उत्तर प्रदेश राज्यनामाः यहां सिपाही गोली मारता है और विधायक थप्पड़
सिपाहियों को बर्खास्त करके जेल भेज दिया गया लेकिन, सिपाहियों की सजा विवेक की पत्नी और बेटियों को जीवन भर के लिए मिली यातना के सामने कुछ भी नहीं।
लखनऊ। यूपी पुलिस की कुख्याति क्यों है और क्यों भले लोग उससे बात करने और उसके पास जाने से घबराते हैं, यह क्रूर सच एक बार फिर उजागर हुआ। लखनऊ में एक सिपाही द्वारा एक निर्दोष व्यक्ति विवेक तिवारी को गोली से उड़ा दिया गया। पुलिस की बर्बरता का शिकार दो नन्हीं बेटियों का यह पिता हमेशा के लिए सो गया। घटना बहुत बड़ी थी तो राज्य सरकार भी तत्काल हरकत में आई।
परिवार को मुआवजा और पत्नी को नगर निगम में नौकरी देने की घोषणा हो गई। सिपाहियों को बर्खास्त करके जेल भेज दिया गया लेकिन, सिपाहियों की सजा विवेक की पत्नी और बेटियों को जीवन भर के लिए मिली यातना के सामने कुछ भी नहीं। जीवन एक पल में कैसे बदल जाता है, यह घटना इस सत्य की बानगी है। घटना के बाद जिस तरह लखनऊ से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक दल टिड्डों की तरह संवेदना का व्यापार करने टूट पड़े, वह भी शर्मनाक है। इसी राजनीतिक बाजीगरी के कारण हमारे यहां चीजें सुधरती नहीं, वे साल दर साल वैसे ही पड़ी रह जाती हैं।
इस घटना ने रात बिरात अकेले निकलने वाले शरीफ लोगों को बेहद डरा दिया है। कार में जा रहे किसी व्यक्ति की जान यदि वर्दी ले सकती है तो चोर बदमाश तो फिर आफत ही ढा देंगे। विवेक की निढाल पत्नी का रोते हुए यह कहना कि, 'पुलिस पागल हो गई है यूपी पुलिस के दामन पर एक ऐसे दाग की तरह चिपक गया है जो अब छुटाये नहीं छूटेगा। दाग हटाना है तो पोस्टिंग से लेकर वसूली तक के अनेक प्रश्न हल करने होंगे जोकि सम्भव नहीं। दोष नीचे नहीं, ऊपर है और व्यवस्थागत है। यूपी पुलिस में बहादुरों की कमी नहीं। न ऊपर, न बीच में और न नीचे। प्रश्न बस दृष्टि और भावना का है।
हैसियत के अहंकार की दूसरी घटना बलिया में हुई जहां भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह ने जिला प्रशासन के अधिकारियों और भाजपा सांसद के सामने जिला विद्यालय निरीक्षक पर हाथ उठा दिया, उन्हें धक्का दिया। यह विधायक अपने बयानों के कारण हमेशा ही सुर्खियां बटोरते रहे हैं। कभी उन्हें माफिया मुन्ना बजरंगी की जेल में की गई हत्या में ईश्वर का हाथ लगने लगता है तो कभी वह ममता बनर्जी को अपशब्द कह देते हैं। विधायक को जिला विद्यालय निरीक्षक से कोई शिकायत हो सकती है लेकिन, उसका समाधान हिंसा तो हर्गिज नहीं।
इस बात में कोई संदेह नहीं कि उत्तर प्रदेश का शिक्षा विभाग लाखों लोगों की मानसिक प्रताडऩा का कारण है। यहां कोई परीक्षा बिना नकल नहीं होती, शिक्षकों के ऊपर शिक्षा अधिकारियों का आतंक सवार रहता है और मिलीभगत के चलते कुछ शिक्षक भी शिकमी किरायेदार तक रख लेते हैं। खुद घर बैठ जाते हैं और अपने एक तिहाई या चौथाई वेतन के बराबर रकम देकर दूसरों से अपनी क्लास पढ़वा देते हैं।
सब यह खेल जानते हैं और सब चुप रहते हैं क्योंकि सबके हित सबसे जुड़े होते हैं। बलिया के विधायक उसी दल के हैं जिसकी प्रदेश में सरकार है, लिहाजा व्यवस्था में कमी का ठीकरा वह विपक्ष पर नहीं फोड़ सकते। अधिकारी उनके, मंत्री उनके लेकिन, यदि इसके बाद भी वे व्यवस्था नहीं ठीक कर पा रहे तो बदले में किसी पर हाथ उठाने का अधिकार उन्हें नहीं मिल जाता पर चूंकि विधायक समर्थ हैं तो उन्हें दोष भी नहीं लगना।
मारा तो आम आदमी ही जाता है...! जैसे विवेक तिवारी।