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उत्तर प्रदेश डायरीः ताबड़तोड़ वारदातें और अपराधियों के हाथ बंधक कानून

लखनऊ में राजभवन के सामने उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था किसी पुराने स्वेटर की तरह उधेड़ी जा रही थी। खाकी का डर रेशा रेशा हो रहा था और उसकी धमक किसी कोने में जा दुबकी थी।

By Ashish MishraEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 09:30 AM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2018 07:28 AM (IST)
उत्तर प्रदेश डायरीः ताबड़तोड़ वारदातें और अपराधियों के हाथ बंधक कानून
उत्तर प्रदेश डायरीः ताबड़तोड़ वारदातें और अपराधियों के हाथ बंधक कानून

लखनऊ [आशुतोष शुक्ल]। सावन के पहले सोमवार को जब इंद्रदेव भगवान शिव को स्नान कराने में मगन थे, लखनऊ में राजभवन के सामने उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था किसी पुराने स्वेटर की तरह उधेड़ी जा रही थी। खाकी का डर रेशा रेशा हो रहा था और उसकी धमक किसी कोने में जा दुबकी थी। उस दिन एक कैश वैन के गार्ड को दिन-दहाड़े गोली मारकर लुटेरा साढ़े छह लाख रुपये लूट ले गया। बाद में सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि बदमाश आधे घंटे तक लगभग तीन वर्ग किलोमीटर के दायरे में अपनी मोटरसाइकिल घुमाता रहा और उधर पुलिस कॉम्बिंग ही करती रह गई। जहां यह घटना हुई, वहां सरकार रहती है। लिहाजा पुलिस की गश्त बनी ही रहती है। फिर भी लुटेरा इतनी हिम्मत कर गया और एक सप्ताह बाद वह रायबरेली से पकड़ा जा सका।

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अगला दिन (31 जुलाई) : प्रतापगढ़ में एक पिता पुत्र बैंक से दस हजार रुपये लेकर लौट रहे थे, जबकि बदमाश उनके पीछे लग गए और बेटे को गोली मार कर रकम लूट ले गए।

तीन अगस्त : कानपुर के नौबस्ता में एक ग्रामीण बैंक में तीन नकाबपोश घुसते हैं, पांच देशी बम फोड़ते हैं, दो बैंककर्मियों को घायल करते हैं और करीब पांच लाख रुपये लूटकर फरार हो जाते हैं। इसी दिन सहारनपुर में दो लाख रुपये फिरौती न देने पर एक अपहृत स्कूल प्रबंधक की हत्या कर दी जाती है। ऐसी घटनाएं और भी हैं। बड़े निवेशकों को उत्तर प्रदेश में लुभाने की कोशिशों के बीच बीते पूरे हफ्ते अपराध भी सिर चढ़ कर बोले। आम लोग ऐसे ही अपराधों से डरते हैं। मुन्ना बजरंगी की जेल में की गई हत्या उनके लिए महज बतकही का एक विषय है। वे जानते हैं कि यह अपराधी गिरोहों की लड़ाई है जिससे उनका कोई लेना-देना नहीं।

आम लोग उन अपराधों से दहशत खाते हैं जो उनके इर्दगिर्द होते हैं। चोरी, डाका, चेन छिनैती, राहजनी और बेटी-बहन से किया गया अभद्र व्यवहार उन्हें विचलित करता है। यूपी में इन दिनों यही हो रहा है। पुलिस अधिकारी रोज नियंत्रण के दावे करते हैं और रोज ही अपराधी उनका मखौल उड़ा देते हैं। पुलिस के जिम्मे दूसरा काम है ट्रैफिक कंट्रोल, लेकिन यूपी में वह भी पूरी तरह पटरी से उतरा हुआ है। उतरा तो पहले से ही है, पटरी पर इस सरकार में भी नहीं आ सका है।

खाकी वर्दी के आभामंडल में यह कमी जैसे कम थी कि एक बड़े पुलिस अधिकारी ने अपने से भी बड़े अफसर की जांच रिपोर्ट पर सवाल खड़े कर दिए। एंटी टैरेरिस्ट स्क्वायड (एटीएस) के एएसपी राजेश साहनी कुछ महीने पहले अपने दफ्तर में गोली से मरे मिले थे। पहले तो यह आत्महत्या का ओपन एंड शट केस माना गया, लेकिन बाद में इसकी जांच लखनऊ जोन के अपर पुलिस महानिदेशक राजेश कृष्ण को सौंप दी गई।

उनकी रिपोर्ट में एटीएस में खामियां बताई गईं, लेकिन चार दिन पहले एटीएस के आईजी असीम अरुण ने इस रिपोर्ट को ही अमान्य कर दिया और सीबीआइ जांच की मांग कर डाली। इसके अगले ही दिन दिवंगत राजेश साहनी की पत्नी ने बड़ा बयान दे दिया कि राजेश तो एटीएस से ही हटना चाहते थे। यानी यदि एक पुलिस अफसर की मृत्यु में कहीं कोई पेंच है तो वह एटीएस में हो सकता है।

अब एक अप्रिय घटना..! ऐसी निंदनीय घटना जो बताती है कि हम 2018 की मोबाइल क्रांति वाली दुनिया में नहीं, बल्कि मध्य युग में रह रहे हैं। 29 जुलाई को एक भाजपा विधायक मनीषा अनुरागी हमीरपुर के राठ में धूम्र ऋषि के सदियों पुराने आश्रम में बने मंदिर में चली गईं। उनका जाना जैसे आफत हो गया। मनीषा चूंकि महिला थीं तो उनके लिए मंदिर प्रवेश वर्जित था। उनके जाने के बाद ग्रामीणों ने चंदा करके मंदिर की मूर्ति को प्रयाग में संगम भेजा जहां उसे नहलाया गया।

इधर मंदिर को गंगाजल से धोया गया। ग्रामीणों को डर था कि मंदिर में महिला के आने के अपराध का यदि प्रायश्चित न हुआ तो धूम्र ऋषि क्रुद्ध हो जाएंगे और तब गांव में सूखा पड़ेगा। बेचारी विधायक ने माफी मांगी और मान लिया कि वह गलती से मंदिर चली गई थीं। यह वह सामाजिक बीमारी है जिसका निदान राजनीति और समाज सबकी जिम्मेदारी थी, लेकिन सब फेल हुए । ..या शायद किसी ने पास होना ही नहीं चाहा !

लेखक दैनिक जागरण उत्तर प्रदेश के राज्य संपादक हैं 


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