UPPCL PF Scam : CBI ने 4 माह बाद केस दर्ज कर शुरू की जांच, अब तक 17 आरोपित भेजे गए जेल
UPPCL PF Scam लखनऊ में दो नवंबर 2019 को एफआईआर दर्ज कराई गई थी और इसी दिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने घोटाले की सीबीआई जांच कराने की सिफारिश भी कर दी थी।
लखनऊ, जेएनएन। UPPCL PF Scam : बिजली कर्मियों के बहुचर्चित भविष्य निधि (पीएफ) घोटाले में सीबीआई लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने चार माह बाद केस दर्ज कर लिया है। पीएफ घोटाले में लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में दो नवंबर, 2019 को धोखाधड़ी की धाराओं में एफआईआर दर्ज कराई गई थी और इसी दिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने घोटाले की सीबीआई जांच कराने की सिफारिश भी कर दी थी।
फिलहाल राज्य सरकार के आदेश पर एफआईआर की विवेचना आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) कर रही है। जांच में दोषी पाए गए पावर कारपोरेशन के तत्कालीन एमडी एपी मिश्र, निदेशक (वित्त) सुधांशु द्विवेदी व यूपी स्टेट सेक्टर पावर इंप्लाइज ट्रस्ट के सचिव पीके गुप्ता समेत 17 आरोपितों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है।
सीबीआई ने हजरतगंज कोतवाली में दर्ज एफआईआर को अपने केस का आधार बनाया है। सीबीआई जांच में अब आरोपित अधिकारियों के अलावा कई सफेदपोशों की भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। सीबीआई ने जांच शुरू करने के साथ ही ईओडब्ल्यू से अब तक की गई पड़ताल से जुड़े दस्तावेज भी मांगे हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी दिसंबर 2019 में पीएफ घोटाले में मनी लांड्रिंग के तहत केस दर्ज कर अपनी जांच शुरू की थी।
ईओडब्ल्यू ने दो नवंबर, 2019 को जांच शुरू करने के साथ ही एफआईआर के नामजद आरोपित सुधांशु द्विवेदी व पीके गुप्ता की गिरफ्तारी की थी। शक्ति भवन के दूसरे तल स्थित ट्रस्ट के कार्यालय में छानबीन कर कई अहम दस्तावेज कब्जे में लेने के साथ ही ईओडब्ल्यू ने पांच नवंबर 2019 को कारपोरेशन के तत्कालीन एमडी एपी मिश्र को भी गिरफ्तार कर लिया था। ईओडब्ल्यू ने मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की बढ़ोतरी भी की थी।
जांच में सामने आया कि भविष्य निधि की रकम का निवेश नियमों को दरकिनार कर पीएनबी हाउसिंग व निजी कंपनी दीवान हाउसिंग फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड (डीएचएफसीएल) में किया गया था। पूर्व एमडी एपी मिश्र ने वर्ष 2016 में भविष्य निधि की रकम पीएनबी हाउसिंग में निवेश किये जाने की मंजूरी दी थी।
15 मार्च, 2017 को निजी कंपनी डीएचएफसीएल से कोटेशन लिया गया था। अगले दिन 16 मार्च को दो और निजी कंपनियों से कोटेशन लिये गए थे और इसी दिन डीएचएफसीएल में भविष्य निधि की रकम निवेश किए को मंजूरी दे दी गई थी। 16 मार्च 2017 को ही तत्कालीन एमडी एपी मिश्र ने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया था। 17 मार्च को डीएचएफसीएल को 18 करोड़ रुपये की पहली किस्त आरटीजीएस के जरिये दी गई थी।
तत्कालीन चेयरमैन संजय अग्रवाल से भी हुई थी पूछताछ
ईओडब्ल्यू ने मामले में पावर कारपोरेशन के तत्कालीन चेयरमैन संजय अग्रवाल (वर्तमान में केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय में सचिव) से भी पूछताछ की थी। ट्रस्ट की बैठक में हस्ताक्षर से उनकी भूमिका जांच के घेरे में थी। ईओडब्ल्यू के अधिकारियों का कहना है कि फोरेंसिक जांच में बोर्ड की बैठक में संजय अग्रवाल के दस्तखत फर्जी पाए गए हैं। हालांकि, अभी इस बात की जांच चल रही है कि फर्जी हस्ताक्षर किसने किए थे?
