UP Dairy : जाति की जय बोल रहा उत्तर प्रदेश
मथुरा में एक ब्राह्मण परिवार को झूठे केस में फंसाकर जेल भिजवा दिया गया और गलत आरोप लगाने वाली महिला ने सरकार से मुआवजा भी ले लिया।
क्या यह संभव है कि बड़ी संख्या में सरकार से नाराज लोग सड़क पर उतरे हुए हों लेकिन, विपक्ष उन्हें हाथ भी लगाने को तैयार न हो। यह मानने वाली बात तो नहीं लेकिन यही हुआ केंद्र सरकार द्वारा एससी एसटी एक्ट में किए गए संशोधन के खिलाफ भारत बंद के दौरान।
हजारों लाखों प्रदर्शनकारी उत्तर प्रदेश में अपना रोष प्रकट कर रहे थे परंतु छोटी-छोटी बातों पर सत्ताधारी दल को घेरने वाला विपक्ष खामोश था। सवर्ण और पिछड़े सवाल पूछ रहे थे और विपक्ष चुप था। राजनीति की यह वह विडंबना थी जिसने तर्कों और विवेक को परास्त कर दिया था। खोने के डर ने दलों की आग ठंडी कर दी थी।
भले ही पार्टियां कुछ न बोली हों पर इस एक्ट का दुरुपयोग सिर चढ़ कर बोला। मथुरा में एक ब्राह्मण परिवार को झूठे केस में फंसाकर जेल भिजवा दिया गया और गलत आरोप लगाने वाली महिला ने सरकार से मुआवजा भी ले लिया। शुक्रवार को सच सामने आया तो अनुसूचित जाति जनजाति आयोग ने मुआवजे की रकम वापस लेने का आदेश दिया। आगे इस केस में जो भी हो, प्रश्न यह है कि ब्राह्मण परिवार को मिली मानसिक यातना का मुआवजा कौन और कितना तय करेगा? उस परिवार के डरे सहमे बच्चे कई दिन खाना भी नहीं खा सके थे। उनकी भूख का भी कोई मुआवजा हो सकता है क्या?
इन दिनों वैसे भी यूपी में जाति जलवा दिखा रही है। भाजपा जमकर जातीय सम्मेलन कर रही है और विपक्ष को यह सुहा नहीं रहा। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो कह ही चुके हैं कि चुनाव सामने देख भाजपा जाति में जाति निकाल रही है। उधर भाजपा है कि अखिलेश के इस बयान के दो ही दिन बाद उसने शनिवार को यादव सम्मेलन कर डाला। सम्मेलन स्थल के बाहर लगे एक बोर्ड ने आने जाने वालों का भी खूब ध्यान खींचा। वहां एक रथ बनाया गया था जिसमें बाकायदा पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री भूपेंद्र यादव कृष्ण रूप में आरूढ़ थे जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अर्जुन बने हुए थे। सम्मेलन में भाजपा को यादवों का मूल दल बता दिया गया। जाहिर है समाजवादी पार्टी का चिढऩा स्वाभाविक है।
अब थोड़ी चर्चा भीम आर्मी की यानी जातीय गोलबंदी का एक और एक्सटेंशन। जिस व्यक्ति को कभी सामाजिक सद्भाव के लिए खतरा मानते हुए जेल भेजा गया, राज्य सरकार द्वारा उसे ही छोडऩे का निर्णय न केवल अचानक होता है बल्कि उसी रात ढाई बजे वह रिहा भी कर दिया जाता है। इसके बाद उसे ससम्मान पुलिस की सुरक्षा में उसके गांव भी पहुंचा दिया जाता है। यह घटना सामान्य नहीं और खासकर जब चुनाव सामने हों तो इसके राजनीतिक निहितार्थ निकाले ही जाएंगे। भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर उर्फ रावण की रिहाई 2019 में चाहे इधर या उधर, गुल अवश्य खिलाएगी। अभी तो उसने जेल से बाहर आते ही भाजपा को दुश्मन और बसपा प्रमुख मायावती को बुआ कहना शुरू कर दिया है।
यह भी रोचक है कि जेल जाने से पहले चंद्रशेखर ने बसपा प्रमुख को कभी बुआ नहीं कहा। उधर मायावती को पहले से बुआ कहते आ रहे अखिलेश यादव ने तो अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन, खुद मायावती रविवार को लखनऊ में चंद्रशेखर को खारिज कर गईं। उन्होंने न केवल चंद्रशेखर से किसी भी तरह के रिश्ते से मना किया बल्कि यह भी कह गईं कि गठबंधन तभी होगा जब बसपा को सम्मानजनक सीटें मिलेंगी। यह थोड़ा आश्चर्यजनक बयान है क्योंकि अखिलेश तो पहले ही कम सीटों पर भी गठबंधन में बने रहने की बात कह चुके हैं। बची कांग्रेस तो वह फिलहाल तो उसमें यूपी में किसी तरह के मोलभाव की गुंजाइश नहीं। ऐसे में यह सवाल जायज है कि फिर वह कौन है जो बसपा को सम्मानजनक सीटें मिलने मे बाधक दिख रहा?
परीक्षाओं के लिए उत्तर प्रदेश खासा बदनाम है। पिछले कई वर्षों से यहां कोई परीक्षा बिना नकल नहीं होती थी और अब कोई परीक्षा बिना पर्चा आउट कराए नहीं होती। नकल कराने वाले गिरोह इतने शक्तिशाली हैं कि किसी की चलने नहीं देते। दो दिन पहले सचिवालय में अपर निजी सचिव भर्ती परीक्षा की सीबीआइ जांच शुरू करने की अनुमति सरकार ने दी। हालांकि सच यह है कि सीबीआइ ने तीन महीने पहले जांच की अनुमति मांगी थी लेकिन, एक बड़े अधिकारी यह नहीं चाह रहे थे लिहाजा जांच दबी रही।
नकल रोकने वालों से लंबे हैं नकल कराने वालों के हाथ।
अब देखने हैं सरकार के हाथ ...!