आखिर मिलावटी खाद्य पदार्थ या नकली दवाइयां इतने धड़ल्ले से बिक कैसे जाती हैं?
ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों और शहरों की सघन और मलिन बस्तियों तक खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग कर्मी पहुंचना ही नहीं चाहती। इसी का फायदा मिलावटखोर उठाते हैं। विभाग की निष्क्रियता का फायदा अन्य लोग भी उठाते हैं।
लखनऊ, राजू मिश्र। कानपुर में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग की टीम ने एक फैक्ट्री पकड़ी है, जहां धान की भूसी को पीसकर सिंथेटिक रंग मिलाकर उसे कश्मीरी मिर्च नाम से पैक किया जा रहा था। बाजार में इसे धड़ल्ले से स्वास्तिक कश्मीरी पाउडर और महाराजा कश्मीरी पाउडर ब्रांड नाम से बेचा रहा था। टीम ने करीब 20 क्विंटल नकली कश्मीरी मिर्च पाउडर, सिटिक एसिड, मोनो सोडियम ग्लूटामेट जब्त किया है। फिलहाल फैक्ट्री मालिक और उसके पुत्र को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। हालांकि इस मामले में कानून इतने लचर हैं कि वे शीघ्र ही जमानत पर बाहर भी आ जाएंगे और हो सकता है फिर अपना वही या उससे मिलता-जुलता धंधा शुरू कर दें। बाजार में ऐसा कोई खाद्य पदार्थ या दवाइयां नहीं हैं, जिनका नकली उत्पाद न उपलब्ध हो। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि कहीं इसकी रोकथाम का विभाग ही तो दिखावे का नहीं है?
यह सफलता भी खाद्य विभाग को तब मिली जब पिछले दिनों जनसुनवाई पोर्टल पर किसी ने नकली कश्मीरी मिर्च पाउडर बाजार में बेचे जाने की शिकायत दर्ज की। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग के अधिकारियों ने बाजार से अलग-अलग ब्रांड नाम के कश्मीरी मर्च पाउडर को खरीदा और उसकी जांच की तो स्वास्तिक और महाराजा ब्रांड के कश्मीरी पाउडर नकली मिले। फिर फैक्ट्री पर छापा मारा गया। चिकित्सकों का मानना है कि सिटिक एसिड के अधिक इस्तेमाल से शरीर में सुन्नता, मांसपेशियों में दर्द के साथ ही मिर्गी के दौरे पड़ने की शिकायत हो सकती है। मोनो सोडियम ग्लूटामेट के सेवन से सीने में दर्द, हृदय की गति बढ़ने की समस्या होती है। पसीना ज्यादा आता है और सिर दर्द भी होता है।
सवाल यह है कि खाद्य पदार्थो में मिलावट रोकने के लिए पूरा महकमा काम कर रहा है। तमाम टेस्टिंग लैब संचालित हैं। खाद्य पदार्थो एवं औषधियों का मानक तय करने के लिए पूरा ब्यूरो काम कर रहा है। इन सबके बावजूद बाजार में मिलावटी खाद्य पदार्थ और नकली दवाइयां धड़ल्ले से बिक रही हैं। ऐसे में विभाग की निष्ठा पर, कार्य के तौर तरीकों पर सवाल उठने लगे हैं। यदि विभाग से यह हिसाब लिया जाए कि साल भर में पूरे 365 दिन में उसने कितने स्थानों से सैंपल लिए या कोई कार्रवाई की तो उसके खाते में महज कुछ दिनों का ही हिसाब आएगा। यानी बाकी साल के दिन दफ्तर में बैठकर बिताए जाते हैं। ऐसे में उठने वाले इस सवाल का विभाग के पास क्या जवाब होगा कि वह अपनी जेबें भरने में ही लगा रहता है और जहां से मुंह मांगी कीमत नहीं मिलती वहां छापा डाल देता है। या फिर दिखावे के लिए कभी-कभार इधर-उधर से सैंपलिंग कर लेता है। दूसरा सवाल है कि आखिर मिलावटी खाद्य पदार्थ या नकली दवाइयां इतने धड़ल्ले से बिक कैसे जाती हैं। दरअसल ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों और शहरों की सघन और मलिन बस्तियों तक यह टीम पहुंचना ही नहीं चाहती। इसी का फायदा मिलावटखोर उठाते हैं। विभाग की निष्क्रियता का फायदा अन्य लोग भी उठाते हैं। कभी-कभी पुलिस की भी इसमें मिलीभगत हो जाती है तो कभी वह सहयोग नहीं करती। इस तरह मिलावट और नकली का धंधा जोरों पर चल रहा है।
खाद्य और औषधि विभाग को लगातार सक्रिय रह कर अभियान चलाना होगा। विभिन्न माध्यमों से लोगों को जागरूक करना पड़ेगा। शिकायत प्रकोष्ठ को इंटरनेट के विभिन्न माध्यमों से जोड़कर जनता के बीच संवाद बढ़ाना होगा। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मुकदमों की न केवल प्रभावी पैरवी करनी पड़ेगी, बल्कि जल्द से जल्द सजा दिलाने का प्रयास भी करना पड़ेगा। यदि विभाग यह सबकुछ करने को तैयार है तभी मिलावटी खाद्य पदार्थो और नकली दवाइयों पर अंकुश लग सकता है, अन्यथा विभाग के नाम पर यह हाथी के दिखने वाले दांत जैसा ही रहेगा।
इसे लेकर सख्त कानून और कड़ी सजा है, यह संदेश लोगों के बीच नहीं पहुंच पाएगा। इस मामले में सरकार को भी सामने आना होगा। विभाग को सक्रिय करते हुए उसके दैनंदिन कार्य की निगरानी करनी होगी। टेस्टिंग के लिए लैबों की संख्या बढ़ानी होगी और मुकदमों के शीघ्र निस्तारण के लिए सारी बाधाओं को दूर करना होगा। यदि विभाग और सरकार यह सबकुछ नहीं कर सकते तो जनता को भी इनसे सारी उम्मीदें छोड़कर अपने जोखिम पर सामान खरीदना होगा।