घोटाला सामने आने के दौरान पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष व प्रमुख सचिव ऊर्जा आलोक कुमार तथा एमडी व सचिव ऊर्जा अपर्णा यू के भी बयान दर्ज किए जा चुके हैं। सीबीआई, जांच में सभी संबंधित अधिकारियों की भूमिका की नए सिरे से पड़ताल करेगी। वहीं, ईओडब्ल्यू मामले में आरोपित एपी मिश्र, सुधांशु द्विवेदी व पीके गुप्ता के खिलाफ पहला आरोपपत्र कोर्ट में दाखिल कर चुकी है।
यह है पूरा मामला
बिजली कर्मियों के जीपीएफ व सीपीएफ के 4122.70 करोड़ों रुपये डीएचएफसीएल में असुरक्षित ढंग से निवेश किए गए हैं। मार्च 2017 से दिसंबर 2018 तक यूपी स्टेट सेक्टर पावर इंप्लाइज ट्रस्ट द्वारा जीपीएफ के 2631.20 करोड़ रुपये और यूपीपीसीएल सीपीएफ (कंट्रीब्यूटरी प्रॉविडेंट फंड) के 1491.50 करोड़ रुपये डीएचएफसीएल में फिक्स्ड डिपॉजिट करा दिए गए थे। इसमें से कुल 1854.80 करोड़ रुपये ही वापस मिल सके हैैं। मुंबई हाईकोर्ट द्वारा डीएचएफसीएल के भुगतान पर रोक लगाने के बाद बिजलीकर्मियों के भी 2267.90 करोड़ रुपये फंस गए थे।
बोर्ड बैठक की तारीख में हुआ था खेल
डीएचएफसीएल को दिये गये अप्रूवल को ट्रस्ट बोर्ड की मंजूरी दिलाने के लिए 22 मार्च 2017 को दो साल बाद पहली बैठक बुलाई गई थी। पांच सदस्यीय बोर्ड की बैठक में पावर कारपोरेशन के तत्कालीन तत्कालीन अध्यक्ष संजय अग्रवाल, एमडी एपी मिश्रा, निदेशक वित्त सुधांशु त्रिवेदी, महाप्रबंधक व सचिव ट्रस्ट पीके गुप्ता तथा निदेशक कार्मिक सत्यप्रकाश पांडेय (दिवंगत हो चुके) मौजूद थे। जांच में सामने आया था कि वास्तव में 22 मार्च को हुई बैठक को लिखापढ़ी में 24 मार्च को होना दिखाया गया था।
ब्रोकर फर्मों के जरिये वसूला गया था कमीशन
डीएचएफएल में निवेश कराने के बदले कई ब्रोकर फर्मों के जरिये करोड़ों रुपये की दलाली खाई जाने की बात सामने आ चुकी है। तत्कालीन सचिव ट्रस्ट पीके गुप्ता के बेटे अभिनव गुप्ता ने इसमें सबसे अहम भूमिका निभाई थी। कई फर्जी ब्रोकर फर्मों के जरिए कमीशन की रकम को ठिकाने लगाया गया था। ईओडब्ल्यू ने अभिनव गुप्ता, फर्जी ब्रोकर फर्म संचालक आशीष चौधरी व चार चार्टर्ड अकाउंटेंट को भी गिरफ्तार किया है।
बढ़ता चला गया इंजीनियर एपी मिश्र का रसूख
इंजीनियरिंग सेवा से नौकरी की शुरुआत करने वाले एपी मिश्र ने काफी तेजी से तरक्की पाई थी। खासकर सपा शासनकाल में उनका रसूख लगातार बढ़ता गया था। वह वर्ष 2012 से दिसंबर 2015 तक अलग-अलग अवधि में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम व मध्यांचल विद्युत वितरण निगम में एमडी के पद पर कार्यरत रहे। बाद में पावर कारपोरेशन के एमडी बने और उन्हें तीन बार सेवा विस्तार भी मिला। वह पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी माने जाते थे।
इंजीनियर-कर्मचारी संगठनों की बढ़ीं उम्मीदें
उप्र पावर आफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष केबी राम, कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा व अन्य पदाधिकारियों ने पीएफ घोटाले की सीबीआइ जांच शुरू होने को कर्मचारियों की बड़ी जीत बताया है। कहा है कि अब घोटाले से जुड़े सभी लोग बेनकाब होंगे। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के शैलेन्द्र दुबे, राजीव सिंह व अन्य पदाधिकारियों ने भी उम्मीद जताई है कि सीबीआइ जांच से बिजली कर्मचारियों को पूरा न्याय मिलेगा और सभी दोषियों पर कार्रवाई होगी। दोनों ही संगठनों ने सीबीआइ जांच की संस्तुति के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आभार जताया है।