तरह गला घोटा गया है उससे आहत हूं। जीत का जश्न नहीं मनाऊंगा।
लखनऊ, राज्य ब्यूरो : मुजफ्फरनगर की खतौली सीट जिस तरह रालोद व सपा गठबंधन ने भाजपा से छीनी है, उससे साफ है कि पश्चिम यूपी में गठबंधन भाजपा के लिए नगरीय निकाय चुनाव व 2024 के लोकसभा चुनाव में चुनौती बन सकता है। खतौली की जीत से सपा-रालोद गठबंधन की नींव और मजबूत हुई है। साथ ही पश्चिम यूपी में भाजपा के सियासी समीकरण में गठबंधन ने सेंधमारी कर दी है।
खतौली विधानसभा सीट के उपचुनाव में सपा-रालोद गठबंधन की जीत पश्चिम यूपी में बड़ा संदेश देगी। लगातार दो बार भाजपा की जीत के बाद उपचुनाव में यहां कमल मुरझा गया। जिस तरह से अखिलेश मैनपुरी में डटे रहे उसी तरह करीब 20 दिनों से रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी भी खतौली में लगे रहे। उन्होंने यहां दिन-रात कैंप कर भाजपा के खिलाफ माहौल बनाया और गन्ना किसानों का मुद्दा गंभीरता से उठाया। जयंत चौधरी ने यहां सामाजिक समीकरण भी साधने की कोशिश की। उन्होंने यहां मदन भैया के जरिए गुर्जर-मुस्लिम-जाट समीकरण बनाया।
उन्होंने भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद का भी साथ लिया। जदयू नेता केसी त्यागी को भी अपने साथ जोड़ा। तमाम वर्गों के बीच अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश की। इसी का नतीजा खतौली की जीत है।
इस जीत का असर किसान बहुल पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति पर दिखाई दे सकता है। खतौली सीट के नतीजों ने यह साबित कर दिया कि पश्चिम यूपी में फिर जयंत चौधरी फिर से अपना गढ़ वापस छीनने की दिशा में बढ़ गए हैं। इस जीत के साथ ही रालोद के अब विधानसभा में नौ विधायक हो गए हैं। जयंत ने ट्वीट किया कि रालोद अब लकी नंबर नौ की तरफ बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि खतौली और मैनपुरी में जिस तरह सबका साथ मिला बहुत खुशी हुई और ये सर्व समाज में समरसता के अच्छे संकेत हैं, किंतु रामपुर में लोकतांत्रिक मूल्यों का जिस तरह गला घोटा गया है उससे आहत हूं। जीत का जश्न नहीं मनाऊंगा।
रालोद को गठबंधन में मिली थी 33 सीटें
रालोद को सपा के साथ गठबंधन में 2022 के विधानसभा चुनाव में 33 सीटें मिली थीं। इसमें से आठ सीटों पर उसे सफलता मिली थी। सपा अध्यक्ष अखिलेश ने रालोद के साथ गठबंधन को मजबूती उसी दिन प्रदान कर दी थी जब केवल आठ विधायक होने के बावजूद रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी से किया अपना वादा निभाते हुए उन्हें सपा विधायकों के कोटे से राज्य सभा सदस्य बनवा दिया था।