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मांगें पूरी नहीं होने पर यूपी के राज्य कर्मचारी नाराज, 23 और 24 अप्रैल को कार्य बहिष्कार का एलान

मुख्य सचिव के साथ बीते दिनों हुए समझौते के बावजूद अभी तक मांगें पूरी न होने के विरोध में यूपी के राज्य कर्मचारी 23 व 24 अप्रैल को कार्य बहिष्कार करेंगे।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Mon, 03 Feb 2020 09:20 PM (IST)Updated: Mon, 03 Feb 2020 09:21 PM (IST)
मांगें पूरी नहीं होने पर यूपी के राज्य कर्मचारी नाराज, 23 और 24 अप्रैल को कार्य बहिष्कार का एलान
मांगें पूरी नहीं होने पर यूपी के राज्य कर्मचारी नाराज, 23 और 24 अप्रैल को कार्य बहिष्कार का एलान

लखनऊ, जेएनएन। मुख्य सचिव के साथ बीते दिनों हुए समझौते के बावजूद अभी तक मांगें पूरी न होने के विरोध में राज्य कर्मचारी 23 व 24 अप्रैल को कार्य बहिष्कार करेंगे। सोमवार को गांधी भवन सभागार में सुरेश रावत की अध्यक्षता में राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद की प्रांतीय कार्यकारिणी की बैठक में यह निर्णय लिया गया। पुरानी पेंशन, वेतन विसंगति दूर करने और भत्ते में समानता सहित कई मांगें अभी पूरी नहीं हुई हैं।

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परिषद के महामंत्री अतुल मिश्रा ने बताया कि कर्मचारी 20 अप्रैल से काली पट्टी बांधकर आंदोलन शुरू करेंगे। 22 अप्रैल को सभी जिलों में मोटरसाइकिल रैली में निकाली जाएगी। अक्टूबर 2019 में कर्मचारियों की मांगों को लेकर मुख्य सचिव ने कर्मचारी नेताओं के साथ बैठक की थी, लेकिन अभी तक कोई मांगें पूरी नहीं हुईं। इसके कारण कर्मचारियों में आक्रोश है।

कर्मचारी कल्याण निगम की कैंटीन में बेचे जा रहे सामान को जीएसटी का 50 प्रतिशत भार राज्य सरकार द्वारा वहन करने पर सहमति बनी थी, लेकिन वित्त विभाग इसके उलट इसे बंद करने की सलाह दे रहा है। वहीं आउटसोर्सिंग पर संविदा पर काम कर रहे तीन लाख कर्मचारियों के लिए अभी तक कोई स्थायी नीति नहीं बनी। इसके अलावा कर्मचारियों को कैशलेस चिकित्सा सुविधा देने सहित तमाम मांगें अभी लंबित हैं। परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गिरीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि कर्मचारियों की मांगें तो पूरी हुईं नहीं उल्टा उनके छह भत्ते खत्म कर दिए गए। ऐसे में कर्मचारी अब आरपार की लड़ाई के मूड में हैं।

यह भी निर्णय लिया गया था कि एक समान शैक्षिक योग्यता वाले संवर्गों को एक समान वेतन भत्ते अनुमन्य किए जाए चाहे वे किसी भी विभाग में कार्यरत हो, लेकिन वित्त विभाग द्वारा अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। बार-बार समझौतों के बावजूद कर्मचारियों की कैशलेस चिकित्सा अभी तक प्रारम्भ नहीं हो सकी, जबकि पूर्व से मिल रहे चिकित्सा प्रतिपूर्ति भूगतान हेतु बजट के अनुदान की ग्रुपिंग में फेरबदल कर उसे और जटिल बना दिया गया, यहा तक कि सरकारी चिकित्सालयों में दवाओं के लोकल परचेज पर भी रोक लगा दी गई।


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